मौर्य साम्राज्य: इसका पतन और महत्व
अशोक/अशोका की मृत्यु के बाद मौर्य वंश के पतन के में तेजी आ गयी थी। इसका एक स्पष्ट कारण कमजोर राजाओं का उत्तराधिकार था। एक और तत्कालीक कारण साम्राज्य का दो भागों में विभाजन होना था। यदि बटवारा ना हुआ होता तो यूनानी आक्रमण को रोक कर मौर्य साम्राज्य को पहले की तरह दुबारा शक्तिशाली बनाया जा सकता था। 232 ईसा पूर्व में अशोक की मृत्यु के बाद से ही मौर्य साम्राज्य के पतन की शुरूआत हो गयी थी। अंतिम राजा बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी थी जो एक ब्राह्मण था।
मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए जो नेतृत्व के कारक रहे थे वो निम्नलिखित हैं:
अशोक की धार्मिक नीति
अशोक की धार्मिक नीति का उसके साम्राज्य के ब्राह्मणों ने विरोध किया था। चूंकि अशोक ने पशु वध पर प्रतिबंध लगा दिया था जिससे ब्राह्मणों की आय बंद हो गयी थी जिससे उन्हें उपहार के रूप में विभिन्न प्रकार के बलिदानों के लिए पशु प्राप्त होते थे।
सेना और नौकरशाही पर भारी खर्च
मौर्य युग के दौरान सेना और नौकरशाही के निर्वहन पर एक विशाल व्यय खर्च किया जाता था। इसके अलावा, अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान बौद्ध भिक्षुओं को भी भारी अनुदान दिया जिससे उसका शाही खजाना खाली हो गया था। मौर्य राजा जो अशोक के उत्तराधिकारी बने थे उन्हें भी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा था।
प्रांतों में दमनकारी शासन
मगध साम्राज्य में प्रांतीय शासक अक्सर भ्रष्ट और दमनकारी थे। इससे साम्राज्य के खिलाफ लगातार विद्रोह बढ़ता गया। बिन्दुसार के शासनकाल के दौरान, तक्षशिला के नागरिकों ने दुष्ट नौकरशाहों के कुशासन के खिलाफ शिकायत की थी। हालांकि बिन्दुसार और अशोक ने नौकरशाहों को नियंत्रित करने के कई उपाय किये थे लेकिन प्रांतों में उत्पीड़न की जांच करने में विफल रहे थे।
उत्तर पश्चिम सीमांत की उपेक्षा
अशोक हमारी धार्मिक गतिविधियों को आगे ले जाने में इतना व्यस्त था कि शायद ही कभी उसने मौर्य साम्राज्य के उत्तर-पश्चिम सीमांत की ओर ध्यान दिया था। और इसका फायदा यूनानियों ने उठाया तथा उत्तरी अफगानिस्तान में एक राज्य की स्थापना कर दी जिसे बैक्ट्रिया के रूप में जाना जाता था। इसके बाद कई विदेशी आक्रमण हुए जिससे साम्राज्य कमजोर हो गया था।
मौर्य काल का महत्व
मौर्य साम्राज्य की स्थापना के बाद भारतीय इतिहास में एक नए युग की शुरूआत हुई थी। यह इतिहास में पहला मौका था जिसमें पूरा भारत राजनीतिक तौर पर एकजुट रहा था। इसके अलावा, कालक्रम और स्रोतों में सटीकता की वजह से इस अवधि का इतिहास लेखन साफ- सुथरा था। इसके साथ स्वदेशी और विदेशी साहित्यिक स्रोत भी पर्याप्त रूप में भी उपलब्ध थे। यह साम्राज्य इस अवधि के इतिहास लेखन के लिए एक बड़ी संख्या में अभिलेख छोड़ गया था।
इसके अलावा, मौर्य साम्राज्य के साथ जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पुरातात्विक निष्कर्ष पत्थर की मूर्तियां थी जो अनूठी मौर्य कला का एक जबरदस्त उदाहरण थी। कुछ विद्वानों का मानना था कि अशोक शिलालेख पर मौजूद संदेश अधिकांश शासकों की तुलना में पूरी तरह से अलग थे जो अशोक के शक्तिशाली और मेहनती होने का प्रतीक थे तथा अन्य शासक जिन्होंने उत्कृष्ठ खिताब अंगीकृत किये थे, अशोक उनकी तुलना में अधिक विनम्र था। तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि देश के नेता उसे (अशोक) एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप याद करते थे।
मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए जो नेतृत्व के कारक रहे थे वो निम्नलिखित हैं:
अशोक की धार्मिक नीति
अशोक की धार्मिक नीति का उसके साम्राज्य के ब्राह्मणों ने विरोध किया था। चूंकि अशोक ने पशु वध पर प्रतिबंध लगा दिया था जिससे ब्राह्मणों की आय बंद हो गयी थी जिससे उन्हें उपहार के रूप में विभिन्न प्रकार के बलिदानों के लिए पशु प्राप्त होते थे।
सेना और नौकरशाही पर भारी खर्च
मौर्य युग के दौरान सेना और नौकरशाही के निर्वहन पर एक विशाल व्यय खर्च किया जाता था। इसके अलावा, अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान बौद्ध भिक्षुओं को भी भारी अनुदान दिया जिससे उसका शाही खजाना खाली हो गया था। मौर्य राजा जो अशोक के उत्तराधिकारी बने थे उन्हें भी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा था।
प्रांतों में दमनकारी शासन
मगध साम्राज्य में प्रांतीय शासक अक्सर भ्रष्ट और दमनकारी थे। इससे साम्राज्य के खिलाफ लगातार विद्रोह बढ़ता गया। बिन्दुसार के शासनकाल के दौरान, तक्षशिला के नागरिकों ने दुष्ट नौकरशाहों के कुशासन के खिलाफ शिकायत की थी। हालांकि बिन्दुसार और अशोक ने नौकरशाहों को नियंत्रित करने के कई उपाय किये थे लेकिन प्रांतों में उत्पीड़न की जांच करने में विफल रहे थे।
उत्तर पश्चिम सीमांत की उपेक्षा
अशोक हमारी धार्मिक गतिविधियों को आगे ले जाने में इतना व्यस्त था कि शायद ही कभी उसने मौर्य साम्राज्य के उत्तर-पश्चिम सीमांत की ओर ध्यान दिया था। और इसका फायदा यूनानियों ने उठाया तथा उत्तरी अफगानिस्तान में एक राज्य की स्थापना कर दी जिसे बैक्ट्रिया के रूप में जाना जाता था। इसके बाद कई विदेशी आक्रमण हुए जिससे साम्राज्य कमजोर हो गया था।
मौर्य काल का महत्व
मौर्य साम्राज्य की स्थापना के बाद भारतीय इतिहास में एक नए युग की शुरूआत हुई थी। यह इतिहास में पहला मौका था जिसमें पूरा भारत राजनीतिक तौर पर एकजुट रहा था। इसके अलावा, कालक्रम और स्रोतों में सटीकता की वजह से इस अवधि का इतिहास लेखन साफ- सुथरा था। इसके साथ स्वदेशी और विदेशी साहित्यिक स्रोत भी पर्याप्त रूप में भी उपलब्ध थे। यह साम्राज्य इस अवधि के इतिहास लेखन के लिए एक बड़ी संख्या में अभिलेख छोड़ गया था।
इसके अलावा, मौर्य साम्राज्य के साथ जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पुरातात्विक निष्कर्ष पत्थर की मूर्तियां थी जो अनूठी मौर्य कला का एक जबरदस्त उदाहरण थी। कुछ विद्वानों का मानना था कि अशोक शिलालेख पर मौजूद संदेश अधिकांश शासकों की तुलना में पूरी तरह से अलग थे जो अशोक के शक्तिशाली और मेहनती होने का प्रतीक थे तथा अन्य शासक जिन्होंने उत्कृष्ठ खिताब अंगीकृत किये थे, अशोक उनकी तुलना में अधिक विनम्र था। तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि देश के नेता उसे (अशोक) एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप याद करते थे।
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