Monday, July 30, 2018

गुरू एक तेज हे जिनके आते ही सारे सन्शय के अंधकार खतम हो जाते हे।

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गुरू एक तेज हे जिनके आते ही
     सारे सन्शय के अंधकार खतम हो
     जाते हे।
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गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही
     अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते
     हे।
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गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही
     पांचो शरीर एक हो जाते हे।
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गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे
     मिलती हे तो पार हो जाते हे।
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गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे
     प्राण से बहती हे।
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गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे
     हमारी पहचान देता हे।
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गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही
     अंग अंग थीरक ने लगता हे।
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गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई
     कभी प्यासा नही।
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गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही
     सोहम नाद की झलक मिलती हे।
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गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ
     सद शिष्यो को विशेष रूप मे
     मिलती हे और कुछ पाकर भी
     समझ नही पाते।
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गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।
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गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल
     तक रहती हे।
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गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे
     हो उसे कभी कुछ मांगने की
     ज़रूरत नही।

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