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गुरू एक तेज हे जिनके आते ही
सारे सन्शय के अंधकार खतम हो
जाते हे।
**
गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही
अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते
हे।
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गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही
पांचो शरीर एक हो जाते हे।
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गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे
मिलती हे तो पार हो जाते हे।
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गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे
प्राण से बहती हे।
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गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे
हमारी पहचान देता हे।
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गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही
अंग अंग थीरक ने लगता हे।
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गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई
कभी प्यासा नही।
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गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही
सोहम नाद की झलक मिलती हे।
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गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ
सद शिष्यो को विशेष रूप मे
मिलती हे और कुछ पाकर भी
समझ नही पाते।
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गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।
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गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल
तक रहती हे।
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गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे
हो उसे कभी कुछ मांगने की
ज़रूरत नही।
गुरू एक तेज हे जिनके आते ही
सारे सन्शय के अंधकार खतम हो
जाते हे।
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गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही
अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते
हे।
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गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही
पांचो शरीर एक हो जाते हे।
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गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे
मिलती हे तो पार हो जाते हे।
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गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे
प्राण से बहती हे।
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गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे
हमारी पहचान देता हे।
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गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही
अंग अंग थीरक ने लगता हे।
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गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई
कभी प्यासा नही।
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गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही
सोहम नाद की झलक मिलती हे।
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गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ
सद शिष्यो को विशेष रूप मे
मिलती हे और कुछ पाकर भी
समझ नही पाते।
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गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।
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गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल
तक रहती हे।
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गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे
हो उसे कभी कुछ मांगने की
ज़रूरत नही।
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