ZINDGI KE KUCH PAAL BHAGWAN KE SAATH AND AAL INFORMATIONS
Tuesday, July 31, 2018
भगवान शिव के 108 नाम --
भगवान शिव के 108 नाम --
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१- ॐ भोलेनाथ नमः
२-ॐ कैलाश पति नमः
३-ॐ भूतनाथ नमः
४-ॐ नंदराज नमः
५-ॐ नन्दी की सवारी नमः
६-ॐ ज्योतिलिंग नमः
७-ॐ महाकाल नमः
८-ॐ रुद्रनाथ नमः
९-ॐ भीमशंकर नमः
१०-ॐ नटराज नमः
११-ॐ प्रलेयन्कार नमः
१२-ॐ चंद्रमोली नमः
१३-ॐ डमरूधारी नमः
१४-ॐ चंद्रधारी नमः
१५-ॐ मलिकार्जुन नमः
१६-ॐ भीमेश्वर नमः
१७-ॐ विषधारी नमः
१८-ॐ बम भोले नमः
१९-ॐ ओंकार स्वामी नमः
२०-ॐ ओंकारेश्वर नमः
२१-ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः
२२-ॐ विश्वनाथ नमः
२३-ॐ अनादिदेव नमः
२४-ॐ उमापति नमः
२५-ॐ गोरापति नमः
२६-ॐ गणपिता नमः
२७-ॐ भोले बाबा नमः
२८-ॐ शिवजी नमः
२९-ॐ शम्भु नमः
३०-ॐ नीलकंठ नमः
३१-ॐ महाकालेश्वर नमः
३२-ॐ त्रिपुरारी नमः
३३-ॐ त्रिलोकनाथ नमः
३४-ॐ त्रिनेत्रधारी नमः
३५-ॐ बर्फानी बाबा नमः
३६-ॐ जगतपिता नमः
३७-ॐ मृत्युन्जन नमः
३८-ॐ नागधारी नमः
३९- ॐ रामेश्वर नमः
४०-ॐ लंकेश्वर नमः
४१-ॐ अमरनाथ नमः
४२-ॐ केदारनाथ नमः
४३-ॐ मंगलेश्वर नमः
४४-ॐ अर्धनारीश्वर नमः
४५-ॐ नागार्जुन नमः
४६-ॐ जटाधारी नमः
४७-ॐ नीलेश्वर नमः
४८-ॐ गलसर्पमाला नमः
४९- ॐ दीनानाथ नमः
५०-ॐ सोमनाथ नमः
५१-ॐ जोगी नमः
५२-ॐ भंडारी बाबा नमः
५३-ॐ बमलेहरी नमः
५४-ॐ गोरीशंकर नमः
५५-ॐ शिवाकांत नमः
५६-ॐ महेश्वराए नमः
५७-ॐ महेश नमः
५८-ॐ ओलोकानाथ नमः
५४-ॐ आदिनाथ नमः
६०-ॐ देवदेवेश्वर नमः
६१-ॐ प्राणनाथ नमः
६२-ॐ शिवम् नमः
६३-ॐ महादानी नमः
६४-ॐ शिवदानी नमः
६५-ॐ संकटहारी नमः
६६-ॐ महेश्वर नमः
६७-ॐ रुंडमालाधारी नमः
६८-ॐ जगपालनकर्ता नमः
६९-ॐ पशुपति नमः
७०-ॐ संगमेश्वर नमः
७१-ॐ दक्षेश्वर नमः
७२-ॐ घ्रेनश्वर नमः
७३-ॐ मणिमहेश नमः
७४-ॐ अनादी नमः
७५-ॐ अमर नमः
७६-ॐ आशुतोष महाराज नमः
७७-ॐ विलवकेश्वर नमः
७८-ॐ अचलेश्वर नमः
७९-ॐ अभयंकर नमः
८०-ॐ पातालेश्वर नमः
८१-ॐ धूधेश्वर नमः
८२-ॐ सर्पधारी नमः
८३-ॐ त्रिलोकिनरेश नमः
८४-ॐ हठ योगी नमः
८५-ॐ विश्लेश्वर नमः
८६- ॐ नागाधिराज नमः
८७- ॐ सर्वेश्वर नमः
८८-ॐ उमाकांत नमः
८९-ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः
९०-ॐ त्रिकालदर्शी नमः
९१-ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः
९२-ॐ महादेव नमः
९३-ॐ गढ़शंकर नमः
९४-ॐ मुक्तेश्वर नमः
९५-ॐ नटेषर नमः
९६-ॐ गिरजापति नमः
९७- ॐ भद्रेश्वर नमः
९८-ॐ त्रिपुनाशक नमः
९९-ॐ निर्जेश्वर नमः
१०० -ॐ किरातेश्वर नमः
१०१-ॐ जागेश्वर नमः
१०२-ॐ अबधूतपति नमः
१०३ -ॐ भीलपति नमः
१०४-ॐ जितनाथ नमः
१०५-ॐ वृषेश्वर नमः
१०६-ॐ भूतेश्वर नमः
१०७-ॐ बैजूनाथ नमः
१०८-ॐ नागेश्वर नमःv
यह भगवान के १०८ नाम
श्रीनाथजी ............... श्रीजी जब ब्रज में श्रीगोवर्धन शिखर पर विराज रहे थे
श्रीनाथजी
............... श्रीजी जब ब्रज में श्रीगोवर्धन शिखर पर विराज रहे थे तब अपने प्रेमी भक्तो को आनंद करने के निमित्त नित्य मधुर लीला करते थे ,
उन्ही भोले बृज भक्तो में एक थे श्री कुम्भनदासजी , जो गोवर्धन की तलहटी में रहते थे ।
एक बार की बात है कि भक्त कुम्भनदास जी नित्य के नियम अनुसार भगवान श्रीनाथजी के पास दर्शन को गये और उन्हें जाकर देखा कि श्रीनाथजी अपना मुँह लटकाये बैठे हैं ।
🌷कुम्भनदास जी बोले - प्रभु क्या हुआ , मुँह फुलाये क्यों बैठे हो ।
.
🌷श्रीनाथजी बोले - क्या बताऊ कुम्भन आज माखन खाने का मनकर रहयो है ।
.
🌷कुम्भनदास जी - अरे लाला इतना माखन तो धरो है , फिर
.
🌷श्रीनाथजी बोले - तू तो जाने है ना कुम्भना ऐसे माखन से मेरा पेट न भरे मोको तो चोरी का ही माखन भावे।
.
🌷कुम्भनदास जी - बताओ प्रभु क्या करना चाहिए और माखन कहा से लाये ।
.
🌷 श्रीनाथजी - देख कुम्भन एक गोपी है , जो रोज मेरे दर्शन करने आवे और मोते बोले कि प्रभु मोय अपनी गोपी बना लो सो आज वाके घर चलते हैं ।
.
🌷कुम्भनदास जी - प्रभु काऊ ने देख लिये तो कहा होगो ।
.
🌷श्रीनाथजी - कोन देखेगो आज वाके घर में वाके शादी है , सब बरात में गये हैं घर पर सब गोपी ही गोपी है और हम तो चुपके से जायेगे याते काहु हे न पतो हो ।
.
🌷कुम्भनदास जी - ठीक प्रभु मै बुढा और तुम हट्टे - कट्टे हो कोई बात है गयी तो छोडके मत भाग आई ओ ।
.
🌷श्रीनाथजी - ठीक है पक्की साथ - साथ भागेगे कोई गोपी आ गयी तो नही तो माखन खाके चुप चाप भाग आयेगे ।
.
🌷श्रीनाथजी और कुम्भनदासजी दोनों
गोपी के घर में जाने के लिये निकले , और चुपके से घर के बगल से एक छोटी सी दीवार से होकर जाने की योजना बना ली ।
.
🌷 श्रीनाथजी - कुम्भन तुम लम्बे हो पहले मुझे दीवार पर चढाओ ।
🌷कुम्भनदासजी - ठीक है प्रभु
.
🌷कुम्भनदासजी ने प्रभु को ऊपर चढा दिया और प्रभु ने कुम्भनदासजी को और दोनों गोपी के घर में घुसकर माखन खाने लगे ,
प्रभु खा रहे थे और कुम्भनदासजी को भी खिला रहे थे ,
कुम्भनदासजी की मूँछों में और मुँह पर माखन लग गयो तभी अचानक श्रीनाथजी कूॅ एक बुढी मईय्या एक खाट पर सोती हुई नजर आई जिसकी आँख खुली सी लग रही थी और उसका हाथ सीधा बगल की तरफ लम्बा हो रहा था
यह देख प्रभु बोले ।
🌷श्रीनाथजी - कुम्भन देख यह बुढी मईय्या कैसी देख रही हैं और लम्बा हाथ करके माखन माग रही है , थोडो सो माखन याकू भी दे देते हैं ।
🌷कुम्भनदासजी - प्रभु न मरवाओगे क्या बुढी मइय्या जग गयी न तो लेने के देने पड जायेगे ।
🌷श्रीनाथजी गये और वा बुढी मईय्या के हाथ पर माखन रख दिया , माखन ठण्डा - ठण्डा लगा की बुढी मईय्या जग गयी और जोर - जोर से आवाज लगाने लगी चोर
.
- चोर अरे कोई आओ घर में चोर घुस आयो ।
.
🌷बुढिया की आवाज सुनकर कर घर में से जो जो स्त्री थी वो भगी चली आयी और इधर श्रीनाथजी भी भागे और उस दीवार को कुदकर भाग गये उनके पीछे कुम्भनदासजी भी भागे और दीवार पर चढने लगे वृद्ध होने के कारण दीवार पार नही कर पाये आधे चढे ही थे की एक गोपी ने पकड कर खींच लिये और अन्धेरा होने के कारण उनकी पीटाई भी कर दी । जब वे उजाला करके लाये और देखा की कुम्भनदासजी है , तो वे अचम्भित रह गयी क्योंकि कुम्भनदासजी को सब जानते थे कि यह बाबा सिद्ध है, और बोली ।
.
🌷गोपी बोली - बाबा तुम घर में रात में घुस के क्या कर रहे थे और यह क्या माखन तेरे मुँह पर लगा है क्या माखन खायो बाबा तुम कह देते तो हम तुम्हारे पास ही पहुँचा देते । इतना कष्ट करने की क्या जरूरत थी ।
.
🌷बाबा चुप थे , बोले भी तो क्या बोले ।
.
🌷गोपी बोली - बाबा एक शंका है कि तुम अकेले तो नही आये होगे क्योंकि इस दीवार को पार तुम अकेले नही कर सकते ।
🌷कुम्भनदासजी - अरी गोपी कहा बताऊ कि या श्रीनाथजी के मन में तेरे घरको माखन खाने के मन में आ गयी कि यह प्रतिदिन कहे प्रभु मोये गोपी बना ले सो आज गोपी बनावे आ गये आप तो भाग गये मोये पीटवा दियो ।
.
🌷गोपी बडी प्रसन्न हुई कि आज तो मेरे भाग जाग गये ।
.
नोट - भक्त बडे विचित्र और उनके प्रभु उनसे से विचित्र होते है।
.
.
ऐसी ही ह्रदय को आनंद प्रदान करने वाली
अन्य मधुर लीलाओ का वर्णन
.
............... श्रीजी जब ब्रज में श्रीगोवर्धन शिखर पर विराज रहे थे तब अपने प्रेमी भक्तो को आनंद करने के निमित्त नित्य मधुर लीला करते थे ,
उन्ही भोले बृज भक्तो में एक थे श्री कुम्भनदासजी , जो गोवर्धन की तलहटी में रहते थे ।
एक बार की बात है कि भक्त कुम्भनदास जी नित्य के नियम अनुसार भगवान श्रीनाथजी के पास दर्शन को गये और उन्हें जाकर देखा कि श्रीनाथजी अपना मुँह लटकाये बैठे हैं ।
🌷कुम्भनदास जी बोले - प्रभु क्या हुआ , मुँह फुलाये क्यों बैठे हो ।
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🌷श्रीनाथजी बोले - क्या बताऊ कुम्भन आज माखन खाने का मनकर रहयो है ।
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🌷कुम्भनदास जी - अरे लाला इतना माखन तो धरो है , फिर
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🌷श्रीनाथजी बोले - तू तो जाने है ना कुम्भना ऐसे माखन से मेरा पेट न भरे मोको तो चोरी का ही माखन भावे।
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🌷कुम्भनदास जी - बताओ प्रभु क्या करना चाहिए और माखन कहा से लाये ।
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🌷 श्रीनाथजी - देख कुम्भन एक गोपी है , जो रोज मेरे दर्शन करने आवे और मोते बोले कि प्रभु मोय अपनी गोपी बना लो सो आज वाके घर चलते हैं ।
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🌷कुम्भनदास जी - प्रभु काऊ ने देख लिये तो कहा होगो ।
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🌷श्रीनाथजी - कोन देखेगो आज वाके घर में वाके शादी है , सब बरात में गये हैं घर पर सब गोपी ही गोपी है और हम तो चुपके से जायेगे याते काहु हे न पतो हो ।
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🌷कुम्भनदास जी - ठीक प्रभु मै बुढा और तुम हट्टे - कट्टे हो कोई बात है गयी तो छोडके मत भाग आई ओ ।
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🌷श्रीनाथजी - ठीक है पक्की साथ - साथ भागेगे कोई गोपी आ गयी तो नही तो माखन खाके चुप चाप भाग आयेगे ।
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🌷श्रीनाथजी और कुम्भनदासजी दोनों
गोपी के घर में जाने के लिये निकले , और चुपके से घर के बगल से एक छोटी सी दीवार से होकर जाने की योजना बना ली ।
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🌷 श्रीनाथजी - कुम्भन तुम लम्बे हो पहले मुझे दीवार पर चढाओ ।
🌷कुम्भनदासजी - ठीक है प्रभु
.
🌷कुम्भनदासजी ने प्रभु को ऊपर चढा दिया और प्रभु ने कुम्भनदासजी को और दोनों गोपी के घर में घुसकर माखन खाने लगे ,
प्रभु खा रहे थे और कुम्भनदासजी को भी खिला रहे थे ,
कुम्भनदासजी की मूँछों में और मुँह पर माखन लग गयो तभी अचानक श्रीनाथजी कूॅ एक बुढी मईय्या एक खाट पर सोती हुई नजर आई जिसकी आँख खुली सी लग रही थी और उसका हाथ सीधा बगल की तरफ लम्बा हो रहा था
यह देख प्रभु बोले ।
🌷श्रीनाथजी - कुम्भन देख यह बुढी मईय्या कैसी देख रही हैं और लम्बा हाथ करके माखन माग रही है , थोडो सो माखन याकू भी दे देते हैं ।
🌷कुम्भनदासजी - प्रभु न मरवाओगे क्या बुढी मइय्या जग गयी न तो लेने के देने पड जायेगे ।
🌷श्रीनाथजी गये और वा बुढी मईय्या के हाथ पर माखन रख दिया , माखन ठण्डा - ठण्डा लगा की बुढी मईय्या जग गयी और जोर - जोर से आवाज लगाने लगी चोर
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- चोर अरे कोई आओ घर में चोर घुस आयो ।
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🌷बुढिया की आवाज सुनकर कर घर में से जो जो स्त्री थी वो भगी चली आयी और इधर श्रीनाथजी भी भागे और उस दीवार को कुदकर भाग गये उनके पीछे कुम्भनदासजी भी भागे और दीवार पर चढने लगे वृद्ध होने के कारण दीवार पार नही कर पाये आधे चढे ही थे की एक गोपी ने पकड कर खींच लिये और अन्धेरा होने के कारण उनकी पीटाई भी कर दी । जब वे उजाला करके लाये और देखा की कुम्भनदासजी है , तो वे अचम्भित रह गयी क्योंकि कुम्भनदासजी को सब जानते थे कि यह बाबा सिद्ध है, और बोली ।
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🌷गोपी बोली - बाबा तुम घर में रात में घुस के क्या कर रहे थे और यह क्या माखन तेरे मुँह पर लगा है क्या माखन खायो बाबा तुम कह देते तो हम तुम्हारे पास ही पहुँचा देते । इतना कष्ट करने की क्या जरूरत थी ।
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🌷बाबा चुप थे , बोले भी तो क्या बोले ।
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🌷गोपी बोली - बाबा एक शंका है कि तुम अकेले तो नही आये होगे क्योंकि इस दीवार को पार तुम अकेले नही कर सकते ।
🌷कुम्भनदासजी - अरी गोपी कहा बताऊ कि या श्रीनाथजी के मन में तेरे घरको माखन खाने के मन में आ गयी कि यह प्रतिदिन कहे प्रभु मोये गोपी बना ले सो आज गोपी बनावे आ गये आप तो भाग गये मोये पीटवा दियो ।
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🌷गोपी बडी प्रसन्न हुई कि आज तो मेरे भाग जाग गये ।
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नोट - भक्त बडे विचित्र और उनके प्रभु उनसे से विचित्र होते है।
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ऐसी ही ह्रदय को आनंद प्रदान करने वाली
अन्य मधुर लीलाओ का वर्णन
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*आज का सुविचार* एक बुजुर्ग औरत मर गई, यमराज लेने आये।
*आज का सुविचार*
एक बुजुर्ग औरत मर गई, यमराज लेने आये।
औरत ने यमराज से पूछा, आप मुझे स्वर्ग ले जायेगें या नरक।
यमराज बोले दोनों में से कहीं नहीं।
तुमनें इस जन्म में बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं, इसलिये मैं तुम्हें सिधे प्रभु के धाम ले जा रहा हूं।
बुजुर्ग औरत खुश हो गई, बोली धन्यवाद, पर मेरी आपसे एक विनती है।
मैनें यहां धरती पर सबसे बहुत स्वर्ग - नरक के बारे में सुना है मैं एक बार इन दोनों जगाहो को देखना चाहती हूं।
यमराज बोले तुम्हारे कर्म अच्छे हैं, इसलिये मैं तुम्हारी ये इच्छा पूरी करता हूं।
चलो हम स्वर्ग और नरक के रसते से होते हुए प्रभु के धाम चलेगें।
दोनों चल पडें, सबसे पहले नरक आया।
नरक में बुजुर्ग औरत ने जो़र जो़र से लोगो के रोने कि आवाज़ सुनी।
वहां नरक में सभी लोग दुबले पतले और बीमार दिखाई दे रहे थे।
औरत ने एक आदमी से पूछा यहां आप सब लोगों कि ऐसी हालत क्यों है।
आदमी बोला तो और कैसी हालत होगी, मरने के बाद जबसे यहां आये हैं, हमने एक दिन भी खाना नहीं खाया।
भूख से हमारी आतमायें तड़प रही हैं
बुजुर्ग औरत कि नज़र एक वीशाल पतिले पर पडी़, जो कि लोगों के कद से करीब 300 फूट ऊंचा होगा, उस पतिले के ऊपर एक वीशाल चम्मच लटका हुआ था।
उस पतिले में से बहुत ही शानदार खुशबु आ रही थी।
बुजुर्ग औरत ने उस आदमी से पूछा इस पतिले में कया है।
आदमी मायूस होकर बोला ये पतिला बहुत ही स्वादीशट खीर से हर समय भरा रहता है।
बुजुर्ग औरत ने हैरानी से पूछा, इसमें खीर है
तो आप लोग पेट भरके ये खीर खाते क्यों नहीं, भूख से क्यों तड़प रहें हैं।
आदमी रो रो कर बोलने लगा, कैसे खायें
ये पतिला 300 फीट ऊंचा है हममें से कोई भी उस पतिले तक नहीं पहुँच पाता।
बुजुर्ग औरत को उन पर तरस आ गया
सोचने लगी बेचारे, खीर का पतिला होते हुए भी भूख से बेहाल हैं।
शायद ईश्वर नें इन्हें ये ही दंड दिया होगा
यमराज बुजुर्ग औरत से बोले चलो हमें देर हो रही है।
दोनों चल पडे़, कुछ दूर चलने पर स्वरग आया।
वहां पर बुजुर्ग औरत को सबकी हंसने,खिलखिलाने कि आवाज़ सुनाई दी।
सब लोग बहुत खुश दिखाई दे रहे थे।
उनको खुश देखकर बुजुर्ग औरत भी बहुत खुश हो गई।
पर वहां स्वरग में भी बुजुर्ग औरत कि नज़र वैसे ही 300 फूट उचें पतिले पर पडी़ जैसा नरक में था, उसके ऊपर भी वैसा ही चम्मच लटका हुआ था।
बुजुर्ग औरत ने वहां लोगो से पूछा इस पतिले में कया है।
स्वर्ग के लोग बोले के इसमें बहुत टेस्टी खीर है।
बुजुर्ग औरत हैरान हो गई
उनसे बोली पर ये पतिला तो 300 फीट ऊंचा है
आप लोग तो इस तक पहुँच ही नहीं पाते होगें
उस हिसाब से तो आप लोगों को खाना मिलता ही नहीं होगा, आप लोग भूख से बेहाल होगें
पर मुझे तो आप सभी इतने खुश लग रहे हो, ऐसे कैसे
लोग बोले हम तो सभी लोग इस पतिले में से पेट भर के खीर खाते हैं
औरत बोली पर कैसे,पतिला तो बहुत ऊंचा है।
लोग बोले तो क्या हो गया पतिला ऊंचा है तो
यहां पर कितने सारे पेड़ हैं, ईश्वर ने ये पेड़ पौधे, नदी, झरने हम मनुष्यों के उपयोग के लिये तो बनाईं हैं
हमनें इन पेडो़ कि लकडी़ ली, उसको काटा, फिर लकड़ीयों के तुकडो़ को जोड़ के वीशाल सिढी़ का निर्माण किया
उस लकडी़ की सिढी़ के सहारे हम पतिले तक पहुंचते हैं
और सब मिलकर खीर का आंनद लेते हैं
बुजुर्ग औरत यमराज कि तरफ देखने लगी
यमराज मुसकाये बोले
*ईशवर ने स्वर्ग और नरक मनुष्यों के हाथों में ही सौंप रखा है,चाहें तो अपने लिये नरक बना लें, चाहे तो अपने लिये स्वरग, ईशवर ने सबको एक समान हालातो में डाला हैं*
*उसके लिए उसके सभी बच्चें एक समान हैं, वो किसी से भेदभाव नहीं करता*
*वहां नरक में भी पेेड़ पौधे सब थे, पर वो लोग खुद ही आलसी हैं, उन्हें खीर हाथ में चाहीये,वो कोई कर्म नहीं करना चाहते, कोई मेहनत नहीं करना चाहते, इसलिये भूख से बेहाल हैं*
*कयोकिं ये ही तो ईश्वर कि बनाई इस दुनिया का नियम है,जो कर्म करेगा, मेहनत करेगा, उसी को मीठा फल खाने को मिलेगा*
दोस्तों ये ही आज का सुविचार है, स्वरग और नरक आपके हाथ में है
मेहनत करें, अच्छे कर्म करें और अपने जीवन को स्वरग बनाएं।
आप सबका दिन शुभ हो
और हां, ये पोस्ट अगर आपको ज़रा सी भी पसंद आई हो तो आगे शेयर करना मत भुलियेगा।
नमस्कार 🙏
एक बुजुर्ग औरत मर गई, यमराज लेने आये।
औरत ने यमराज से पूछा, आप मुझे स्वर्ग ले जायेगें या नरक।
यमराज बोले दोनों में से कहीं नहीं।
तुमनें इस जन्म में बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं, इसलिये मैं तुम्हें सिधे प्रभु के धाम ले जा रहा हूं।
बुजुर्ग औरत खुश हो गई, बोली धन्यवाद, पर मेरी आपसे एक विनती है।
मैनें यहां धरती पर सबसे बहुत स्वर्ग - नरक के बारे में सुना है मैं एक बार इन दोनों जगाहो को देखना चाहती हूं।
यमराज बोले तुम्हारे कर्म अच्छे हैं, इसलिये मैं तुम्हारी ये इच्छा पूरी करता हूं।
चलो हम स्वर्ग और नरक के रसते से होते हुए प्रभु के धाम चलेगें।
दोनों चल पडें, सबसे पहले नरक आया।
नरक में बुजुर्ग औरत ने जो़र जो़र से लोगो के रोने कि आवाज़ सुनी।
वहां नरक में सभी लोग दुबले पतले और बीमार दिखाई दे रहे थे।
औरत ने एक आदमी से पूछा यहां आप सब लोगों कि ऐसी हालत क्यों है।
आदमी बोला तो और कैसी हालत होगी, मरने के बाद जबसे यहां आये हैं, हमने एक दिन भी खाना नहीं खाया।
भूख से हमारी आतमायें तड़प रही हैं
बुजुर्ग औरत कि नज़र एक वीशाल पतिले पर पडी़, जो कि लोगों के कद से करीब 300 फूट ऊंचा होगा, उस पतिले के ऊपर एक वीशाल चम्मच लटका हुआ था।
उस पतिले में से बहुत ही शानदार खुशबु आ रही थी।
बुजुर्ग औरत ने उस आदमी से पूछा इस पतिले में कया है।
आदमी मायूस होकर बोला ये पतिला बहुत ही स्वादीशट खीर से हर समय भरा रहता है।
बुजुर्ग औरत ने हैरानी से पूछा, इसमें खीर है
तो आप लोग पेट भरके ये खीर खाते क्यों नहीं, भूख से क्यों तड़प रहें हैं।
आदमी रो रो कर बोलने लगा, कैसे खायें
ये पतिला 300 फीट ऊंचा है हममें से कोई भी उस पतिले तक नहीं पहुँच पाता।
बुजुर्ग औरत को उन पर तरस आ गया
सोचने लगी बेचारे, खीर का पतिला होते हुए भी भूख से बेहाल हैं।
शायद ईश्वर नें इन्हें ये ही दंड दिया होगा
यमराज बुजुर्ग औरत से बोले चलो हमें देर हो रही है।
दोनों चल पडे़, कुछ दूर चलने पर स्वरग आया।
वहां पर बुजुर्ग औरत को सबकी हंसने,खिलखिलाने कि आवाज़ सुनाई दी।
सब लोग बहुत खुश दिखाई दे रहे थे।
उनको खुश देखकर बुजुर्ग औरत भी बहुत खुश हो गई।
पर वहां स्वरग में भी बुजुर्ग औरत कि नज़र वैसे ही 300 फूट उचें पतिले पर पडी़ जैसा नरक में था, उसके ऊपर भी वैसा ही चम्मच लटका हुआ था।
बुजुर्ग औरत ने वहां लोगो से पूछा इस पतिले में कया है।
स्वर्ग के लोग बोले के इसमें बहुत टेस्टी खीर है।
बुजुर्ग औरत हैरान हो गई
उनसे बोली पर ये पतिला तो 300 फीट ऊंचा है
आप लोग तो इस तक पहुँच ही नहीं पाते होगें
उस हिसाब से तो आप लोगों को खाना मिलता ही नहीं होगा, आप लोग भूख से बेहाल होगें
पर मुझे तो आप सभी इतने खुश लग रहे हो, ऐसे कैसे
लोग बोले हम तो सभी लोग इस पतिले में से पेट भर के खीर खाते हैं
औरत बोली पर कैसे,पतिला तो बहुत ऊंचा है।
लोग बोले तो क्या हो गया पतिला ऊंचा है तो
यहां पर कितने सारे पेड़ हैं, ईश्वर ने ये पेड़ पौधे, नदी, झरने हम मनुष्यों के उपयोग के लिये तो बनाईं हैं
हमनें इन पेडो़ कि लकडी़ ली, उसको काटा, फिर लकड़ीयों के तुकडो़ को जोड़ के वीशाल सिढी़ का निर्माण किया
उस लकडी़ की सिढी़ के सहारे हम पतिले तक पहुंचते हैं
और सब मिलकर खीर का आंनद लेते हैं
बुजुर्ग औरत यमराज कि तरफ देखने लगी
यमराज मुसकाये बोले
*ईशवर ने स्वर्ग और नरक मनुष्यों के हाथों में ही सौंप रखा है,चाहें तो अपने लिये नरक बना लें, चाहे तो अपने लिये स्वरग, ईशवर ने सबको एक समान हालातो में डाला हैं*
*उसके लिए उसके सभी बच्चें एक समान हैं, वो किसी से भेदभाव नहीं करता*
*वहां नरक में भी पेेड़ पौधे सब थे, पर वो लोग खुद ही आलसी हैं, उन्हें खीर हाथ में चाहीये,वो कोई कर्म नहीं करना चाहते, कोई मेहनत नहीं करना चाहते, इसलिये भूख से बेहाल हैं*
*कयोकिं ये ही तो ईश्वर कि बनाई इस दुनिया का नियम है,जो कर्म करेगा, मेहनत करेगा, उसी को मीठा फल खाने को मिलेगा*
दोस्तों ये ही आज का सुविचार है, स्वरग और नरक आपके हाथ में है
मेहनत करें, अच्छे कर्म करें और अपने जीवन को स्वरग बनाएं।
आप सबका दिन शुभ हो
और हां, ये पोस्ट अगर आपको ज़रा सी भी पसंद आई हो तो आगे शेयर करना मत भुलियेगा।
नमस्कार 🙏
चंचुला का पाप से भय एवं संसार से वैराग्य
*अच्छे व्यक्ति को समझने के लिए अच्छा हृदय चाहिये*
*न कि अच्छा दिमाग*
*क्योंकि दिमाग हमेशा तर्क करेगा*
*और हृदय हमेशा प्रेम--भाव देखेगा ।।**
🙏 *।।जय श्री कृष्णा।।* 🙏
🌹 *।।सुप्रभात।।* 🌹
चंचुला का पाप से भय एवं संसार से वैराग्य
शौनकजी कहते है -- महाभाग सूतजी ! आप सर्वज्ञ है | महामते ¡ आपके कृपा प्रसाद से मैं बारम्बार कृतार्थ हुआ | इस इतिहास को सुनकर मेरा मन अत्यंत आनंद में निमग्न हो रहा है | अतः अब भगवन शिव में प्रेम बढ़ाने वाली शिव सम्बंधित दूसरी कथा को भी कहिये |
अब सुतजी कहते है - शौनक ! सुनो , मै तुम्हारे सामने गोपनिये कथावस्तु का भी वर्णन करुंगा; क्युकी तुम शिव भक्तो में अग्रगण्य तथा वेद वेदताओ में श्रेष्ठ हो ।
समुद्र के निकटवर्ती प्रदेशो मे वाष्कल नामक एक ग्राम है । जहॉ वैदिक धर्म से च्युत महापापी द्विज निवास करते है , वे सब के सब बड़े दुष्ट है | उनका मन दूषित विषय भोगो में ही लगा रहता है | वे न देवो पर विश्वास करते है न भाग्य पर ; वे सभी बड़े कुटिल वृति वाले है | किसानी करते और भाती भाती के घातक अस्त्र सस्त्र रखते है | वे व्यभिचारी और खल है | ज्ञान , वैराग्य तथा सधर्म का सेवन ही मनुष्यो के लिए परम पुरुषार्थ है - वे इस बात को बिलकुल नहीं जानते है | वे सभी पशु बुद्धि वाले है | ( जहां के द्विज ऐसे बुद्धि वाले हो वह| के अन्य वर्णो के बारे में क्या कहा जाय ) अन्य वर्णो के लोग भी उन्ही कि भाती कुत्सित विचार रखने वाले , स्वधर्म-बिमुख एवं खल है । वे सदा कुकर्म मे लगे रहते और नित्य बिषय भोगो मे हि डुबे रहते है । वहॉ कि सब औरते भी कुटिल स्वभाव कि ,स्वेक्छाचारणी , पापासक्त , कुत्सित विचार वाली और व्यभीचारणी है । वे सदव्यावहार तथा सदाचार से सर्वथा सुन्य है । इस प्रकार वहॉ दुष्टो का ही निवास है।
उस वाष्कल नामक ग्राम मे किसी समय एक बिन्दुग नामक ब्राह्रण रहता था, वह बडा अधम था । दुरात्मा और महापापी था । यधपि उसकी पत्नी बहुत सुन्दर थी, तो भी वो कुमार्ग पर ही चलता था । उसकी पत्नी का नाम चंचुला था ; वह सदा उतम धर्म के पालन मे लगी रहती थी । तो भी वह दुष्ट ब्राह्रण उसे छोरकर वेश्यागामी हो गया था । इस तरह कुकर्म मे लगे हुए उस बिन्दुग के बहुत वर्ष व्यतीत हो गये । उसकी पत्नी चंचुला काम से पीडित होने पर भी स्वधर्म नाश के भय से क्लेश सहकर भी दिर्घकाल तक धर्म से भ्रष्ट नहीं हुइ । परन्तु दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित हो आगे चलकर वो भी दुराचारणी हो गयी ।
इस तरह दुराचार में डुबे हुए उन मुढ चित वाले पति -पत्नी का बहुत सा समय व्यर्थ बित गया । तदन्नतर शुद्रजातिये वेश्या का पति बना हुआ वह दुषित बुद्धी वाला दुष्ट ब्राह्रण बिन्दुग समयानुसार मर कर नरक मे जा पडा । बहुत दिनो तक नरक का दुख भोग कर वह मुढ बुद्धि पापी विन्ध्य पर्वत पर भयंकर पिचाश हुआ ।
इधर उस दुराचारी पती बिन्दुग के मर जाने पर वह मुढ ह्रदया चंचुला बहुत समय तक अपने पुत्रो के साथ अपने घर मे ही रही ।
एक दिन दैवयोग से किसी पुन्य पर्व के आनेपर वह अपने भाइ - बन्धुओ के साथ गोकर्ण प्रदेश मे गयी । तिर्थयात्रियो के संग से उसने भी उस समय जाकर किसी तिर्थ के जल मे स्नान किया । फिर वह साधारणतया ( मेला देखने कि द्रिष्टी से ) बन्धुजनो के साथ यत्र तत्र घुमने लगी ।घुमती -घामती किसी देव मंदिर मे गयी और वहॉ उसने एक दैवज्ञ ब्राह्रण के मुख से भगवान शिव कि परम पवित्र एवं मंगलकारिणी उतम पौराणिक कथा सुनी । कथावाचक ब्राह्रण कह रहे थे कि " जो स्त्री पुरुषो के साथ व्यभीचार करती है , वो मरने के बाद यमलोक जाती है तब यमराज के दुत उनकी योनि मे तपे हुए लोहे का परिध डालते है ।" पौराणिक ब्राह्रण के मुख से ये वैराग्य बढाने वाली कथा सुनकर चंचुला भय से व्याकुल हो कर वहॉ पर कापने लगी । कथा समाप्त हुइ और सुनने वाले सब लोग बाहर चले गये , तब वह भयभीत नारी एकान्त मे शिव पुराण कथा बोलने वाले ब्राह्रण देवता से बोली - ब्राह्रण ! मै अपने धर्म को नही जानती थी । इसलिये मेरे द्वारा बडा दुराचार हुआ है । स्वामीन् ! मेरे उपर अनुपम क्रिपा करके आप मेरा उद्धार किजिये । आज आपके वैराग्य रस से ओत प्रोत इस प्रवचन को सुनकर मुझे बडा भय लग रहा है । मै कॉप उठी हु और मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है । मुझ मुढ चित वाली पापीनी को धिक्कार है । मै सर्वथा निन्दा के योग्य हु । कुत्सित विषयो में फसी हुई हु और अपने धर्म से विमुख हो गयी हु | हाय ! न जाने किस किस घोर कष्टदायक दुर्गति में मुझे पड़ना पड़ेगा और वहां कौन कौन बुद्धिमान पुरुष कुमार्गमे मन लगनेवाली मुझ पापिनी का साथ देगा | मृत्युकाल में उन भयंकर यमदूतों को मै कैसे देखूंगी ? जब वे बलपूर्वक मेरे गले में फंदे डालकर मुझे बंधेंगे तब मई कैसे धीरज धारण कर सकुंगी | नरक में जब मेरे शरीर के टुकड़े -टुकड़े किये जायेंगे , उस समय विशेष दुःख देने वाली उस महायतना को वहां मैं कैसे सहूंगी ? हाय ! मैं मरी गयी ! मैं जल गयी ! मेरा हृदय विदीर्ण हो गया और मैं सब प्रकार से नष्ट हो गयी ; क्युकी मैं हर तरह से पाप में ही डूबी रही हु | ब्राह्मण ! आप ही मेरे गुरु , आपही माता और आपही पिता है | आपकी शरण में आई हु , मुझ दिन अबला पर आप ही उद्धार कीजिये |
अब सूत जी कहते है - शौनक ! इस प्रकार खेद और वैराग्य से युक्त चंचुला ब्राह्मण देवता के चरणो में गिर गयी | तब उन बुद्धिमान ब्राह्मण ने उसे कृपा पूर्वक उठाया और इस प्रकार कहा |
*न कि अच्छा दिमाग*
*क्योंकि दिमाग हमेशा तर्क करेगा*
*और हृदय हमेशा प्रेम--भाव देखेगा ।।**
🙏 *।।जय श्री कृष्णा।।* 🙏
🌹 *।।सुप्रभात।।* 🌹
चंचुला का पाप से भय एवं संसार से वैराग्य
शौनकजी कहते है -- महाभाग सूतजी ! आप सर्वज्ञ है | महामते ¡ आपके कृपा प्रसाद से मैं बारम्बार कृतार्थ हुआ | इस इतिहास को सुनकर मेरा मन अत्यंत आनंद में निमग्न हो रहा है | अतः अब भगवन शिव में प्रेम बढ़ाने वाली शिव सम्बंधित दूसरी कथा को भी कहिये |
अब सुतजी कहते है - शौनक ! सुनो , मै तुम्हारे सामने गोपनिये कथावस्तु का भी वर्णन करुंगा; क्युकी तुम शिव भक्तो में अग्रगण्य तथा वेद वेदताओ में श्रेष्ठ हो ।
समुद्र के निकटवर्ती प्रदेशो मे वाष्कल नामक एक ग्राम है । जहॉ वैदिक धर्म से च्युत महापापी द्विज निवास करते है , वे सब के सब बड़े दुष्ट है | उनका मन दूषित विषय भोगो में ही लगा रहता है | वे न देवो पर विश्वास करते है न भाग्य पर ; वे सभी बड़े कुटिल वृति वाले है | किसानी करते और भाती भाती के घातक अस्त्र सस्त्र रखते है | वे व्यभिचारी और खल है | ज्ञान , वैराग्य तथा सधर्म का सेवन ही मनुष्यो के लिए परम पुरुषार्थ है - वे इस बात को बिलकुल नहीं जानते है | वे सभी पशु बुद्धि वाले है | ( जहां के द्विज ऐसे बुद्धि वाले हो वह| के अन्य वर्णो के बारे में क्या कहा जाय ) अन्य वर्णो के लोग भी उन्ही कि भाती कुत्सित विचार रखने वाले , स्वधर्म-बिमुख एवं खल है । वे सदा कुकर्म मे लगे रहते और नित्य बिषय भोगो मे हि डुबे रहते है । वहॉ कि सब औरते भी कुटिल स्वभाव कि ,स्वेक्छाचारणी , पापासक्त , कुत्सित विचार वाली और व्यभीचारणी है । वे सदव्यावहार तथा सदाचार से सर्वथा सुन्य है । इस प्रकार वहॉ दुष्टो का ही निवास है।
उस वाष्कल नामक ग्राम मे किसी समय एक बिन्दुग नामक ब्राह्रण रहता था, वह बडा अधम था । दुरात्मा और महापापी था । यधपि उसकी पत्नी बहुत सुन्दर थी, तो भी वो कुमार्ग पर ही चलता था । उसकी पत्नी का नाम चंचुला था ; वह सदा उतम धर्म के पालन मे लगी रहती थी । तो भी वह दुष्ट ब्राह्रण उसे छोरकर वेश्यागामी हो गया था । इस तरह कुकर्म मे लगे हुए उस बिन्दुग के बहुत वर्ष व्यतीत हो गये । उसकी पत्नी चंचुला काम से पीडित होने पर भी स्वधर्म नाश के भय से क्लेश सहकर भी दिर्घकाल तक धर्म से भ्रष्ट नहीं हुइ । परन्तु दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित हो आगे चलकर वो भी दुराचारणी हो गयी ।
इस तरह दुराचार में डुबे हुए उन मुढ चित वाले पति -पत्नी का बहुत सा समय व्यर्थ बित गया । तदन्नतर शुद्रजातिये वेश्या का पति बना हुआ वह दुषित बुद्धी वाला दुष्ट ब्राह्रण बिन्दुग समयानुसार मर कर नरक मे जा पडा । बहुत दिनो तक नरक का दुख भोग कर वह मुढ बुद्धि पापी विन्ध्य पर्वत पर भयंकर पिचाश हुआ ।
इधर उस दुराचारी पती बिन्दुग के मर जाने पर वह मुढ ह्रदया चंचुला बहुत समय तक अपने पुत्रो के साथ अपने घर मे ही रही ।
एक दिन दैवयोग से किसी पुन्य पर्व के आनेपर वह अपने भाइ - बन्धुओ के साथ गोकर्ण प्रदेश मे गयी । तिर्थयात्रियो के संग से उसने भी उस समय जाकर किसी तिर्थ के जल मे स्नान किया । फिर वह साधारणतया ( मेला देखने कि द्रिष्टी से ) बन्धुजनो के साथ यत्र तत्र घुमने लगी ।घुमती -घामती किसी देव मंदिर मे गयी और वहॉ उसने एक दैवज्ञ ब्राह्रण के मुख से भगवान शिव कि परम पवित्र एवं मंगलकारिणी उतम पौराणिक कथा सुनी । कथावाचक ब्राह्रण कह रहे थे कि " जो स्त्री पुरुषो के साथ व्यभीचार करती है , वो मरने के बाद यमलोक जाती है तब यमराज के दुत उनकी योनि मे तपे हुए लोहे का परिध डालते है ।" पौराणिक ब्राह्रण के मुख से ये वैराग्य बढाने वाली कथा सुनकर चंचुला भय से व्याकुल हो कर वहॉ पर कापने लगी । कथा समाप्त हुइ और सुनने वाले सब लोग बाहर चले गये , तब वह भयभीत नारी एकान्त मे शिव पुराण कथा बोलने वाले ब्राह्रण देवता से बोली - ब्राह्रण ! मै अपने धर्म को नही जानती थी । इसलिये मेरे द्वारा बडा दुराचार हुआ है । स्वामीन् ! मेरे उपर अनुपम क्रिपा करके आप मेरा उद्धार किजिये । आज आपके वैराग्य रस से ओत प्रोत इस प्रवचन को सुनकर मुझे बडा भय लग रहा है । मै कॉप उठी हु और मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है । मुझ मुढ चित वाली पापीनी को धिक्कार है । मै सर्वथा निन्दा के योग्य हु । कुत्सित विषयो में फसी हुई हु और अपने धर्म से विमुख हो गयी हु | हाय ! न जाने किस किस घोर कष्टदायक दुर्गति में मुझे पड़ना पड़ेगा और वहां कौन कौन बुद्धिमान पुरुष कुमार्गमे मन लगनेवाली मुझ पापिनी का साथ देगा | मृत्युकाल में उन भयंकर यमदूतों को मै कैसे देखूंगी ? जब वे बलपूर्वक मेरे गले में फंदे डालकर मुझे बंधेंगे तब मई कैसे धीरज धारण कर सकुंगी | नरक में जब मेरे शरीर के टुकड़े -टुकड़े किये जायेंगे , उस समय विशेष दुःख देने वाली उस महायतना को वहां मैं कैसे सहूंगी ? हाय ! मैं मरी गयी ! मैं जल गयी ! मेरा हृदय विदीर्ण हो गया और मैं सब प्रकार से नष्ट हो गयी ; क्युकी मैं हर तरह से पाप में ही डूबी रही हु | ब्राह्मण ! आप ही मेरे गुरु , आपही माता और आपही पिता है | आपकी शरण में आई हु , मुझ दिन अबला पर आप ही उद्धार कीजिये |
अब सूत जी कहते है - शौनक ! इस प्रकार खेद और वैराग्य से युक्त चंचुला ब्राह्मण देवता के चरणो में गिर गयी | तब उन बुद्धिमान ब्राह्मण ने उसे कृपा पूर्वक उठाया और इस प्रकार कहा |
*कर्म भोग-प्रारब्ध* ........
*कर्म भोग-प्रारब्ध* ........
===========
*एक गाँव में एक किसान रहता था उसके परिवार*
*में उसकी पत्नी और एक लड़का था।कुछ सालों के बाद पत्नी मृत्यु हो गई उस समय लड़के की उम्र दस साल थी किसान ने दुसरी शादी कर ली*।
*उस दुसरी पत्नी से भी किसान को एक पुत्र प्राप्त हुआ।किसान की दुसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई*।
*किसान का बड़ा बेटा जो पहली पत्नी से प्राप्त हुआ था जब शादी के योग्य हुआ तब किसान ने बड़े बेटे की शादी कर दी।फिर किसान की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई*।
*किसान का छोटा बेटा जो दुसरी पत्नी से प्राप्त हुआ था और पहली पत्नी से प्राप्त बड़ा बेटा दोनो साथ साथ रहते थे*।
*कुछ टाईम बाद किसान के छोटे लड़के की तबीयत खराब रहने लगी*।
*बड़े भाई ने कुछ आस पास के वैद्यों से ईलाज*
*करवाया पर कोई राहत ना मिली।छोटे भाई की दिन पर दिन तबीयत बिगड़ी जा रही थी और बहुत खर्च भी हो रहा था*।
*एक दिन बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह की, यदि ये छोटा भाई मर जाऐ तो हमें इसके ईलाज के लिऐ पैसा खर्च ना करना पड़ेगा*।
*तब उसकी पत्नी ने कहा: कि क्यों न किसी वैद्य से बात करके इसे जहर दे दिया जाऐ किसी को पता भी ना चलेगा कोई रिश्तेदारी में भी कोई शक ना करेगा कि बिमार था बिमारी से मृत्यु हो गई*।
*बड़े भाई ने ऐसे ही किया एक वैद्य से बात की आप अपनी फीस बताओ और ऐसा करना*
*मेरे*
*छोटे भाई को जहर देना है*!
*वैद्य ने बात मान ली और लड़के को जहर दे दिया और लड़के की मृत्यु हो गई।उसके भाई*
*भाभी ने खुशी मनाई की रास्ते का काँटा निकल गया अब सारी सम्पति अपनी हो गई*।
*उसका अतिँम संस्कार कर दिया।कुछ महीनो पश्चात उस किसान के बड़े लड़के की पत्नी को लड़का हुआ*!
*उन पति पत्नी ने खुब खुशी मनाई,बड़े ही लाड प्यार से लड़के की परवरिश की गिने दिनो में लड़का जवान हो गया।उन्होंने अपने लड़के की शादी कर दी!*
*शादी के कुछ समय बाद अचानक लड़का बीमार रहने लगा।माँ बाप ने उसके ईलाज के लिऐ बहुत वैद्यों से ईलाज करवाया*।
*जिसने जितना पैसा माँगा दिया सब दिया कि लड़का ठीक हो जाऐ*।
*अपने लड़के के ईलाज में अपनी आधी सम्पति तक बेच दी पर लड़का बिमारी के कारण मरने की कगार पर आ गया*।
*शरीर इतना ज्यादा कमजोर हो गया कि अस्थि पिजंर शेष रह गया था*।
*एक दिन लड़के को चारपाई पर लेटा रखा था और उसका पिता साथ में बैठा अपने पुत्र की ये दयनीय हालत देख कर दुःखी होकर उसकी और देख रहा था!*
*तभी लड़का अपने पिता से बोला, कि भाई! अपना सब हिसाब हो गया बस अब कफन और लकड़ी का हिसाब बाकी है उसकी तैयारी कर लो*।
*ये सुनकर उसके पिता ने सोचा कि लड़के का*
*दिमाग भी काम ना कर रहा बीमारी के कारण और बोला बेटा मैं तेरा बाप हुँ, भाई नहीं*।
*तब लड़का बोला मै आपका वही भाई हुँ जिसे*
*आप ने जहर खिलाकर मरवाया था जिस सम्पति के लिऐ आप ने मरवाया था मुझे*
*अब*
*वो मेरे ईलाज के लिऐ आधी बिक चुकी है आपकी की शेष है हमारा हिसाब हो गया*!
*तब उसका पिता फूट-फूट कर रोते हुवे बोला, कि मेरा तो कुल नाश हो गया जो किया मेरे आगे आ गया पर तेरी पत्नी का क्या दोष है जो इस बेचारी को जिन्दा जलाया जायेगा(उस समय सतीप्रथा थी, जिसमें पति के मरने के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था)*
*तब वो लड़का बोला*:-
*कि वो वैद्य कहाँ, जिसने मुझे जहर खिलाया था*
*तब उसके पिता ने कहा कि आपकी मृत्यु के तीन साल*
*बाद वो मर गया था*।
*तब लड़के ने कहा* *-कि*
*ये वही दुष्ट वैद्य*
*आज*
*मेरी पत्नी रुप में है मेरे मरने पर इसे*
*जिन्दा जलाया जायेगा*।
*परमेश्वर कहते हैं* *कि*
*तुमने उस दरगाह का*,
*महल ना देखा धर्मराज लेगा*,
*तिल तिल का लेखा*।।N
*एक लेवा एक देवा दुतम*,
*कोई किसी का पिता ना पुत्रम*
*ऋण सबंध जुड़ा है ठाडा*,
*अंत समय सब बारह बाटा* ।।
—*एक बेहतरीन प्राप्त संदेश सभी के मनन् के लिये*।
अच्छा लगे तो ही आगे भेजना।
'हमारे कर्मो का फल।'
===========
*एक गाँव में एक किसान रहता था उसके परिवार*
*में उसकी पत्नी और एक लड़का था।कुछ सालों के बाद पत्नी मृत्यु हो गई उस समय लड़के की उम्र दस साल थी किसान ने दुसरी शादी कर ली*।
*उस दुसरी पत्नी से भी किसान को एक पुत्र प्राप्त हुआ।किसान की दुसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई*।
*किसान का बड़ा बेटा जो पहली पत्नी से प्राप्त हुआ था जब शादी के योग्य हुआ तब किसान ने बड़े बेटे की शादी कर दी।फिर किसान की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई*।
*किसान का छोटा बेटा जो दुसरी पत्नी से प्राप्त हुआ था और पहली पत्नी से प्राप्त बड़ा बेटा दोनो साथ साथ रहते थे*।
*कुछ टाईम बाद किसान के छोटे लड़के की तबीयत खराब रहने लगी*।
*बड़े भाई ने कुछ आस पास के वैद्यों से ईलाज*
*करवाया पर कोई राहत ना मिली।छोटे भाई की दिन पर दिन तबीयत बिगड़ी जा रही थी और बहुत खर्च भी हो रहा था*।
*एक दिन बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह की, यदि ये छोटा भाई मर जाऐ तो हमें इसके ईलाज के लिऐ पैसा खर्च ना करना पड़ेगा*।
*तब उसकी पत्नी ने कहा: कि क्यों न किसी वैद्य से बात करके इसे जहर दे दिया जाऐ किसी को पता भी ना चलेगा कोई रिश्तेदारी में भी कोई शक ना करेगा कि बिमार था बिमारी से मृत्यु हो गई*।
*बड़े भाई ने ऐसे ही किया एक वैद्य से बात की आप अपनी फीस बताओ और ऐसा करना*
*मेरे*
*छोटे भाई को जहर देना है*!
*वैद्य ने बात मान ली और लड़के को जहर दे दिया और लड़के की मृत्यु हो गई।उसके भाई*
*भाभी ने खुशी मनाई की रास्ते का काँटा निकल गया अब सारी सम्पति अपनी हो गई*।
*उसका अतिँम संस्कार कर दिया।कुछ महीनो पश्चात उस किसान के बड़े लड़के की पत्नी को लड़का हुआ*!
*उन पति पत्नी ने खुब खुशी मनाई,बड़े ही लाड प्यार से लड़के की परवरिश की गिने दिनो में लड़का जवान हो गया।उन्होंने अपने लड़के की शादी कर दी!*
*शादी के कुछ समय बाद अचानक लड़का बीमार रहने लगा।माँ बाप ने उसके ईलाज के लिऐ बहुत वैद्यों से ईलाज करवाया*।
*जिसने जितना पैसा माँगा दिया सब दिया कि लड़का ठीक हो जाऐ*।
*अपने लड़के के ईलाज में अपनी आधी सम्पति तक बेच दी पर लड़का बिमारी के कारण मरने की कगार पर आ गया*।
*शरीर इतना ज्यादा कमजोर हो गया कि अस्थि पिजंर शेष रह गया था*।
*एक दिन लड़के को चारपाई पर लेटा रखा था और उसका पिता साथ में बैठा अपने पुत्र की ये दयनीय हालत देख कर दुःखी होकर उसकी और देख रहा था!*
*तभी लड़का अपने पिता से बोला, कि भाई! अपना सब हिसाब हो गया बस अब कफन और लकड़ी का हिसाब बाकी है उसकी तैयारी कर लो*।
*ये सुनकर उसके पिता ने सोचा कि लड़के का*
*दिमाग भी काम ना कर रहा बीमारी के कारण और बोला बेटा मैं तेरा बाप हुँ, भाई नहीं*।
*तब लड़का बोला मै आपका वही भाई हुँ जिसे*
*आप ने जहर खिलाकर मरवाया था जिस सम्पति के लिऐ आप ने मरवाया था मुझे*
*अब*
*वो मेरे ईलाज के लिऐ आधी बिक चुकी है आपकी की शेष है हमारा हिसाब हो गया*!
*तब उसका पिता फूट-फूट कर रोते हुवे बोला, कि मेरा तो कुल नाश हो गया जो किया मेरे आगे आ गया पर तेरी पत्नी का क्या दोष है जो इस बेचारी को जिन्दा जलाया जायेगा(उस समय सतीप्रथा थी, जिसमें पति के मरने के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था)*
*तब वो लड़का बोला*:-
*कि वो वैद्य कहाँ, जिसने मुझे जहर खिलाया था*
*तब उसके पिता ने कहा कि आपकी मृत्यु के तीन साल*
*बाद वो मर गया था*।
*तब लड़के ने कहा* *-कि*
*ये वही दुष्ट वैद्य*
*आज*
*मेरी पत्नी रुप में है मेरे मरने पर इसे*
*जिन्दा जलाया जायेगा*।
*परमेश्वर कहते हैं* *कि*
*तुमने उस दरगाह का*,
*महल ना देखा धर्मराज लेगा*,
*तिल तिल का लेखा*।।N
*एक लेवा एक देवा दुतम*,
*कोई किसी का पिता ना पुत्रम*
*ऋण सबंध जुड़ा है ठाडा*,
*अंत समय सब बारह बाटा* ।।
—*एक बेहतरीन प्राप्त संदेश सभी के मनन् के लिये*।
अच्छा लगे तो ही आगे भेजना।
'हमारे कर्मो का फल।'
*जानिए जब कोई आपके पैर छुए तो आपको क्या-क्या करना चाहिए ।*
*जानिए जब कोई आपके पैर छुए तो आपको क्या-क्या करना चाहिए ।*
किसी के पैर छूने का मतलब है उसके प्रति समर्पण भाव जगाना। जब मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार खत्म हो जाता है।
पुराने समय से ही परंपरा चली आ रही है कि जब भी हम किसी विद्वान व्यक्ति या उम्र में बड़े व्यक्ति से मिलते हैं तो उनके पैर छुते हैं।
इस परंपरा को मान-सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। यह बात तो सभी जानते हैं कि बड़ों के पैर छुना चाहिए, लेकिन यह बात कम ही लोग जानते हैं कि जब कोई हमारे पैर छुए तो हमें क्या करना चाहिए।
पैर छुना महत्वपूर्ण परंपरा है और आज भी इसका पालन अधिकतर लोग करते हैं। इस परंपरा के संबंध में कई नियम भी हैं। इस परंपरा के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक, दोनों ही कारण बताए गए हैं। जब भी कोई व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, आपके पैर छुए तो उन्हें आर्शीवाद तो देना चाहिए, साथ ही भगवान का नाम भी लेना चाहिए।
आमतौर पर हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि हमारा पैर किसी को ना लगे।
ऐसा होने पर हमें दोष लगता है और जब कोई हमारे पैर छुता है तब भी हमें दोष लगता है। अत: इस दोष से बचने के लिए यहां दिए गए उपाय अवश्य करना चाहिए।
शास्त्रों में लिखा है कि
*अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।*
*चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।*
इस श्लोक का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति रोज बड़े-बुजुर्गों के सम्मान में प्रणाम और चरण स्पर्श करता है। उसकी उम्र, विद्या, यश और शक्ति बढ़ती जाती है।
जब भी कोई हमारे पैर छूता है तो उस समय भगवान का नाम लेने से पैर छूने वाले व्यक्ति को भी सकारात्मक फल मिलते हैं।
आशीर्वाद देने से पैर छूने वाले व्यक्ति की समस्याएं खत्म होती हैं, उम्र बढ़ती है और नकारात्मक शक्तियों से उसकी रक्षा होती है। हमारे द्वारा किए गए शुभ कर्मों का अच्छा असर पैर छुने वाले व्यक्ति पर भी होता है। जब हम भगवान को याद करते हुए किसी को सच्चे मन से आशीर्वाद देते हैं तो उसे लाभ अवश्य मिलता है। किसी के लिए अच्छा सोचने पर हमारा पुण्य भी बढ़ता है।
पैर छूना या प्रणाम करना, केवल एक परंपरा नहीं है, यह एक वैज्ञानिक क्रिया है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ी है। पैर छूने से केवल बड़ों का आशीर्वाद ही नहीं मिलता, बल्कि बड़ों के स्वभाव की अच्छी बातें भी हमारे अंदर उतर जाती है।
पैर छूने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे शारीरिक कसरत होती है। आमतौर पर तीन तरीकों से पैर छुए जाते हैं।
पहला तरीका- झुककर पैर छूना।
दूसरा तरीका- घुटने के बल बैठकर पैर छूना।
तीसरा तरीका- साष्टांग प्रणाम करना।
क्या है फायदे:
झुककर पैर छूना– झुककर पैर छूने से हमारी कमर और रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है।
घुटने के बल बैठकर पैर छूना- इस विधि से पैर छूने पर हमारे शरीर के जोड़ों पर बल पड़ता है, जिससे जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।
साष्टांग प्रणाम–
इस विधि में शरीर के सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए सीधे तन जाते हैं, जिससे शरीर का स्ट्रेस दूर होता है। इसके अलावा, झुकने से सिर का रक्त प्रवाह व्यवस्थित होता है जो हमारी आंखों के साथ ही पूरे शरीर के लिए लाभदायक है।
पैर छूने के तीसरे तरीके का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार खत्म होता है। किसी के पैर छूने का मतलब है उसके प्रति समर्पण भाव जगाना। जब मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार खत्म हो जाता है ।
किसी के पैर छूने का मतलब है उसके प्रति समर्पण भाव जगाना। जब मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार खत्म हो जाता है।
पुराने समय से ही परंपरा चली आ रही है कि जब भी हम किसी विद्वान व्यक्ति या उम्र में बड़े व्यक्ति से मिलते हैं तो उनके पैर छुते हैं।
इस परंपरा को मान-सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। यह बात तो सभी जानते हैं कि बड़ों के पैर छुना चाहिए, लेकिन यह बात कम ही लोग जानते हैं कि जब कोई हमारे पैर छुए तो हमें क्या करना चाहिए।
पैर छुना महत्वपूर्ण परंपरा है और आज भी इसका पालन अधिकतर लोग करते हैं। इस परंपरा के संबंध में कई नियम भी हैं। इस परंपरा के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक, दोनों ही कारण बताए गए हैं। जब भी कोई व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, आपके पैर छुए तो उन्हें आर्शीवाद तो देना चाहिए, साथ ही भगवान का नाम भी लेना चाहिए।
आमतौर पर हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि हमारा पैर किसी को ना लगे।
ऐसा होने पर हमें दोष लगता है और जब कोई हमारे पैर छुता है तब भी हमें दोष लगता है। अत: इस दोष से बचने के लिए यहां दिए गए उपाय अवश्य करना चाहिए।
शास्त्रों में लिखा है कि
*अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।*
*चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।*
इस श्लोक का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति रोज बड़े-बुजुर्गों के सम्मान में प्रणाम और चरण स्पर्श करता है। उसकी उम्र, विद्या, यश और शक्ति बढ़ती जाती है।
जब भी कोई हमारे पैर छूता है तो उस समय भगवान का नाम लेने से पैर छूने वाले व्यक्ति को भी सकारात्मक फल मिलते हैं।
आशीर्वाद देने से पैर छूने वाले व्यक्ति की समस्याएं खत्म होती हैं, उम्र बढ़ती है और नकारात्मक शक्तियों से उसकी रक्षा होती है। हमारे द्वारा किए गए शुभ कर्मों का अच्छा असर पैर छुने वाले व्यक्ति पर भी होता है। जब हम भगवान को याद करते हुए किसी को सच्चे मन से आशीर्वाद देते हैं तो उसे लाभ अवश्य मिलता है। किसी के लिए अच्छा सोचने पर हमारा पुण्य भी बढ़ता है।
पैर छूना या प्रणाम करना, केवल एक परंपरा नहीं है, यह एक वैज्ञानिक क्रिया है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ी है। पैर छूने से केवल बड़ों का आशीर्वाद ही नहीं मिलता, बल्कि बड़ों के स्वभाव की अच्छी बातें भी हमारे अंदर उतर जाती है।
पैर छूने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे शारीरिक कसरत होती है। आमतौर पर तीन तरीकों से पैर छुए जाते हैं।
पहला तरीका- झुककर पैर छूना।
दूसरा तरीका- घुटने के बल बैठकर पैर छूना।
तीसरा तरीका- साष्टांग प्रणाम करना।
क्या है फायदे:
झुककर पैर छूना– झुककर पैर छूने से हमारी कमर और रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है।
घुटने के बल बैठकर पैर छूना- इस विधि से पैर छूने पर हमारे शरीर के जोड़ों पर बल पड़ता है, जिससे जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।
साष्टांग प्रणाम–
इस विधि में शरीर के सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए सीधे तन जाते हैं, जिससे शरीर का स्ट्रेस दूर होता है। इसके अलावा, झुकने से सिर का रक्त प्रवाह व्यवस्थित होता है जो हमारी आंखों के साथ ही पूरे शरीर के लिए लाभदायक है।
पैर छूने के तीसरे तरीके का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार खत्म होता है। किसी के पैर छूने का मतलब है उसके प्रति समर्पण भाव जगाना। जब मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार खत्म हो जाता है ।
महात्मा गांधी की मृत्यु से पहले ली गयी ये तस्वीरें अाप ने आज से पहले कभी नहीं देखी होंगी
महात्मा गांधी की कुछ ऐसी तस्वीरें ले कर आ रहा हुं जो अपने कभी भी नहीं देखी होंगी.
आप सभी लोगो ने रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में बहुत बार सुना होगा पर अपने कभी भी नहीं देखा होगा की वो आखिर दीखते कैसे होंगे तो दोस्तों आप सभी की जानकारी के लिए बता देता हुं की महात्मा गाँधी के साथ जो बैठे है वो रवींद्रनाथ टैगोर जी ही है. इसलिए जिसने भी इन्हे नहीं देखा है वो एक बार ज़रूर देख ले.
महात्मा गाँधी जी के साथ जो बैठे है वो है सुभाष चन्द्र बोस, अापने भी इनके बारे में बहुत कुछ सुना होगा पर कभी भी देखने का मौका नहीं मिला होगा. तो दोस्तों मैने सोचा की क्यों न आप सभी को हमारे देश के बापू जी के साथ मिलवाया जाए और उनकी कुछ अनदेखी तस्वीरें आपको दिखाई जाए.
महाराष्ट्र के एक आश्रम में महात्मा गाँधी जी खाना खाते हुंए दिखाए गए है यहाँ पर एक लड़की की शादी हो रही थी जिसमे गाँधी जी खाना खाने के लिए पहुंचे थे. आप सभी तो जानते ही है की गाँधी जी ने हमारे देश की आज़ादी के लिए कितना ज्यादा संघर्ष किया था.
ये तस्वीर राजकोट के एक आश्रम की है जहाँ पर गाँधी जी बीमारी की हालत में आराम कर रहे थे और वहा पर कुछ आदमी उनकी सेवा कर रहे थे. भारत का हर एक नागरिक इस बात को तो जनता ही है की भारत की आज़ादी के लिए गाँधी जी का कितना बड़ा योगदान रहा है. और उनकी कुर्बानी कितनी ज्यादा रही है.
ये तस्वीर है महाराष्ट्र के एक सेवाग्राम आश्रम की जहाँ पर गाँधी जी खड़े है और धुप ज्यादा होने के कारण उन्होंने अपने सर के ऊपर तकिया रखा हुंआ है ताकि वह धुप से बच सके. और इस तरह गाँधी जी ने इतनी उम्र होने के बाद भी हमारे देश के लिए संघर्ष किया था और आज़ाद करवाया था.
ये तस्वीर मुंबई के बिरला हाउस की है जहाँ पर गाँधी जी अपना वजन कर रहे थे की उनका वजन कितना है. पर दोस्तों सोचने वाली बात है ऐसा शरीर ले कर भी गाँधी जी ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी है ये बात तो सोचने वाली है.
ये तस्वीर 1938 में ली गयी थी जब गाँधी जी की कार रास्ते में धंस गयी थी और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कार को धक्का लगा कर यहाँ से बाहर निकाला था. और फिर गांधी जी की कार यहाँ से बाहर निकल पायी थी फिर इन्होंने अपनी कार को यहाँ से बाहर निकाला था.
ये तस्वीर उस समय की है जब हमारे देश को आज़ाद करवाने के लिए गाँधी जी पूरी मेहनत कर रहे थे और देश की आज़ादी के लिए दान इक्कठा कर रहे थे ताकि हमारे देश को आज़ादी के लिए जो भी ज़रूर समान है वो आराम से ख़रीद सके और हमारा देश आराम से आज़ाद हो सके.
आप सभी लोगो ने रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में बहुत बार सुना होगा पर अपने कभी भी नहीं देखा होगा की वो आखिर दीखते कैसे होंगे तो दोस्तों आप सभी की जानकारी के लिए बता देता हुं की महात्मा गाँधी के साथ जो बैठे है वो रवींद्रनाथ टैगोर जी ही है. इसलिए जिसने भी इन्हे नहीं देखा है वो एक बार ज़रूर देख ले.
महात्मा गाँधी जी के साथ जो बैठे है वो है सुभाष चन्द्र बोस, अापने भी इनके बारे में बहुत कुछ सुना होगा पर कभी भी देखने का मौका नहीं मिला होगा. तो दोस्तों मैने सोचा की क्यों न आप सभी को हमारे देश के बापू जी के साथ मिलवाया जाए और उनकी कुछ अनदेखी तस्वीरें आपको दिखाई जाए.
महाराष्ट्र के एक आश्रम में महात्मा गाँधी जी खाना खाते हुंए दिखाए गए है यहाँ पर एक लड़की की शादी हो रही थी जिसमे गाँधी जी खाना खाने के लिए पहुंचे थे. आप सभी तो जानते ही है की गाँधी जी ने हमारे देश की आज़ादी के लिए कितना ज्यादा संघर्ष किया था.
ये तस्वीर राजकोट के एक आश्रम की है जहाँ पर गाँधी जी बीमारी की हालत में आराम कर रहे थे और वहा पर कुछ आदमी उनकी सेवा कर रहे थे. भारत का हर एक नागरिक इस बात को तो जनता ही है की भारत की आज़ादी के लिए गाँधी जी का कितना बड़ा योगदान रहा है. और उनकी कुर्बानी कितनी ज्यादा रही है.
ये तस्वीर है महाराष्ट्र के एक सेवाग्राम आश्रम की जहाँ पर गाँधी जी खड़े है और धुप ज्यादा होने के कारण उन्होंने अपने सर के ऊपर तकिया रखा हुंआ है ताकि वह धुप से बच सके. और इस तरह गाँधी जी ने इतनी उम्र होने के बाद भी हमारे देश के लिए संघर्ष किया था और आज़ाद करवाया था.
ये तस्वीर मुंबई के बिरला हाउस की है जहाँ पर गाँधी जी अपना वजन कर रहे थे की उनका वजन कितना है. पर दोस्तों सोचने वाली बात है ऐसा शरीर ले कर भी गाँधी जी ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी है ये बात तो सोचने वाली है.
ये तस्वीर 1938 में ली गयी थी जब गाँधी जी की कार रास्ते में धंस गयी थी और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कार को धक्का लगा कर यहाँ से बाहर निकाला था. और फिर गांधी जी की कार यहाँ से बाहर निकल पायी थी फिर इन्होंने अपनी कार को यहाँ से बाहर निकाला था.
ये तस्वीर उस समय की है जब हमारे देश को आज़ाद करवाने के लिए गाँधी जी पूरी मेहनत कर रहे थे और देश की आज़ादी के लिए दान इक्कठा कर रहे थे ताकि हमारे देश को आज़ादी के लिए जो भी ज़रूर समान है वो आराम से ख़रीद सके और हमारा देश आराम से आज़ाद हो सके.
4600 फीट की ऊंचाई, सिर्फ 2 बड़े हाथों पर टिका है ये पुल, PHOTOS
वियतनाम में एक बेहद अनोखा फुट ओवर ब्रिज बनाया गया है. सेंट्रल वियतनाम के डा नांग में बा ना हिल्स पर स्थित द गोल्डेन ब्रिज सिर्फ 'दो बड़े हाथों' पर टिका हुआ है. इसे दुनिया के सबसे अनोखे और अजीब स्ट्रक्चर में एक माना जा रहा है. (
जून में इस पुल को आम लोगों के लिए खोला गया है. यह 150 मीटर लंबा है और समुद्र तल से 1400 मीटर (करीब 4600 फीट) की ऊंचाई पर है
पुल के ऊपर से खूबसूरत पहाड़ी नजर आती है. करीब एक साल में इसे तैयार किया गया है.
इस क्षेत्र में फ्रेंच गांवों से मिलते-जुलते घर और बगीचे हैं. यहां 5.8 किमी लंबा केबल कार ट्रैक भी है. कभी यह दुनिया का सबसे लंबा और ऊंचा ट्रैक होता था.
द गोल्डेन ब्रिज की शुरुआती डिजायन टीए लैंडस्केप आर्किटेक्चर ने तैयार की थी.
जून में इस पुल को आम लोगों के लिए खोला गया है. यह 150 मीटर लंबा है और समुद्र तल से 1400 मीटर (करीब 4600 फीट) की ऊंचाई पर है
पुल के ऊपर से खूबसूरत पहाड़ी नजर आती है. करीब एक साल में इसे तैयार किया गया है.
इस क्षेत्र में फ्रेंच गांवों से मिलते-जुलते घर और बगीचे हैं. यहां 5.8 किमी लंबा केबल कार ट्रैक भी है. कभी यह दुनिया का सबसे लंबा और ऊंचा ट्रैक होता था.
द गोल्डेन ब्रिज की शुरुआती डिजायन टीए लैंडस्केप आर्किटेक्चर ने तैयार की थी.
" जैसे वीज के अभाव में वृक्ष का जन्म नहीं हो सकता, ठीक वैसे ही
राधे राधे..🌺🙏
" जैसे वीज के अभाव में वृक्ष का जन्म नहीं हो सकता, ठीक वैसे ही उच्च विचारों के अभाव में उच्च कर्म घटित नहीं हो सकता। शुभ कर्म और अशुभ कर्म दोनों कर्मों के पीछे जो कारण है वह विचार ही है। हमारे विचारों का स्तर जितना श्रेष्ठ और पवित्र होगा हमारे कर्म भी उतने ही श्रेष्ठ और पवित्र होंगे।
कोई चोर जब तक चोरी नहीं कर सकता, जब तक कि वह पहले उसका विचार न कर लें। अत: हमारा कोई भी कर्म कार्य करने से पहले विचारों में घटित हो जाता है। विचारों का स्तर हमारे संग पर निर्भर करता है। हमारी संगति जितनी अच्छी होगी हम उतने ही अच्छे विचारों के धनी होंगे।
जब तक हमारे विचार शुद्ध नहीं होंगे तब तक हमारे कर्म भी शुद्ध नहीं हो सकते। इसलिए विचारों को शुद्ध किये बिना कर्म की शुद्धि का प्रयास करना व्यर्थ है। जिसके विचार पवित्र हों उससे बुरा कर्म कभी हो ही नहीं सकता है।
!! 🌺जय श्री राधे कृष्णा 🌺!!
" जैसे वीज के अभाव में वृक्ष का जन्म नहीं हो सकता, ठीक वैसे ही उच्च विचारों के अभाव में उच्च कर्म घटित नहीं हो सकता। शुभ कर्म और अशुभ कर्म दोनों कर्मों के पीछे जो कारण है वह विचार ही है। हमारे विचारों का स्तर जितना श्रेष्ठ और पवित्र होगा हमारे कर्म भी उतने ही श्रेष्ठ और पवित्र होंगे।
कोई चोर जब तक चोरी नहीं कर सकता, जब तक कि वह पहले उसका विचार न कर लें। अत: हमारा कोई भी कर्म कार्य करने से पहले विचारों में घटित हो जाता है। विचारों का स्तर हमारे संग पर निर्भर करता है। हमारी संगति जितनी अच्छी होगी हम उतने ही अच्छे विचारों के धनी होंगे।
जब तक हमारे विचार शुद्ध नहीं होंगे तब तक हमारे कर्म भी शुद्ध नहीं हो सकते। इसलिए विचारों को शुद्ध किये बिना कर्म की शुद्धि का प्रयास करना व्यर्थ है। जिसके विचार पवित्र हों उससे बुरा कर्म कभी हो ही नहीं सकता है।
!! 🌺जय श्री राधे कृष्णा 🌺!!
।।वाणी सुंदर वही जो।। ।।कृष्णा गुण गान किया करे
।।वाणी सुंदर वही जो।।
।।कृष्णा गुण गान किया करे
।।
।।।मुख सुंदर वही जो।।
।।प्रभु का चिंतन किया करे।।
।।हाथ है सुंदर वही।।।
।।ठाकुर जी की सेवा किया करे।।
।।नैयना है सुंदर वही जो।।
।।बृज धाम दर्शन किया करे।।
।।ह्रदय है सुंदर जिसमे।।
।।राधा रमण बसा करे।।
।। जय श्री कृष्णा ।।
।। राधे राधे जी ।।
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
।।कृष्णा गुण गान किया करे
।।
।।।मुख सुंदर वही जो।।
।।प्रभु का चिंतन किया करे।।
।।हाथ है सुंदर वही।।।
।।ठाकुर जी की सेवा किया करे।।
।।नैयना है सुंदर वही जो।।
।।बृज धाम दर्शन किया करे।।
।।ह्रदय है सुंदर जिसमे।।
।।राधा रमण बसा करे।।
।। जय श्री कृष्णा ।।
।। राधे राधे जी ।।
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ऊँ श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर कुछ विशेष वास्तु अर्पित की जाती है जिसे शिवामुट्ठी कहते है।
ऊँ श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर कुछ विशेष वास्तु अर्पित की जाती है जिसे शिवामुट्ठी कहते है।
1. प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी,
2. दूसरे सोमवार को सफेद तिल् एक मुट्ठी,
3. तीसरे सोमवार को खड़े मूँग एक मुट्ठी,
4. चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी और
5. यदि जिस मॉस में पांच सोमवार हो तो पांचवें सोमवार को सतुआ चढ़ाने जाते हैं।
यदि पांच सोमवार न हो तो आखरी सोमवार को दो मुट्ठी भोग अर्पित करते है।
माना जाता है कि श्रावण मास में शिव की पूजा करने से सारे कष्ट खत्म हो जाते हैं। महादेव शिव सर्व समर्थ हैं। वे मनुष्य के समस्त पापों का क्षय करके मुक्ति दिलाते हैं। इनकी पूजा से ग्रह बाधा भी दूर होती है।
1. *सूर्य* से संबंधित बाधा है, तो विधिवत या पंचोपचार के बाद लाल { बैगनी } आक के पुष्प एवं पत्तों से शिव की पूजा करनी चाहिए।
2. *चंद्रमा* से परेशान हैं, तो प्रत्येक सोमवार शिवलिंग पर गाय का दूध अर्पित करें। साथ ही सोमवार का व्रत भी करें।
3. *मंगल* से संबंधित बाधाओं के निवारण के लिए गिलोय की जड़ी-बूटी के रस से शिव का अभिषेक करना लाभप्रद रहेगा।
4. *बुध* से संबंधित परेशानी दूर करने के लिए विधारा की जड़ी के रस से शिव का अभिषेक करना ठीक रहेगा।
5. *बृहस्पति* से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए प्रत्येक बृहस्पतिवार को हल्दी मिश्रित दूध शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिए।
6. *शुक्र* ग्रह को अनुकूल बनाना चाहते हैं, तो पंचामृत एवं घृत से शिवलिंग का अभिषेक करें।
7. *शनि* से संबंधित बाधाओं के निवारण के लिए गन्ने के रस एवं छाछ से शिवलिंग का अभिषेक करें।
8 . *राहु-केतु* से मुक्ति के लिए कुश और दूर्वा को जल में मिलाकर शिव का अभिषेक करने से लाभ होगा।
शास्त्रों में मनोरथ पूर्ति व संकट मुक्ति के लिए अलग-अलग तरह की धारा से शिव का अभिषेक करना शुभ बताया गया है।
अलग-अलग धाराओं से शिव अभिषेक का फल- जब किसी का मन बेचैन हो, निराशा से भरा हो, परिवार में कलह हो रहा हो, अनचाहे दु:ख और कष्ट मिल रहे हो तब शिव लिंग पर दूध की धारा चढ़ाना सबसे अच्छा उपाय है।
इसमें भी शिव मंत्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए।
1. *वंश की वृद्धि के लिए* शिवलिंग पर शिव सहस्त्रनाम बोलकर घी की धारा अर्पित करें।
2. शिव पर जलधारा से अभिषेक *मन की शांति के लिए* श्रेष्ठ मानी गई है।
3. *भौतिक सुखों को पाने के लिए* इत्र की धारा से शिवलिंग का अभिषेक करें।
4. *बीमारियों से छुटकारे के लिए* शहद की धारा से शिव पूजा करें।
5. गन्ने के रस की धारा से अभिषेक करने पर हर *सुख और आनंद मिलता है*।
6. सभी धाराओं से श्रेष्ठ है गंगाजल की धारा। शिव को गंगाधर कहा जाता है। शिव को गंगा की धार बहुत प्रिय है। गंगा जल से शिव अभिषेक करने पर *चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है।* इससे अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मन्त्र जरुर बोलना चाहिए।
*कार्य सिद्धि के लिए:--पूजन में रखे इन बातों का ध्यान:--*
सावन के महीने में शिवलिंग की करें पूजा अर्चना | शिवलिंग जहां स्थापित हो पूरव् दिशा की ओर मुख करके ही बैठें।
शिवलिंग के दक्षिण दिशा में बैठकर पूजन न करें।
*दूध से अभिषेक करने पर परिवार में कलह, मानसिक पीड़ा में शांति मिलती है।*
*घी से अभिषेक करने पर वंशवृद्धि होती है।*
*इत्र से अभिषेक करने पर भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।*
*शहद से अभिषेक करने पर परिवार में बीमारियों का अधिक प्रकोप नहीं रहता।*
*गन्ने के रस की धारा डालते हुये अभिषेक करने से आर्थिक समृद्धि व परिवार में सुखद खुशी का माहौल बना रहता है।*
*गंगा जल से अभिषेक करने पर चारो पुरूषार्थ की प्राप्ति होती है।*
*सरसों के तेल से अभिषेक करने से शत्रुओं का शमन होता।*
*बिल्वपत्र चढ़ाने से जन्मान्तर के पापों व रोग से मुक्ति मिलती है।*
*कमल पुष्प चढ़ाने से शान्ति व धन की प्राप्ति होती है।*
*कुशा चढ़ाने से मुक्ति की प्राप्ति होती है।*
*दूर्वा चढ़ाने से आयु में वृद्धि होती है।*
*धतूरा अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति व पुत्र का सुख मिलता है।*
*कनेर का पुष्प चढ़ाने से परिवार में कलह व रोग से निवृत्ति मिलती हैं।*
*शमी पत्र चढ़ाने से पापों का नाश होता, शत्रुओं का शमन व भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।*
हर हर महादेव,बोलो नीलकण्ठ महादेव की जय
1. प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी,
2. दूसरे सोमवार को सफेद तिल् एक मुट्ठी,
3. तीसरे सोमवार को खड़े मूँग एक मुट्ठी,
4. चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी और
5. यदि जिस मॉस में पांच सोमवार हो तो पांचवें सोमवार को सतुआ चढ़ाने जाते हैं।
यदि पांच सोमवार न हो तो आखरी सोमवार को दो मुट्ठी भोग अर्पित करते है।
माना जाता है कि श्रावण मास में शिव की पूजा करने से सारे कष्ट खत्म हो जाते हैं। महादेव शिव सर्व समर्थ हैं। वे मनुष्य के समस्त पापों का क्षय करके मुक्ति दिलाते हैं। इनकी पूजा से ग्रह बाधा भी दूर होती है।
1. *सूर्य* से संबंधित बाधा है, तो विधिवत या पंचोपचार के बाद लाल { बैगनी } आक के पुष्प एवं पत्तों से शिव की पूजा करनी चाहिए।
2. *चंद्रमा* से परेशान हैं, तो प्रत्येक सोमवार शिवलिंग पर गाय का दूध अर्पित करें। साथ ही सोमवार का व्रत भी करें।
3. *मंगल* से संबंधित बाधाओं के निवारण के लिए गिलोय की जड़ी-बूटी के रस से शिव का अभिषेक करना लाभप्रद रहेगा।
4. *बुध* से संबंधित परेशानी दूर करने के लिए विधारा की जड़ी के रस से शिव का अभिषेक करना ठीक रहेगा।
5. *बृहस्पति* से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए प्रत्येक बृहस्पतिवार को हल्दी मिश्रित दूध शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिए।
6. *शुक्र* ग्रह को अनुकूल बनाना चाहते हैं, तो पंचामृत एवं घृत से शिवलिंग का अभिषेक करें।
7. *शनि* से संबंधित बाधाओं के निवारण के लिए गन्ने के रस एवं छाछ से शिवलिंग का अभिषेक करें।
8 . *राहु-केतु* से मुक्ति के लिए कुश और दूर्वा को जल में मिलाकर शिव का अभिषेक करने से लाभ होगा।
शास्त्रों में मनोरथ पूर्ति व संकट मुक्ति के लिए अलग-अलग तरह की धारा से शिव का अभिषेक करना शुभ बताया गया है।
अलग-अलग धाराओं से शिव अभिषेक का फल- जब किसी का मन बेचैन हो, निराशा से भरा हो, परिवार में कलह हो रहा हो, अनचाहे दु:ख और कष्ट मिल रहे हो तब शिव लिंग पर दूध की धारा चढ़ाना सबसे अच्छा उपाय है।
इसमें भी शिव मंत्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए।
1. *वंश की वृद्धि के लिए* शिवलिंग पर शिव सहस्त्रनाम बोलकर घी की धारा अर्पित करें।
2. शिव पर जलधारा से अभिषेक *मन की शांति के लिए* श्रेष्ठ मानी गई है।
3. *भौतिक सुखों को पाने के लिए* इत्र की धारा से शिवलिंग का अभिषेक करें।
4. *बीमारियों से छुटकारे के लिए* शहद की धारा से शिव पूजा करें।
5. गन्ने के रस की धारा से अभिषेक करने पर हर *सुख और आनंद मिलता है*।
6. सभी धाराओं से श्रेष्ठ है गंगाजल की धारा। शिव को गंगाधर कहा जाता है। शिव को गंगा की धार बहुत प्रिय है। गंगा जल से शिव अभिषेक करने पर *चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है।* इससे अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मन्त्र जरुर बोलना चाहिए।
*कार्य सिद्धि के लिए:--पूजन में रखे इन बातों का ध्यान:--*
सावन के महीने में शिवलिंग की करें पूजा अर्चना | शिवलिंग जहां स्थापित हो पूरव् दिशा की ओर मुख करके ही बैठें।
शिवलिंग के दक्षिण दिशा में बैठकर पूजन न करें।
*दूध से अभिषेक करने पर परिवार में कलह, मानसिक पीड़ा में शांति मिलती है।*
*घी से अभिषेक करने पर वंशवृद्धि होती है।*
*इत्र से अभिषेक करने पर भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।*
*शहद से अभिषेक करने पर परिवार में बीमारियों का अधिक प्रकोप नहीं रहता।*
*गन्ने के रस की धारा डालते हुये अभिषेक करने से आर्थिक समृद्धि व परिवार में सुखद खुशी का माहौल बना रहता है।*
*गंगा जल से अभिषेक करने पर चारो पुरूषार्थ की प्राप्ति होती है।*
*सरसों के तेल से अभिषेक करने से शत्रुओं का शमन होता।*
*बिल्वपत्र चढ़ाने से जन्मान्तर के पापों व रोग से मुक्ति मिलती है।*
*कमल पुष्प चढ़ाने से शान्ति व धन की प्राप्ति होती है।*
*कुशा चढ़ाने से मुक्ति की प्राप्ति होती है।*
*दूर्वा चढ़ाने से आयु में वृद्धि होती है।*
*धतूरा अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति व पुत्र का सुख मिलता है।*
*कनेर का पुष्प चढ़ाने से परिवार में कलह व रोग से निवृत्ति मिलती हैं।*
*शमी पत्र चढ़ाने से पापों का नाश होता, शत्रुओं का शमन व भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।*
हर हर महादेव,बोलो नीलकण्ठ महादेव की जय
*मन लगता हैं वृन्दावन मे, मधुबन मे मोहे जला देना ।*
!!!! जय श्री राधे राधे !!!!
*मन लगता हैं वृन्दावन मे, मधुबन मे मोहे जला देना ।*
*मेरी राख कहीं बरबाद न हो यमुना मे जाय बहा देना ।*
*ये गोदी तकिया पलंग सभी नीचे से मेरे हटा देना*
*गोबर से भुमि लीप कर उस पर मुझे लिटा देना।।*
*ये भाई बंधु कुटुम्ब सभी मतलब के हे ये सब साथी ।*
*इनसे तो नाथ दया करके मेरे मोह का फन्द छुड़ा देना।।*
*जब प्राण सुधा तन से निकले दस सज्जन पास बुला देना ।*
*धीरे से नाम प्रभु मंत्र का कानों में मेरे सुना देना।।*
*तुलसी की माला पहना कर के गंगाजल नीर पिला देना ।*
*गीता का पाठ सुना करके, भव सागर पार लगा देना ।।*
* मन लगता है वृंदावन मे---**-------------*
*मन लगता हैं वृन्दावन मे, मधुबन मे मोहे जला देना ।*
*मेरी राख कहीं बरबाद न हो यमुना मे जाय बहा देना ।*
*ये गोदी तकिया पलंग सभी नीचे से मेरे हटा देना*
*गोबर से भुमि लीप कर उस पर मुझे लिटा देना।।*
*ये भाई बंधु कुटुम्ब सभी मतलब के हे ये सब साथी ।*
*इनसे तो नाथ दया करके मेरे मोह का फन्द छुड़ा देना।।*
*जब प्राण सुधा तन से निकले दस सज्जन पास बुला देना ।*
*धीरे से नाम प्रभु मंत्र का कानों में मेरे सुना देना।।*
*तुलसी की माला पहना कर के गंगाजल नीर पिला देना ।*
*गीता का पाठ सुना करके, भव सागर पार लगा देना ।।*
* मन लगता है वृंदावन मे---**-------------*
*जै जै कुँज विहारी* *जै जै कुँज विहारी*
*जै जै कुँज विहारी* *जै जै कुँज विहारी*
_हरिदासी सम्प्रदाय के संस्थापक स्वामी हरिदास की गणना ब्रज भाषा के प्रमुख भक्त कवियों में की जाती है । उनकी भजन भावना और विरक्ति के विषय में कई समकालीन तथा परवर्ती कवियों ने उल्लेख किया है किन्तु इनके जन्म-संवत ,जन्म-स्थान ,जाति ,कुल, गुरु आदि का उल्लेख किसी भी समकालीन कवि या लेखक ने अपनी रचना में नहीं किया। इसलिए आज इनके जन्म-संवत आदि के सम्बन्ध में निश्चित रूप से कहना कठिन है।_
_स्वामीजी के जन्म के सम्बन्ध में दो मत प्रचलित हैं। पहले मत के पोषक हैं वृन्दावनस्थ बांके बिहारी मंदिर के गोस्वामियों के अनुसार स्वामी जी वि ० सं ० १५६९ में अलीगढ जिले के अंतर्गत हरिदास नामक ग्राम में उत्पन्न हुए थे। इनके अनुसार स्वामीजी का जन्म गर्ग गोत्रीय सारस्वत ब्राह्मण कुल में हुआ था। दूसरे मत के अनुसार स्वामी जी जन्म वि ० सं ० १५३७ में वृन्दावन से १. ५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजपुर ग्राम के एक सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था।_
_स्वामी हरिदास की मृत्यु ९५ वर्ष की अवस्था में हुई इससे दोनों मतों के विद्वान सहमत हैं। वि ० सं ० १५६९ में जन्म मानने वालों के अनुसार स्वामी जी की मृत्यु वि ० सं ० १६६४ और दूसरे मत के अनुसार वि ० सं ० १६३१।_
_स्वामी जी के परम्परानुयायी विद्वान आशुधीरदेव जी को स्वामी जी का गुरु स्वीकार करते हैं। इस मत की पुष्टि आचार्य रसिकदेव के इस श्लोक से हो जाती है :_
_
☆अशुधीरस्य शिष्यों यो हरिदासः प्रकीर्तितः।☆
☆अनन्याधिपतिः श्रीमान गुरुणांच गुरुः प्रभुः।।☆
*रचनाएँ :*
_सिद्धांत (अठारह पद )केलिमाल (माधुर्य भक्ति का महत्वपूर्ण ग्रन्थ )_
*माधुर्य भक्ति :*
_स्वामी हरिदास के उपास्य युगल राधा कृष्ण ,नित्य-किशोर ,अनादि एकरस और एक वयस हैं। यद्यपि ये स्वयं प्रेम-रूप हैं तथापि भक्त को को प्रेम का आस्वादन कराने के लिए ये नाना प्रकार की लीलाओं का विधान करते हैं। इन लीलाओं का दर्शन एवं भावन करके जीव अखण्ड प्रेम का आस्वादन करता है।_
☆' कुञ्ज बिहारी बिहारिनि जू को पवित्र रस '।।☆
_कहकर स्वामी जी स्पस्ट सूचित किया है कि राधा-कृष्ण का विहार अत्यधिक पवित्र है। उस विहार में प्रेम की लहरें उठती रहती हैं,जिनमें मज्जित होकर जीव आनन्द में विभोर हो जाता है। इस प्रेम की प्राप्ति उपासक विरक्त भाव से वृन्दावन-वास करते हुए भजन करने से हो सकती है। स्वामी हरिदास जी का जीवन इस साधना का मूर्त रूप कहा जा सकता है।_
_राधा -कृष्ण की इस अद्भुत मधुर-लीला का वर्णन स्वामी हरिदास ने वन -विहार ,झूलन ,नृत्य आदि विभिन्न रूपों में किया है। इस लीला का महत्व संगीत की दृष्टि से अधिक है। नृत्य का निम्न वर्णन दृष्टव्य है।।_
☆अद्भुत गति उपजत अति नाचत ,☆
☆दोउ मंडल कुँवर किशोरी।☆
☆सकल सुधंग अंग अंग भरि भोरी ,☆
☆पिय नृत्यत मुसकनि मुखमोरि परिरंभन रस रोरी।। (केलिमाल :कवित्त ३४ )☆
_रसिक भक्त होने के कारण राधा-कृष्ण की लीलाओं को ही वह अपना सर्वस्व समझते हैं और सदा यही अभिलाषा करते हैं।।_
☆ऐसे ही देखत रहौं जनम सुफल करि मानों।☆
☆प्यारे की भाँवती भाँवती के प्यारे जुगल किशोरै जानौं।।☆
☆छिन न टरौं पल होहुँ न इत उत रहौं एक तानों।☆
_श्री हरिदास के स्वामी स्यामा 'कुंज बिहारी 'मन रानौं।।(केलिमाल :पद ३ )_
_स्वामी हरिदास ने केलिमाल में केवल कुँज बिहारी की विविध लीलाओं का वर्णन किया है।_
_*श्रीमद् अनन्य रसिक भाव प्रर्वतकाचार्य प्रेमभाव कमल दिवाकर श्री निधीवनाधीश गायनैक शिरोमणि अनन्त श्रीविभूषित स्वामी श्री हरिदास राधेशनन्दन चरण-युगल-समर्पित श्रीमत् रमणविहारी*_
🚩🙏🏻🌌!!शुभ संध्या वंदन!!🌌🙏🏻🚩
🚩🙏🏻🌌!!शुभ संध्या वंदन!!🌌🙏🏻🚩
🍂👏🏻"हमारी व्यक्तिगत इच्छाएं हमें जीवंत रखती है...हमारी वैचारिक रणनीति हमारे परस्पर सम्बन्ध हमें जीवन मे नई राह दिखाते है...परन्तु हमारा अहम हमें जीवन के उस अंधकार में ले जाता है...जहाँ हमें कोई प्रकाश नही दिखता...हम सोचते तो बहुत है...पर करते कुछ भी नही...सार्थकता तभी खिलखिलायेगी जब हम सोचने से पहले करगुजरेंगे...👏🏻🍂
🚩🙏🏻🕉।।जय श्री राधेकृष्ण।।🕉🙏🏻🚩
🍂👏🏻"हमारी व्यक्तिगत इच्छाएं हमें जीवंत रखती है...हमारी वैचारिक रणनीति हमारे परस्पर सम्बन्ध हमें जीवन मे नई राह दिखाते है...परन्तु हमारा अहम हमें जीवन के उस अंधकार में ले जाता है...जहाँ हमें कोई प्रकाश नही दिखता...हम सोचते तो बहुत है...पर करते कुछ भी नही...सार्थकता तभी खिलखिलायेगी जब हम सोचने से पहले करगुजरेंगे...👏🏻🍂
🚩🙏🏻🕉।।जय श्री राधेकृष्ण।।🕉🙏🏻🚩
mahadev
आजकल प्रतिदिन संदेश आ रहे हैं कि महादेव को दूध की कुछ बूंदें चढाकर शेष निर्धन बच्चों को दे दिया जाए। सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन हर भारतीय त्योहार पर ऐसे संदेश पढ़कर थोड़ा दुख होता है। दीवाली पर पटाखे ना चलाएं, होली में रंग और गुलाल ना खरीदें, सावन में दूध ना चढ़ाएं, उस पैसे से गरीबों की मदद करें। लेकिन त्योहारों के पैसे से ही क्यों? ये एक साजिश है हमें अपने रीति-रिवाजों से विमुख करने की।
हम सब प्रतिदिन दूध पीते हैं तब तो हमें कभी ये ख्याल नहीं आया कि लाखों गरीब बच्चे दूध के बिना जी रहे हैं। अगर दान करना ही है तो अपने हिस्से के दूध का दान करिए और वर्ष भर करिए। कौन मना कर रहा है। शंकर जी के हिस्से का दूध ही क्यों दान करना?
अपने करीब उपलब्ध किसी आयुर्वेदाचार्य के पास जाकर पूछिये कि वर्ष के जिन दिनों में शिव जी को दूध का अभिषेक किया जाता है उन दिनों में स्वास्थ्य की दृष्टि से दूध का न्यूनतम सेवन किया जाए जिससे मौसमानुसार शरीर में वात और कफ न बढे जिससे हम निरोगी रहे ऐसा आयुर्वेद कहता है कि नहीं।
आप अपने व्यसन का दान कीजिये दिन भर में जो आप सिगरेट, पान-मसाला, शराब, मांस अथवा किसी और क्रिया में जो पैसे खर्च करते हैं उसको बंद कर के गरीब को दान कीजिये | इससे आपको दान के लाभ के साथ साथ स्वास्थ्य का भी लाभ होगा।
महादेव ने जगत कल्याण हेतु विषपान किया था इसलिए उनका अभिषेक दूध से किया जाता है। जिन महानुभावों के मन में अतिशय दया उत्पन्न हो रही है उनसे मेरा अनुरोध है कि एक महीना ही क्यों, वर्ष भर गरीब बच्चों को दूध का दान दें। घर में जितना भी दूध आता हो उसमें से ज्यादा नहीं सिर्फ आधा लीटर ही किसी निर्धन परिवार को दें। महादेव को जो 50 ग्राम दूध चढ़ाते हैं वो उन्हें ही चढ़ाएं।
शिवलिंग की वैज्ञानिकता ....
भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा लें, तब हैरान हो जायेगें ! भारत सरकार के न्यूक्लिअर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।
शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स ही हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे।
महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे किए बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है।
क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।
भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।
शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।
तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।
ध्यान दें, कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।
जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है।विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।..
अपना व्यवहार बदलो अपने धर्म को बदलने का प्रयास मत करो।
!!ॐ नम: शिवाय !!
*सन्त जन कहते हैं कि इस संसार मे कई प्रकार के भक्त हैं।
*सन्त जन कहते हैं कि इस संसार मे कई प्रकार के भक्त हैं।जो भगवान से प्रेम, उनके भक्तों से मित्रता, दुखी पर कृपा और भगवान से द्वेष करने वालों की उपेक्षा करते हैं, वे मध्यम कोटि के भक्त हैं।*
*जो भगवान की पूजा तो श्रद्धा से करता है परंतु भगवान के भक्तों या दूसरों की सेवा नहीं करता है वह साधारण श्रेणी का भगवद्भक्त है।*
*जो प्रतिकूल विषयों से द्वेष नहीं करता और अनुकूल विषयों के प्राप्त होने पर हर्षित नहीं होता वही उत्तम भागवत है। ऐसे भक्त के हृदय को श्री हरि क्षण भर के लिए भी नहीं छोड़ते हैं। क्योंकि उसने प्रेम की रस्सी से प्रभु के चरण कमलों को बाँध रखा है।*
*जय श्री कृष्णा*🙏🙏
अध्याय. ----2 शिव पुराण के श्रवण से देवराज को शिवलोक कि प्राप्ति
अध्याय. ----2
शिव पुराण के श्रवण से देवराज को शिवलोक कि प्राप्ति
|
श्रीशौनक जी ने कहा - महाभाग सूतजी ! आप धन्य है , परमार्थ तत्व के ज्ञाता है , आपने कृपा करके हमलोगो को यह दिव्य कथा सुनाई है | भूतल पर इस कथा के समान कल्याण का सर्वश्रेष्ठ साधन दूसरा कोई नहीं है , यह बात आज हमने आपकी कृपा से निश्चय पूर्वक समाज ली | सूतजी ! कलयुग में इन कथाओ के द्वारा कौन कौन से पापी शुद्ध होते है ? उन्हें कृपा पूर्वक बताइये और इस जगत को कृतार्थ कीजिये |
अब सूत जी बोलते है - मुने ! जो मनुष्य पापी , दुराचारी , खल तथा काम क्रोध आदि में निरंतर लिप्त रहले वाले है , वो भी इस पुराण के श्रवण पाठन से शुद्ध हो जाते है | इसी विषय में जानकर मुनि इस प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते है , जिसके श्रवण मात्र से सम्पूर्ण पापो का नाश हो जाता है |
पहले की बात है , कही किरातो के नगर मे एक ब्रामण रहता था , जो ज्ञान मे अत्यन्त दुर्बल, दरिद्र, रस बेचनेवाला तथा वैदिक धर्म से विमुख था ।वह स्नान सन्धया आदि कर्मो से भ्रष्ट हो गया था एवं वैश्या वृति में तत्पर रहता था | उसका नाम था देवराज | वह अपने ऊपर विस्वास करनेवाले लोगो को ठगा करता था | उसने ब्राह्मणो , क्षत्रियो , वैश्यों , छुद्र तथा दुसरो को भी अपने बहानो से मारकर उन सबका धन हडप लिया था । परन्तु उस पापी का थोडा सा भी धन धर्म के काम मे नही लगा । वह वेश्यागामी तथा सब प्रकार से आचारभ्रष्ट था ।
एक दिन वह घुमता घामता प्रतिष्ठानपुर (झुसी - प्रयाग ) मे जा पहुचा । वहॉ उसने एक शिवालय देखा , जहॉ बहुत से साधू महात्मा एकत्र हुए थे । देवराज उस शिवालय मे ठहर गया , किन्तु वहॉ उसे ज्वर आ गया । उस ज्वर से उसको बहुत पिडा होने लगी । वहॉ एक ब्राह्रण देवता शिव पुराण कि कथा सुना रहे थे । ज्वर मे पडा हुआ देवराज ब्राह्रण के मुखारविन्द से निकली हुइ उस शिव कथा को निरंतर सुनता रहा । एक मास के बाद वह ज्वर से अत्यन्त पिडित होकर चल बसा । यमराज के दुत आये और उसे पाशो मे बांध कर बलपुर्वक यमपुरी ले गये । इतने मे हि शिव लोक से भगवान शिव के पार्षदगण आ गये । उनके गौर अंग कर्पुर के समान उज्जवल थे , हाथ त्रिशूल से सुशोभित हो रहे थे ,उनके सम्पूर्ण अंग भस्म से चमक रहे थे और रुद्राक्ष की मालाएँ उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी | वे सब के सब क्रोध पूर्वक यमपुरी गए और यमराज के दूतो को मारपीट कर बारम्बार धमकाकर उन्होंने देवराज को उनके चंगुल से छुड़ा लिया और अत्यंत अद्भुत बिमान पर बैठा कर जब वे शिव दूत कैलास जाने को उद्धत हुए , उस समय यमपुरी में भारी कोलाहल मच गया उस कोलाहल को सुनकर धर्मराज अपने भवन से बाहर आये | | साक्षात दूसरे रुद्रो के समान प्रतीत होनेवाले उन चारो दूतो को देखकर धर्मज्ञ धर्मराज उनका विधिपूर्वक पूजन किया और और ज्ञान दृष्टि से देख कर सारा वृतांत जान लिया | उन्होंने भय के कारण भगवान शिव के उन महात्मा दूतो से कोई बात नहीं पूछी , उलटे उन सब की पूजा एवं प्रार्थना की | तत्पश्चात वे शिव दूत कैलाश को चले गए और वहां पहुंचकर उन्होंने उस ब्राह्मण को दयासागर साम्ब शिव के हाथ में दे दिया |
शिव पुराण के श्रवण से देवराज को शिवलोक कि प्राप्ति
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श्रीशौनक जी ने कहा - महाभाग सूतजी ! आप धन्य है , परमार्थ तत्व के ज्ञाता है , आपने कृपा करके हमलोगो को यह दिव्य कथा सुनाई है | भूतल पर इस कथा के समान कल्याण का सर्वश्रेष्ठ साधन दूसरा कोई नहीं है , यह बात आज हमने आपकी कृपा से निश्चय पूर्वक समाज ली | सूतजी ! कलयुग में इन कथाओ के द्वारा कौन कौन से पापी शुद्ध होते है ? उन्हें कृपा पूर्वक बताइये और इस जगत को कृतार्थ कीजिये |
अब सूत जी बोलते है - मुने ! जो मनुष्य पापी , दुराचारी , खल तथा काम क्रोध आदि में निरंतर लिप्त रहले वाले है , वो भी इस पुराण के श्रवण पाठन से शुद्ध हो जाते है | इसी विषय में जानकर मुनि इस प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते है , जिसके श्रवण मात्र से सम्पूर्ण पापो का नाश हो जाता है |
पहले की बात है , कही किरातो के नगर मे एक ब्रामण रहता था , जो ज्ञान मे अत्यन्त दुर्बल, दरिद्र, रस बेचनेवाला तथा वैदिक धर्म से विमुख था ।वह स्नान सन्धया आदि कर्मो से भ्रष्ट हो गया था एवं वैश्या वृति में तत्पर रहता था | उसका नाम था देवराज | वह अपने ऊपर विस्वास करनेवाले लोगो को ठगा करता था | उसने ब्राह्मणो , क्षत्रियो , वैश्यों , छुद्र तथा दुसरो को भी अपने बहानो से मारकर उन सबका धन हडप लिया था । परन्तु उस पापी का थोडा सा भी धन धर्म के काम मे नही लगा । वह वेश्यागामी तथा सब प्रकार से आचारभ्रष्ट था ।
एक दिन वह घुमता घामता प्रतिष्ठानपुर (झुसी - प्रयाग ) मे जा पहुचा । वहॉ उसने एक शिवालय देखा , जहॉ बहुत से साधू महात्मा एकत्र हुए थे । देवराज उस शिवालय मे ठहर गया , किन्तु वहॉ उसे ज्वर आ गया । उस ज्वर से उसको बहुत पिडा होने लगी । वहॉ एक ब्राह्रण देवता शिव पुराण कि कथा सुना रहे थे । ज्वर मे पडा हुआ देवराज ब्राह्रण के मुखारविन्द से निकली हुइ उस शिव कथा को निरंतर सुनता रहा । एक मास के बाद वह ज्वर से अत्यन्त पिडित होकर चल बसा । यमराज के दुत आये और उसे पाशो मे बांध कर बलपुर्वक यमपुरी ले गये । इतने मे हि शिव लोक से भगवान शिव के पार्षदगण आ गये । उनके गौर अंग कर्पुर के समान उज्जवल थे , हाथ त्रिशूल से सुशोभित हो रहे थे ,उनके सम्पूर्ण अंग भस्म से चमक रहे थे और रुद्राक्ष की मालाएँ उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी | वे सब के सब क्रोध पूर्वक यमपुरी गए और यमराज के दूतो को मारपीट कर बारम्बार धमकाकर उन्होंने देवराज को उनके चंगुल से छुड़ा लिया और अत्यंत अद्भुत बिमान पर बैठा कर जब वे शिव दूत कैलास जाने को उद्धत हुए , उस समय यमपुरी में भारी कोलाहल मच गया उस कोलाहल को सुनकर धर्मराज अपने भवन से बाहर आये | | साक्षात दूसरे रुद्रो के समान प्रतीत होनेवाले उन चारो दूतो को देखकर धर्मज्ञ धर्मराज उनका विधिपूर्वक पूजन किया और और ज्ञान दृष्टि से देख कर सारा वृतांत जान लिया | उन्होंने भय के कारण भगवान शिव के उन महात्मा दूतो से कोई बात नहीं पूछी , उलटे उन सब की पूजा एवं प्रार्थना की | तत्पश्चात वे शिव दूत कैलाश को चले गए और वहां पहुंचकर उन्होंने उस ब्राह्मण को दयासागर साम्ब शिव के हाथ में दे दिया |
ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिंगम् निर्मलभासित शोभित लिंगम्। जन्मज दुःख विनाशक लिंगम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥1॥
लिंगाष्टकम भगवान भोलेनाथ के लिंगस्वरूप की स्तुति कर भोलेनाथ करने का उत्तम अष्टक है, जो कोई भक्त पूर्ण आस्था तथा श्रृद्धा सहित भोले बाबा के लिंगाष्टकम का पाठ करेगा उसकी सभी मनोकामना तथा इच्छाओं की पूर्ति स्वयं शिव शंकर करते हैं, श्री शिव लिंगाष्टकम अर्थ सहित इस प्रकार है:-
ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिंगम्
निर्मलभासित शोभित लिंगम्।
जन्मज दुःख विनाशक लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥1॥
भावार्थः- जो ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवगणों के इष्टदेव हैं, जो परम पवित्र, निर्मल, तथा सभी जीवों की मनोकामना को पूर्ण करने वाले हैं और जो लिंग के रूप में चराचर जगत में स्थापित हुए हैं, जो संसार के संहारक है और जन्म और मृत्यु के दुखो का विनाश करते है ऐसे भगवान आशुतोष को नित्य निरंतर प्रणाम है |
देवमुनि प्रवरार्चित लिंगम्
कामदहन करुणाकर लिंगम्।
रावणदर्प विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥2॥
भावार्थः- भगवान सदाशिव जो मुनियों और देवताओं के परम आराध्य देव हैं, तथा देवो और मुनियों द्वारा पूजे जाते हैं, जो काम (वह कर्म जिसमे विषयासक्ति हो) का विनाश करते हैं, जो दया और करुना के सागर है तथा जिन्होंने लंकापति रावन के अहंकार का विनाश किया था, ऐसे परमपूज्य महादेव के लिंग रूप को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ |
सर्वसुगन्धि सुलेपित लिंगम्
बुद्धि विवर्धन कारण लिंगम्।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥3॥
भावार्थः- लिंगमय स्वरूप जो सभी तरह के सुगन्धित इत्रों से लेपित है, और जो बुद्धि तथा आत्मज्ञान में वृद्धि का कारण है, शिवलिंग जो सिद्ध मुनियों और देवताओं और दानवों सभी के द्वारा पूजा जाता है, ऐसे अविनाशी लिंग स्वरुप को प्रणाम है |
कनक महामणि भूषित लिंगम्
फणिपति वेष्टित शोभित लिंगम् ।
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥4॥
भावार्थः- लिंगरुपी आशुतोष जो सोने तथा रत्नजडित आभूषणों से सुसज्जित है, जो चारों ओर से सर्पों से घिरे हुए है, तथा जिन्होंने प्रजापति दक्ष (माता सती के पिता) के यज्ञ का विध्वस किया था, ऐसे लिंगस्वरूप श्रीभोलेनाथ को बारम्बार प्रणाम |
कुंकुम चन्दन लेपित लिंगम्
पंकज हार सुशोभित लिंगम् ।
सञ्चित पाप विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥5॥
भावार्थः- देवों के देव जिनका लिंगस्वरुप कुंकुम और चन्दन से सुलेपित है और कमल के सुंदर हार से शोभायमान है, तथा जो संचित पापकर्म का लेखा-जोखा मिटने में सक्षम है, ऐसे आदि-अन्नत भगवान शिव के लिंगस्वरूप को मैं नमन करता हूँ |
देवगणार्चित सेवित लिंगम्
भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्।
दिनकर कोटि प्रभाकर लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥6॥
भावार्थः- जो सभी देवताओं तथा देवगणों द्वारा पूर्ण श्रृद्धा एवं भक्ति भाव से परिपूर्ण तथा पूजित है, जो हजारों सूर्य के समान तेजस्वी है, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को प्रणाम है |
अष्टदलो परिवेष्टित लिंगम्
सर्व समुद्भव कारण लिंगम्।
अष्टदरिद्र विनाशित लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥7॥
भावार्थः- जो पुष्प के आठ दलों (कलियाँ) के मध्य में विराजमान है, जो सृष्टि में सभी घटनाओं (उचित-अनुचित) के रचियता हैं, और जो आठों प्रकार की दरिद्रता का हरण करने वाले ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूँ |
सुरगुरु सुरवर पूजित लिंगम्
सुरवन पुष्प सदार्चित लिंगम्।
परात्परं परमात्मक लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥8॥
भावार्थः- जो देवताओं के गुरुजनों तथा सर्वश्रेष्ठ देवों द्वारा पूजनीय है, और जिनकी पूजा दिव्य-उद्यानों के पुष्पों से कि जाती है, तथा जो परमब्रह्म है जिनका न आदि है और न ही अंत है ऐसे अनंत अविनाशी लिंगस्वरूप भगवान भोलेनाथ को मैं सदैव अपने ह्रदय में स्थित कर प्रणाम करता हूँ |
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
भावार्थः- जो कोई भी इस लिंगाष्टकम को शिव या शिवलिंग के समीप श्रृद्धा सहित पाठ करेगा उसको शिवलोक प्राप्त होता है तथा भगवान भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है |
ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिंगम्
निर्मलभासित शोभित लिंगम्।
जन्मज दुःख विनाशक लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥1॥
भावार्थः- जो ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवगणों के इष्टदेव हैं, जो परम पवित्र, निर्मल, तथा सभी जीवों की मनोकामना को पूर्ण करने वाले हैं और जो लिंग के रूप में चराचर जगत में स्थापित हुए हैं, जो संसार के संहारक है और जन्म और मृत्यु के दुखो का विनाश करते है ऐसे भगवान आशुतोष को नित्य निरंतर प्रणाम है |
देवमुनि प्रवरार्चित लिंगम्
कामदहन करुणाकर लिंगम्।
रावणदर्प विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥2॥
भावार्थः- भगवान सदाशिव जो मुनियों और देवताओं के परम आराध्य देव हैं, तथा देवो और मुनियों द्वारा पूजे जाते हैं, जो काम (वह कर्म जिसमे विषयासक्ति हो) का विनाश करते हैं, जो दया और करुना के सागर है तथा जिन्होंने लंकापति रावन के अहंकार का विनाश किया था, ऐसे परमपूज्य महादेव के लिंग रूप को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ |
सर्वसुगन्धि सुलेपित लिंगम्
बुद्धि विवर्धन कारण लिंगम्।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥3॥
भावार्थः- लिंगमय स्वरूप जो सभी तरह के सुगन्धित इत्रों से लेपित है, और जो बुद्धि तथा आत्मज्ञान में वृद्धि का कारण है, शिवलिंग जो सिद्ध मुनियों और देवताओं और दानवों सभी के द्वारा पूजा जाता है, ऐसे अविनाशी लिंग स्वरुप को प्रणाम है |
कनक महामणि भूषित लिंगम्
फणिपति वेष्टित शोभित लिंगम् ।
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥4॥
भावार्थः- लिंगरुपी आशुतोष जो सोने तथा रत्नजडित आभूषणों से सुसज्जित है, जो चारों ओर से सर्पों से घिरे हुए है, तथा जिन्होंने प्रजापति दक्ष (माता सती के पिता) के यज्ञ का विध्वस किया था, ऐसे लिंगस्वरूप श्रीभोलेनाथ को बारम्बार प्रणाम |
कुंकुम चन्दन लेपित लिंगम्
पंकज हार सुशोभित लिंगम् ।
सञ्चित पाप विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥5॥
भावार्थः- देवों के देव जिनका लिंगस्वरुप कुंकुम और चन्दन से सुलेपित है और कमल के सुंदर हार से शोभायमान है, तथा जो संचित पापकर्म का लेखा-जोखा मिटने में सक्षम है, ऐसे आदि-अन्नत भगवान शिव के लिंगस्वरूप को मैं नमन करता हूँ |
देवगणार्चित सेवित लिंगम्
भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्।
दिनकर कोटि प्रभाकर लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥6॥
भावार्थः- जो सभी देवताओं तथा देवगणों द्वारा पूर्ण श्रृद्धा एवं भक्ति भाव से परिपूर्ण तथा पूजित है, जो हजारों सूर्य के समान तेजस्वी है, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को प्रणाम है |
अष्टदलो परिवेष्टित लिंगम्
सर्व समुद्भव कारण लिंगम्।
अष्टदरिद्र विनाशित लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥7॥
भावार्थः- जो पुष्प के आठ दलों (कलियाँ) के मध्य में विराजमान है, जो सृष्टि में सभी घटनाओं (उचित-अनुचित) के रचियता हैं, और जो आठों प्रकार की दरिद्रता का हरण करने वाले ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूँ |
सुरगुरु सुरवर पूजित लिंगम्
सुरवन पुष्प सदार्चित लिंगम्।
परात्परं परमात्मक लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥8॥
भावार्थः- जो देवताओं के गुरुजनों तथा सर्वश्रेष्ठ देवों द्वारा पूजनीय है, और जिनकी पूजा दिव्य-उद्यानों के पुष्पों से कि जाती है, तथा जो परमब्रह्म है जिनका न आदि है और न ही अंत है ऐसे अनंत अविनाशी लिंगस्वरूप भगवान भोलेनाथ को मैं सदैव अपने ह्रदय में स्थित कर प्रणाम करता हूँ |
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
भावार्थः- जो कोई भी इस लिंगाष्टकम को शिव या शिवलिंग के समीप श्रृद्धा सहित पाठ करेगा उसको शिवलोक प्राप्त होता है तथा भगवान भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है |
_नई-नई शादी के बाद एक स्त्री का पति जब भोजन की थाल लेकर आया तो पूरा कमरा उस स्वादिष्ट भोजन की खुशबू से भर गया।_
_नई-नई शादी के बाद एक स्त्री का पति जब भोजन की थाल लेकर आया तो पूरा कमरा उस स्वादिष्ट भोजन की खुशबू से भर गया।_
_उस स्त्री ने अपने पति से निवेदन किया कि मांजी को भी यही बुला लेते हैं और हम तीनों साथ बैठकर भोजन करते हैं। पति ने कहा छोड़ो उन्हें वो खाकर सो गई होंगी। आओ हम साथ मे भोजन करते हैं।_
_उस स्त्री ने पुनः अपने पति से कहा कि नहीं मैंने उन्हें खाते हुए नहीं देखा है।_
_तो पति ने जवाब दिया कि तुम क्यों जिद्द कर रही हो, शादी के कार्यों से थक गयी होंगी इसलिए सो गई होंगी, नींद टूटेगी तो माँ खुद भोजन कर लेगी। तुम आओ हम साथ में खाना खाते हैं।_
_स्त्री ने स्थिति को समझते हुए तुरंत सम्बंध विच्छेद कर दूसरी शादी कर ली।_
_भविष्य में उस स्त्री को दो बच्चे हुए जो बहुत ही सुशील औऱ आज्ञाकारी थे। जब वह स्त्री 60 वर्ष की हुई तो वह बेटों को बोली, मैं चारों धाम की यात्रा करना चाहती हूँ, ताकि तुम्हारे सुखमय जीवन की प्रार्थना कर सकूं। बेटे तुरंत अपनी माँ को लेकर चारों धाम की यात्रा पर निकल गये। एक जगह तीनों माँ बेटे भोजन के लिए रुके औऱ भोजन परोस कर माँ से खाने की विनती करने लगे।_
_उसी समय उस स्त्री की नजर सामने एक फटेहाल, भूखे औऱ गंदे से वृद्ध पुरुष पर पड़ी जो इस स्त्री के भोजन और बेटों की तरफ बहुत ही कातर नजरों से देख रहा था। उस स्त्री को उस पर दया आ गई औऱ वह बेटों को बोली कि जाओ पहले उस वृद्ध को नहलाओ औऱ उसे वस्त्र दो फिर हम सब मिल कर भोजन करेंगें।_
_बेटे जब उस वृद्ध को नहला कर कपड़े पहना कर उस स्त्री के सामने लाये तो वह स्त्री आश्चर्य चकित रह गई, वह वृद्ध वही था जिससे उसने सम्बंध विच्छेद कर लिया था। उसने उससे पूछा कि क्या हो गया जो तुम्हारी हालत इतनी दयनीय हो गई, उस वृद्ध ने नजर झुका कर कहा कि सब कुछ होते भी मेरे बच्चे मुझे भोजन नही देते थे। मेरा तिरस्कार करते थे मुझे घर से बाहर निकल दिया।_
_स्त्री ने वृद्ध से कहा कि इस बात का अंदाजा तो मुझे तभी लग गया था जब आपने पहले अपनी बूढ़ी माँ को भोजन कराने की बजाय उस स्वादिष्ट भोजन का थाल लेकर मेरे पास आ गए थे, औऱ मेरे बार-बार कहने के बावजूद भी आपने अपनी माँ का तिरस्कार किया उसीका फल आज आप भोग रहे हैं।_
_जैसा व्यवहार हम अपने बुजुर्गों के साथ करेंगे उसीको देख कर हमारे बच्चों में भी यह अवगुण आता हैं वे सोचते हैं कि शायद यही परम्परा है।_
_*अतः सदैव माँ-बाप की सेवा ही हमारा दायित्व बनता है। जिस घर में माँ-बाप हँसते हैं वहीं प्रभु बसते हैं।*_
_*🚩जय श्रीराधे🚩जय सियाराम🚩*_
_उस स्त्री ने अपने पति से निवेदन किया कि मांजी को भी यही बुला लेते हैं और हम तीनों साथ बैठकर भोजन करते हैं। पति ने कहा छोड़ो उन्हें वो खाकर सो गई होंगी। आओ हम साथ मे भोजन करते हैं।_
_उस स्त्री ने पुनः अपने पति से कहा कि नहीं मैंने उन्हें खाते हुए नहीं देखा है।_
_तो पति ने जवाब दिया कि तुम क्यों जिद्द कर रही हो, शादी के कार्यों से थक गयी होंगी इसलिए सो गई होंगी, नींद टूटेगी तो माँ खुद भोजन कर लेगी। तुम आओ हम साथ में खाना खाते हैं।_
_स्त्री ने स्थिति को समझते हुए तुरंत सम्बंध विच्छेद कर दूसरी शादी कर ली।_
_भविष्य में उस स्त्री को दो बच्चे हुए जो बहुत ही सुशील औऱ आज्ञाकारी थे। जब वह स्त्री 60 वर्ष की हुई तो वह बेटों को बोली, मैं चारों धाम की यात्रा करना चाहती हूँ, ताकि तुम्हारे सुखमय जीवन की प्रार्थना कर सकूं। बेटे तुरंत अपनी माँ को लेकर चारों धाम की यात्रा पर निकल गये। एक जगह तीनों माँ बेटे भोजन के लिए रुके औऱ भोजन परोस कर माँ से खाने की विनती करने लगे।_
_उसी समय उस स्त्री की नजर सामने एक फटेहाल, भूखे औऱ गंदे से वृद्ध पुरुष पर पड़ी जो इस स्त्री के भोजन और बेटों की तरफ बहुत ही कातर नजरों से देख रहा था। उस स्त्री को उस पर दया आ गई औऱ वह बेटों को बोली कि जाओ पहले उस वृद्ध को नहलाओ औऱ उसे वस्त्र दो फिर हम सब मिल कर भोजन करेंगें।_
_बेटे जब उस वृद्ध को नहला कर कपड़े पहना कर उस स्त्री के सामने लाये तो वह स्त्री आश्चर्य चकित रह गई, वह वृद्ध वही था जिससे उसने सम्बंध विच्छेद कर लिया था। उसने उससे पूछा कि क्या हो गया जो तुम्हारी हालत इतनी दयनीय हो गई, उस वृद्ध ने नजर झुका कर कहा कि सब कुछ होते भी मेरे बच्चे मुझे भोजन नही देते थे। मेरा तिरस्कार करते थे मुझे घर से बाहर निकल दिया।_
_स्त्री ने वृद्ध से कहा कि इस बात का अंदाजा तो मुझे तभी लग गया था जब आपने पहले अपनी बूढ़ी माँ को भोजन कराने की बजाय उस स्वादिष्ट भोजन का थाल लेकर मेरे पास आ गए थे, औऱ मेरे बार-बार कहने के बावजूद भी आपने अपनी माँ का तिरस्कार किया उसीका फल आज आप भोग रहे हैं।_
_जैसा व्यवहार हम अपने बुजुर्गों के साथ करेंगे उसीको देख कर हमारे बच्चों में भी यह अवगुण आता हैं वे सोचते हैं कि शायद यही परम्परा है।_
_*अतः सदैव माँ-बाप की सेवा ही हमारा दायित्व बनता है। जिस घर में माँ-बाप हँसते हैं वहीं प्रभु बसते हैं।*_
_*🚩जय श्रीराधे🚩जय सियाराम🚩*_
चातुर्मास विशेष में-
चातुर्मास विशेष में-
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त्रिभुवनकमनं तमालवर्ण
रविकरगौरवराम्बरं दधाने ।
वपुरलककुलावृताननाब्जं
विजयसखे रतिरस्तु में$वृद्धा ।।
( श्रीमद्भागवत 1/9/33 )
भावार्थ:- जिनका दिव्य देह त्रिभुन सुन्दर एवं श्याम तमाल के समान श्याम वर्ण है,जिस पर सूर्य की रश्मियो के समान श्रेष्ठ पीताम्बर लहराता रहता है और कमल- सदृश श्रीमुख पर घुँघराली अलकावली लटकती रहती है; उन अर्जुन के सखा श्रीकृष्ण में मेरी निष्कपट रति-प्रीति हो।
!! राधे राधे !!
✍☘💕
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त्रिभुवनकमनं तमालवर्ण
रविकरगौरवराम्बरं दधाने ।
वपुरलककुलावृताननाब्जं
विजयसखे रतिरस्तु में$वृद्धा ।।
( श्रीमद्भागवत 1/9/33 )
भावार्थ:- जिनका दिव्य देह त्रिभुन सुन्दर एवं श्याम तमाल के समान श्याम वर्ण है,जिस पर सूर्य की रश्मियो के समान श्रेष्ठ पीताम्बर लहराता रहता है और कमल- सदृश श्रीमुख पर घुँघराली अलकावली लटकती रहती है; उन अर्जुन के सखा श्रीकृष्ण में मेरी निष्कपट रति-प्रीति हो।
!! राधे राधे !!
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जापान दुनिया के सबसे विकसित देशों में आता है और जापान की टेक्नोलॉजी के बराबरी अभी तक कोई भी देश नहीं कर सका है।
जापान दुनिया के सबसे विकसित देशों में आता है और जापान की टेक्नोलॉजी के बराबरी अभी तक कोई भी देश नहीं कर सका है। जापान के लोग पहले से ही अपनी अलग सोच पर काम करते रहते हैं इसलिए आज जापान टेक्नोलॉजी के मामले में सबसे आगे है आज हम आपको जापान की कुछ ऐसी टेक्नोलॉजी बताएंगे जो आपको हैरान कर देगी।
जापान में जगह की बहुत कमी है और इस समस्या का समाधान निकालते हुए यहां के इंजीनियरों ने अंडर ग्राउंड पार्किंग बनाई है। इस पार्किंग में एक के बाद एक सैकड़ों गाड़ियां पार्क की जा सकती है और गाड़ी का मालिक अपनी कार को विशेष कोड लिखकर निकाल सकता है।
जापान में पानी की कमी को रोकने के लिए यहां वास वेशन के पानी को भी जमा किया जाता है और इस पानी का उपयोग टॉयलेट में में किया जाता है। इसके लिए यहां विशेष प्रकार के टॉयलेट सीट बनाए गए हैं।
जापान में जगह की बहुत कमी है इसलिए यहां के इंजीनियरों ने हाईवे बनाने का यह अनूठा उपाय निकाला, आप इमेज में जापानी इंजीनियरों की इस टेक्नोलॉजी को देख सकते हैं।
जापान में जगह की बहुत कमी है और इस समस्या का समाधान निकालते हुए यहां के इंजीनियरों ने अंडर ग्राउंड पार्किंग बनाई है। इस पार्किंग में एक के बाद एक सैकड़ों गाड़ियां पार्क की जा सकती है और गाड़ी का मालिक अपनी कार को विशेष कोड लिखकर निकाल सकता है।
जापान में पानी की कमी को रोकने के लिए यहां वास वेशन के पानी को भी जमा किया जाता है और इस पानी का उपयोग टॉयलेट में में किया जाता है। इसके लिए यहां विशेष प्रकार के टॉयलेट सीट बनाए गए हैं।
जापान में जगह की बहुत कमी है इसलिए यहां के इंजीनियरों ने हाईवे बनाने का यह अनूठा उपाय निकाला, आप इमेज में जापानी इंजीनियरों की इस टेक्नोलॉजी को देख सकते हैं।
द विश्वयुद्ध में पूरी तरह तबाह हो चुके जापान ने आज दुनिया के सभी देशों को पीछे छोड़ दिया है ।
द विश्वयुद्ध में पूरी तरह तबाह हो चुके जापान ने आज दुनिया के सभी देशों को पीछे छोड़ दिया है । जापान आज एक वैश्विक महासत्ता को हाँसिल कर सके इतनी ताकत है इस देश के पास । ये सब इसिलए मुमकिन है क्योंकि यहाँ का कानून तो ऐसा है ही मगर जापान के लोग भी इतने समझदार और अनुशाषित प्रिय है । यहाँ हर कोई अपना काम अच्छी तरह से समझता है और करता है । यहाँ सरकार के सभी नियमो को अच्छी तरह से पाला जाता है । घर,गालिया,रास्ते,बगीचे, पब्लिक प्लेस सभी को स्वच्छ रखना ये लोग अच्छी तरह से समझते है । भारत मे ऐसी समझदारी दिखाना जापान से कोसो दूर है । आज हम जापान की कुछ ऐसी ही तस्वीरे आपको दिखाएंगे जिससे पता चलता है कि जापान दूसरे देशों से क्यो अलग है ।
ये तस्वीर है जापान के बिजनेस प्लेस के कार पार्किंग की । यहाँ पर लोग अपनी कार बहोत ही अच्छी तरह कार पार्किंग में ही पार्क करते है और आसानी से कोई भी कार किसी भी वक्त निकाली जा सके इस तरह से पार्क करते है । इंडिया में लोग भीड़ वाले इलाके में भी कही पर अपनी कार पार्क कर देते है । जब पुलिस द्वारा दंड लिया जाता है तो तुरंत ही अपनी धौस जमाने के लिए पॉलिटिक्स को बीचमे खड़ा कर देते है । में वो हु मुझको नही जानते वगेरा ।
ये तस्वीर है जापान के जीब्रा क्रॉसिंग की । जहाँ पर लोग सड़क के नियमो का पालन करके ही चलते है । हमारे यहाँ ऐसे नियमो की सरेआम धज्जियां उड़ाई जाती है । तभी तो भारत सड़क दुर्घटना में सबसे आगे है ।
ये तस्वीर जापान के घरों के बाहर से नालो में से बहता साफ पानी की है जिसमे रंगबिरंगी मछलियां तैरती नजर आ रही है । भारत मे नालो की बात आते ही हमारे दिमाग मे गंदगी के सिवा कुछ नही आएगा ।
ये तस्वीर बया कर रही है जापान के अनुशासन प्रिय लोगो की । जहाँ सीढियो का वैसा ही इस्तेमाल किया जाता है जैसा उसका होना चाहिए । इंडिया में सीढियो का उपयोग किसी को गिराने और कूदने के लिए किया जाता है ।
ऐसी सुविधा आपको केवल जापान में ही मिलेगी । क्योकि सबसे गंदी चीज हमारा मोबाइल ही होता है । इसलिए कहाँ पर भी जाने से पहले अपने मोबाईल फोन को टिस्यू पेपर से साफ करने के लिए ऐसी सुविधा प्रदान की है जापान ने ।
ये तस्वीर है जापान के बिजनेस प्लेस के कार पार्किंग की । यहाँ पर लोग अपनी कार बहोत ही अच्छी तरह कार पार्किंग में ही पार्क करते है और आसानी से कोई भी कार किसी भी वक्त निकाली जा सके इस तरह से पार्क करते है । इंडिया में लोग भीड़ वाले इलाके में भी कही पर अपनी कार पार्क कर देते है । जब पुलिस द्वारा दंड लिया जाता है तो तुरंत ही अपनी धौस जमाने के लिए पॉलिटिक्स को बीचमे खड़ा कर देते है । में वो हु मुझको नही जानते वगेरा ।
ये तस्वीर है जापान के जीब्रा क्रॉसिंग की । जहाँ पर लोग सड़क के नियमो का पालन करके ही चलते है । हमारे यहाँ ऐसे नियमो की सरेआम धज्जियां उड़ाई जाती है । तभी तो भारत सड़क दुर्घटना में सबसे आगे है ।
ये तस्वीर जापान के घरों के बाहर से नालो में से बहता साफ पानी की है जिसमे रंगबिरंगी मछलियां तैरती नजर आ रही है । भारत मे नालो की बात आते ही हमारे दिमाग मे गंदगी के सिवा कुछ नही आएगा ।
ये तस्वीर बया कर रही है जापान के अनुशासन प्रिय लोगो की । जहाँ सीढियो का वैसा ही इस्तेमाल किया जाता है जैसा उसका होना चाहिए । इंडिया में सीढियो का उपयोग किसी को गिराने और कूदने के लिए किया जाता है ।
ऐसी सुविधा आपको केवल जापान में ही मिलेगी । क्योकि सबसे गंदी चीज हमारा मोबाइल ही होता है । इसलिए कहाँ पर भी जाने से पहले अपने मोबाईल फोन को टिस्यू पेपर से साफ करने के लिए ऐसी सुविधा प्रदान की है जापान ने ।
ये बॉक्स क्यों रखा जाता हैं, जानिए इसका काम क्या हैं
जब ट्रेन किस स्टेशन में इन करती है तो ट्रेन के जीतने एक्सेल होते हैं या पहिए होते हैं उन्हें काउंट किया जाता है और ट्रेन जब स्टेशन के बाहर चली जाती है तो उस टाइम भी उस ट्रेन के पूरे पहिए को काउंट किया जाता है अगर दोनों कंडीशन में पहिए समान मिलते हैं या एक्सल उनका सेम होता है तो स्टेशन मास्टर को एक सिग्नल मिलती है.
जिससे पता चलता है कि जितनी ट्रेन के एक्सल या पहिया है उतने पूरे के पूरे आउट हो गए हैं इस बात का पता लगाने के लिए एक्सेल काउंटर को ट्रैक के नीचे लगाया जाता है जो कि उसके एक एक पहिए को काउंट करते हैं. जो एक्सेल काउंटर होते हैं इनका फीडबैक देने के लिए यहां पर इस बॉक्स के अंदर एक मशीन या डिवाइस लगा होता है.
जिससे कि पता चलता है कि सिग्नल है या फिर जितने रनिंग कर रही हैं वह पूरे आउट हुए हैं कि नहीं यहां पर आप इसको देख सकते हैं अगर हम इस बॉक्स को ओपन करें तो आप यहां पर देख सकते हैं कि इसके अंदर डिवाइस लगा बहुत सारे मशीन होते हैं और यहां पर दो एलईडी जल रही है एक ग्रीन और एक रेड ग्रीन का मतलब होता है
क्लियर मतलब कि जितने ट्रेनें इनकी उतने पूरे के पूरे आउट हो जाते हैं तो यहां पर ग्रीन लाइट मिलता है जिससे पता चलता है कि यह रोलर पूरी तरह से क्लियर है रेड लाइट जलने का मतलब होता है कि ट्रेन के जितने एक्सेल इन हुए उतने पूरे के पूरे आउट नहीं हुए.
12 ज्योतिर्लिंगों में शुमार इस धाम में मौजूद 124 शिव मंदिर, जानिए शिव के इस पवित्र धाम "जागेश्वर" से जुडी करामाती बाते ?
सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा पाठ का विशेष महत्व माना गया हैं तो आज हम आपको शिव के पवित्र धाम में से एक जागेश्वर धाम के बारे में बताएँगे ?सावन के महीने में भक्तो का मेला आपने हर शिव मंदिर में देखा होगा लेकिन जागेश्वर धाम के प्रति लोगो में आस्था बहुत ज्यादा हैं इस सावन के महीने में वहा रोजाना लाखो संख्या में भक्त दर्शन हेतु पहुंचते हैं जबकि शादी में आ रही अड़चनों को दूर करने की कामना करते हैं।
भगवान शिव की पूजा करने से कुंवारे लड़के-लड़कियों को मनचाहा वर या वधु मिलता है जबकि सुख-समृद्धि के साथ सफलता मिलने के साथ समस्त पाप दूर होते हैं आपको बता दे की यह जागेश्वर मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित हैं।
यह जागेश्वर धाम 12 ज्योतिर्लिंगों में शुमार हैं जबकि इसमें 124 शिव मंदिर विद्यमान हैं, यह मंदिर बड़ी बड़ी शिलाओं से बने हुए हैं जबकि यह देवदार के जंगलो में मौजदू धाम हैं।
इन मंदिरो का निर्माण 3 काल कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल में हुआ जबकि इसकी दीवारों पर संस्कृत और ब्रह्म लिपि भाषा का इस्तेमाल किया गया हैं।
जागेश्वर में सारे शिव मंदिर केदारनाथ शैली में बने हुए हैं जबकि इसको भगवान शिव की तपस्थली के नाम से जाना जाता हैं यहाँ पर मौजूद 'महामृत्युंजय शिव मंदिर' सबसे विशाल और प्राचीन मंदिर हैं ,सावन के महीने में लाखो भक्तो की भीड़ शिव के दर्शन जबकि जलभिषेक के लिए आती हैं।
प्रेमचंद ने गोरखपुर में महात्मा गांधी का भाषण सुनकर छोड़ दी थी सरकारी नौकरी
गोरखपुरः कथा सम्राट, कालजयी उपन्यासकार और साहित्य के पितामह...जितने भी नाम लें, वे कम ही हैं. उसका कारण भी साफ है. मुंशी प्रेमचंद ऐसी शख्सियत रहे हैं, जिन्होंने हमेशा सादगी भरा जीवन ही पसंद किया. आसपास जो देखा उसे कहानी और उपन्यास के रूप में शब्दों में पिरो दिया. यही कारण है कि उनके निधन के 82 साल बाद भी उनके उपन्यास और कहानियां हमारे इर्दगिर्द ही घूमते नजर आते हैं.
शायद यही वजह है कि उपन्यास की दुनिया में वैश्विक पटल पर मुंशी प्रेमचंद का नाम हमेशा के लिए अमर हो गया. गोरखपुर में महात्मा गांधी का भाषण सुनने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्र लेखन करने लगे. मुंशी प्रेमचंद ने जीवन के 9 साल गोरखपुर में गुजारे. उन्होंने यहां पर प्रवास के दौरान कई कालजयी उपन्यास और कहानियों की रचना की. ईदगाह, नमक का दारोगा, रामलीला, बूढ़ी काकी और गोदान के चित्रण और किरदार भी गोरखपुर के ही हैं.
मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ नवाब राय) ऐसे कालजयी उपन्यासकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी के दम पर पूरे विश्व में पहचान बनाई. साधारण कद-काठी, धोती-कुर्ता और सादगी उनकी पहचान रही है. आज उनकी 138वीं जयंती है, लेकिन उनके निधन के 82 वर्ष बाद भी उनकी कालजयी रचना ‘कफन’, ‘गबन’, ‘गोदान’, ‘ईदगाह‘ और ‘नमक का दरोगा‘ हर किसी को बचपन की याद दिलाती है. गोरखपुर में ही उन्होंने ऐसे कई उपन्यास को मूर्तरूप दिया, जिसके किरदार हमेशा के लिए अमर हो गए.
मुंशी प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 से 8 अक्टूबर 1936) किसी पहचान का मोहताज नहीं. मुंशी प्रेमचंद का 56 वर्ष की उम्र में काशी में निधन हुआ था. भारत के एक महान हिन्दी उपन्यासकार, जिनकी रचनाओं में गोरखपुरियत साफ़ झलकती है. उनका जन्म भले यहां नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने अपने कर्मों से गोरखपुर की एक अलग ही तस्वीर उकेर कर रख दी. आज भी वह घर जहां वह रहते थे और वो विद्यालय जहां उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा ली, उनकी दास्तां को बयां करता है. उन्होंने जहां कई कालजीय उपन्यासों की रचना की, उसके समीप ही मुंशी प्रेमचंद के नाम से पार्क भी स्थापित है.
आकाशवाणी के सेवानिवृत्त कार्यक्रम अधिकारी और साहित्यकार रविन्द्र श्रीवास्तव उर्फ जुगानी भाई बताते हैं, कि मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस से लगभग छ: मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था. उनके पूर्वज कायस्थ परिवार से आते थे, जिनके पास उस समय में छ: बीघा जमीन थी. प्रेमचन्द के दादाजी गुरु सहाय सराय पटवारी और पिता अजायब राय डाकखाने में क्लर्क थे. उनकी माता का नाम आनंदी देवी था. उन्हीं से प्रेरित होकर उन्होंने एक रचना ‘बड़े घर की बेटी‘ में ‘आनंदी‘ नामक पात्र बनाया था.
प्रेमचन्द अपने माता-पिता की चौथी सन्तान थे. प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, जो उनके माता-पिता ने रखा था. लेकिन, उनके चाचा उन्हें नवाब कहा करते थे. प्रेमचन्द जब 7 वर्ष के थे, तब प्रेमचन्द ने अपने गांव के निकट लालपुर गांव के मदरसे में पढाई की थी. प्रेमचन्द को मदरसे के मौलवी ने उर्दू और पारसी सिखाई, जिसका उनकी रचनाओं पर काफी प्रभाव रहा है. जब प्रेमचन्द 8 वर्ष के हुए तब लम्बी बीमारी के चलते उनकी माँ का देहांत हो गया था. प्रेमचन्द की दादी ने उनकी जिम्मेदारी सम्भाली और उनका पालन-पोषण किया.
मुंशी प्रेमचन्द के पिता की जब गोरखपुर में पोस्टिंग हुई, तब उन्होंने दूसरी शादी कर ली. प्रेमचंद का अपनी सौतेली मां से थोडा सा स्नेह था, जिसे उन्होंने अपनी रचनाओं में अलग तरीके से पेश किया है. अब प्रेमचन्द अपनी मां की मौत के बाद अपना अधिकतर समय उपन्यास पढने में बिताया करते थे. गोरखपुर में स्थित रावत पाठशाला में ही उनकी शिक्षा शुरू हुई और इसे संयोग ही कहेंगे कि इसी पाठशाला में उन्होंने 1916 से 1921 तक बतौर शिक्षक नौकरी भी की. अपनी प्राथमिक शिक्षा के बाद धनपत राय मिशनरी स्कूल से अंग्रेजी पढ़े और और कई अंग्रेजी लेखकों की किताबें पढना शुरू कर दिया.
उन्होंने अपना पहला साहित्यिक काम गोरखपुर से उर्दू में शुरू किया था. उनकी पहली रचना कहीं प्रकाशित नहीं हो पाई और बाद में खो गई. उनकी ये रचना एक अविवाहित पुरुष की थी, जो दलित महिला से प्यार करने लगता है. उन्होंने इसके पात्र अपने चाचा के जीवन से लिए थे. वह यहां पहले पहाड़पुर मोहल्ले में अपने पिता के साथ रहते थे, जो बाद में नार्मल कैम्पस में ही रहने लगे. आज भी उस मकान के टूटे-फूटे अवशेष वहां मौजूद हैं. सोज-ए-वतन उनकी पहली रचना थी. मुंशी प्रेमचंद पार्क में स्थित मकान में ही उन्होंने कालजयी रचना ‘कफन’, ‘ईदगाह’, ‘नमक का दरोगा’, ‘रामलीला’, ‘बूढी काकी’, ‘मंत्र’ और उनकी रचनाओं में सबसे मशहूर ‘गबन’ और ‘गोदान’ की पृष्ठभूमि भी उन्होंने यहीं पर तैयार की थी.
यह भी अजब संयोग हैं कि जिस रावत पाठशाला में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ली थी, वहीं पर उनकी पहली पोस्टिंग शिक्षक के रूप में हुई. उसी दौरान वह बालेमियां मैदान में महात्मा गांधी का भाषण सुनने गए. महात्मा गांधी के ओजस्वी भाषण का उन पर ऐसा प्रभाव पडा कि उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत में सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और स्वतंत्र लेखन करने लगे. उसी दौरान उन्होंने ‘सोज-ए-वतन’ नामक पहली रचना उर्दू में लिखी. जिसे बाद में अंग्रेजों ने जला दिया और बगैर इजाजत के लिखने पर रोक लगा दी. तब वे नयाब राय के नाम से लिखा करते थे. उसके बाद दयानारायण निगम ने पहली बार प्रेमचंद नाम दिया. उसके धनपत राय हमेशा के लिए प्रेमचंद हो गए.
‘ईदगाह’ की रचना उन्होंने नार्मल रोड स्थित मुबारक खां शहीद की दरगाह पर लगने वाले मेले को केन्द्र में रखकर की. वहीं ‘नमक का दरोगा’ राप्ती नदी पर बने राजघाट पुल पर केन्द्रित है. प्रेमचंद ने ‘रामलीला’ की रचना बर्फखाना रोड पर स्थित बर्डघाट की रामलीला के पात्रों की दयनीय स्थिति को ध्यान में रखकर लिखी गई. तो वहीं ‘बूढी काकी’ मोहल्ले में बर्तन मांजने वाली एक बूढी महिला की कहनी है. गोदान भी अंग्रेजी हुकूमत में देश के किसानों के दर्द की तस्वीर खींचती है, जिसका किरदार भी गोरखपुर के इर्दगिर्द ही घूमता है.
1890 के दशक के मध्य में जब उनके पिता की जमनिया गांव में पोस्टिंग हुई, तब उनका दाखिला अनावासी छात्र के रूप में बनारस के क्वीन कॉलेज में कराया गया. 1895 में 15 वर्ष की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया. तब वह 9वी कक्षा में पढ़ रहे थे. 1897 में लम्बी बीमारी के चलते प्रेमचन्द के पिता का देहांत हो गया. उसके बाद उन्होंने मैट्रिक परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण कर ली. जब क्वीन कॉलेज में दाखिले के लिए उस समय मैट्रिक परीक्षा में प्रथम श्रेणी चाहिए थी. इसलिए प्रेमचन्द को उस कॉलेज में दाखिला नहीं मिला. प्रेमचन्द ने केन्द्रीय हिन्दू कॉलेज में दाखिला ले लिया, लेकिन गणित में कमजोर होने के कारण उनको अपनी पढाई बीच में ही छोडनी पड़ी. उस समय में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाला विद्वान माना जाता था. इसलिए उनको एक वकील के पुत्र को पढ़ाने के लिए 5 रूपये मासिक तनख्वाह पर रख लिया गया. अब वह उस वकील के अस्तबल में रहने लगे और अपनी तनख्वाह का 60 प्रतिशत हिस्सा अपने घर भेजते थे.
1899 में जब उनके ऊपर कर्ज काफी बढ़ गया, तब वह एक बार अपने द्वारा संग्रहीत की हुई किताबों को बेचने के लिए किताब विक्रेता के पास चले गये थे. वहां पर उनकी मुलाकात मिशनरी स्कूल के प्रधानाध्यापक से हुई, जिन्होंने उनको 18 रूपये प्रति माह की तनख्वाह देने का प्रस्ताव दिया. प्रेमचंद तुरन्त राजी हो गये और 1900 में प्रेमचन्द को बहराइच के सरकारी स्कूल में सहायक अध्यापक के तौर पर स्थाई नौकरी मिल गई. जिसमें, उनको 20 रूपये प्रति माह तनख्वाह मिलने लगी. तीन महीने बाद उनका प्रतापगढ़ के सरकारी स्कूल में तबादला हो गया, जहां पर उन्होंने व्यस्व्य्थाप्क के बंगले में रहते हुए उनके पुत्र को भी पढ़ाया.
धनपत राय शुरुआत में अपना उपनाम “नवाब राय ” लिखा करते थे. उनका पहला लघु उपन्यास “देवस्थान रहस्य ” था. उनका यह उपन्यास बनारस के उर्दू साप्ताहिक “आवाज ए ख़ाक ” में 1903 से 1905 के बीच प्रकाशित किया गया.
आज भी गोरखपुर में उनसे जुडी हुई कई चीजो को संजो कर रखने का प्रयास किया गया है, लेकिन सरकारी उदासीनता और लापरवाही में इस महान शख्सियत की धरोहर नाम मात्र की ही रह गई है. आज भी उनके चाहने वाले और उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलने वाले कम नहीं हैं. उनके घर को ही आज एक संग्रहालय के रूप में और पुस्कालय के रूप में रखा गया है, जिसमें बतौर प्रभारी के रूप में पिछले कई वर्षों से अपनी सेवा दे रहे बैजनाथ मिश्रा ने बताया कि पुस्तकालय की स्थिति बहुत ही दयनीय है. किसी भी प्रकार की कोई सरकारी मदद नहीं मिलती, इसके बावजूद उनका जुड़ाव कम नहीं हुआ और यहां आने वाले लोगो को मुंशी प्रेमचंद के बारे में बताने और उनकी पुस्तकों को पढ़ाते है, जिससे उनके काफी ख़ुशी और संतुष्टि मिलती है.
आजादी की चिंगारी फूटने के बाद मुंशी प्रेमचंद ने जिन कालजयी उपन्यासों की रचना की, उसमें अंग्रेजी हुकूमत की झलक भी साफ दिखाई देती है. हालांकि उनकी रचनाओं में जो किरदार दिखते हैं, वह उनके आसपास के लोगों से ही प्रभावित है. यहीं वजह है कि इतने वर्षों बाद भी ऐसे कालजयी उपन्यासकार की 138वीं जयंती पर वह गोरखपुरवासियों ही नहीं उनकी रचनाओं को पढ़ने वालों को आसपास ही नजर आते हैं.
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