Sunday, September 2, 2018

*अन्त सुधारना है तो स्मरण मत छोडो



*अन्त सुधारना है तो स्मरण मत छोडो*

दशरथ जी का मरण सुधर गया,क्योकि वे कैकयी जी के महलों से निकलकर कौसल्या जी के महलों में आ गए.

और इसलिए भी मरण सुधरा अंत समय में राम राम ही कह रहे है,क्योकि जिसके जीवन और जवानी सद गए उसका मरण भी सद जाता है.

इसलिए व्यक्ति अंतिम समय के लिए न बैठा रहे कि अंतिम समय में भगवान याद आ जायेगे, कभी नहीं आयेगे.

जिसे जीवन भर याद नहीं किया अंतिम समय में कैसे याद आ जायेगे,जीवन भर जिसे याद किया वही संसार अंतिम समय याद आएगा.

यहाँ एक चीज समझने की है कि “संसार” और “जगत” में बहुत अंतर है.जगत वह है

जो हमें दिखायी देता है,जो सुन्दर होता है,जिसे भगवान ने बनाया है फूल पत्ती,नदी पर्वत,ये जगत है.

संसार भगवान ने नहीं बनाया है संसार बनाया है हमने, वो भी अपने अन्दर, जो दिखायी नहीं देता,

जो कुरूप होता है,भयानक होता है,क्या है ये संसार?हम और कैसे जिए,

जितना पैसा है और कैसे आये,हमारे मन की कल्पना का नाम संसार है.

पति, पत्नी, बच्चे, घर, परिवार, ये संसार नहीं है,एक भिखारी होता है जिसके पास ये सब कुछ नहीं है तो क्या वह मुक्त है?

नहीं है क्योकि उसके अन्दर इन सबको पाने की जो इच्छा है,जिसे पाने के लिए मन कल्पनाओ में लगा रहता है, उसी का नाम संसार है.

संत कहते है कि चार चीजे व्यक्ति को स्वयं करनी होती है.

१.वरण
२.मरण
३.भजन
४.भोजन

१. वरण –जब व्यक्ति का विवाह होता है तो उस समय वह अपने किसी सगे सम्बन्धी या भाई से नहीं कह सकता कि तुम मेरी जगह विवाह या वरण कर लो उसे स्वयं ही करना होता है.

२.मरण –  मृत्यु आती है तो व्यक्ति को स्वयं ही मरना पडता है उस समय अपने नौकर से नहीं कह सकता कि तु मेरी जगह मर जा उसे ही मरना पड़ेगा.

मरण को सुधारने का एक ही रास्ता है – “स्मरण” व्यक्ति हर पल भगवान का स्मरण करता रहे.

मरण अपने आप सुधर जायेगा.राजा ने यही किया अंतिम समय में राम राम कह रहे है और नैनों में राम की ही छवि है.

३. भजन –  भजन भी स्वयं ही करना पड़ेगा,जो करेगा उसी को परमात्मा मिलेगा,

वहाँ भी आपकी जगह कोई दूसरा नहीं कर सकता.भजन चाहे जैसा करो, जैसे छोटा बालक होता है

जिसको अभी बोलना भी नहीं आता,उसकी बोली भले ही किसी की समझ में ना आये परन्तु माँ की समझ में आ जाती है,

इसी प्रकार हम भजन कैसा भी करे वाणी भी ठीक न हो तो भी परमात्मा समझ लेते है कि हम क्या कहना चाहते है.

४.भोजन –  हजार काम छोड़कर भी व्यक्ति को भोजन भी स्वयं ही करना पड़ेगा किसी दूसरे के खाने से उसका पेट थोड़ी ही भर जायेगा.

राजा दशरथ अंतिम समय में श्रवण के अंधे माता पिता का श्राप याद कर रहे है, उन्होंने जान-बूझकर श्रवण को नहीं मारा था.

दशरथ जी का प्रसंग हमें शिक्षा देता है कि अनजाने में किया पाप जब इतना दंड देता है

तो हम तो जान बूझकर जाने कितने पाप करते रहते है तो उसका कितना दंड होगा.?

राम द्वारे जो मरे फिर न मरना होय

इस संसार में कोई रोग से मर रहा है,कोई भोग से मर रहा है,कोई लोभ से मर रहा है,

कोई चोरी करते मर रहा है,मरता तो हर कोई है, पर कहते है  “अंत भला सो सब भला”.

जिसका मरना अच्छा हो गया उससे जीवन में यदि गलतियां भी हुई है तो भी कुछ नहीं बिगड़ा.मरना तो उसका सफल है जो भगवान के विरह में मरा.

“मरना मरना भांति है ,जाने विरला कोय ,राम द्वारे जो मरे,फिर न मरना होय”

दशरथ जी कह रहे है –

“सो सुत बिछुरत गए न प्राना ,को पापी बड मोहि समाना”

अर्थात –  राम के बिछुड जाने पर भी मेरे प्राण नहीं गए,मेरे समान बड़ा पापी कौन होगा?

भगवान राम के विरह में दशरथ जी का विरह बड़ा उत्कट है जहाँ राम के वियोग में प्राण कंठ तक आ गए,

निकलते इसलिए नहीं कि अभी सुमंत्र वापस नहीं आये,सुमंत्र आ जाए शायद उनके साथ राम सीता भी आ जाए और मेरे जाते प्राण भी लौट आये.

उस समय एक रात भी युगों के समान बीती.विरह हो तो ऐसा जहाँ हर पल युगों सा लगे.

“राम रहित धिग जीवन आसा,सो तनु राखि करब मै कहा,जेहिं न प्रेम पनु मोर निबाहा”

अर्थात - उस जीवन को धिक्कार है जो मुझे राम के बिना जीना पड़े मै उस शरीर को रखकर क्या करूँगा जिसने मेरा प्रेम का प्रण नहीं निबाहा.

“हा रघुनन्दन प्रान पिरीते , तुम्ह बिनु जिअत बहुत दिन बीते ”

हा रघुनंदन ! प्राण प्यारे! तुम्हारे बिना जीते हुए मुझे बहुत दिन बीत गए,

“राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम

तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम”

राम राम कहकर फिर राम कहकर फिर राम राम कहकर और फिर राम कहकर श्री राम के विरह में शरीर त्याग दिया.

विरह यदि हो तो दशरथ और कुन्ती जैसा हो, जिन्होंने भगवान के विरह में प्राण ही त्याग दिए.

ऐसा विरह जैसे मछली बिना पानी के जीवित ही नहीं रह सकती,ऐसे प्राण अपने प्रेमी के विरह में तड़प रहे है.

वास्तव में विरह यही है जहाँ भगवान के विरह में भक्त, प्रेमी जीवन,शरीर रखता ही नहीं.

प्यारे तुम्हारे बिना हमने बहुत जी लिया,अब और नहीं जीना है.”वि” “रह” आपके बिना नहीं रह सकते.प्रेमी विरह में शरीर छोड़ने को है और कहता क्या है  –

“ कागा सब तन खाइयो, मोरा चुन-चुन खायो मास रे,

 ये दो मेरे नैना मत खाइयो, इनमे मेरे कृष्ण मिलन की आस रे

 खुसरो बाजी प्रेम की, मै खेलू पी के संग, जीत गयी तो पी मेरे,

 और हार गयी तो मै पी के संग”   

मरने के बाद मेरे ये नैन खुले रह जायेगे क्योकि इनमे मेरे खुदा से मिलने की आस है मरने के बाद कागा मेरे मास को लोच कर खा जाना पर ये दो नैना मत खाना.

इसलिए कहता है. कृष्ण बिना तो हम अब जी नहीं सकते और मरने के बाद वे आये तो उन्हें दुःख होगा,

और अपने प्रेमी को मै कैसे दुखी देख सकती हूँ , इसलिए कम से कम मेरी खुली आँखों को देखकर हम दोनों को राहत मिलेगी
                       

  

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