Tuesday, July 31, 2018

चंचुला का पाप से भय एवं संसार से वैराग्य

 *अच्छे व्यक्ति को समझने के लिए अच्छा हृदय चाहिये*
*न कि अच्छा दिमाग*
*क्योंकि दिमाग हमेशा तर्क करेगा*
*और हृदय हमेशा प्रेम--भाव देखेगा ।।**

🙏 *।।जय श्री कृष्णा।।* 🙏
    🌹 *।।सुप्रभात।।* 🌹


चंचुला का पाप से भय एवं संसार से वैराग्य
   
          शौनकजी कहते है -- महाभाग सूतजी ! आप सर्वज्ञ है | महामते ¡ आपके कृपा प्रसाद से मैं बारम्बार कृतार्थ हुआ | इस इतिहास को सुनकर मेरा मन अत्यंत आनंद में निमग्न हो रहा है | अतः अब भगवन शिव में प्रेम बढ़ाने वाली शिव सम्बंधित दूसरी कथा को  भी कहिये |
 
       अब सुतजी कहते है - शौनक ! सुनो , मै तुम्हारे सामने गोपनिये कथावस्तु का भी वर्णन करुंगा; क्युकी तुम शिव भक्तो में अग्रगण्य तथा वेद वेदताओ में श्रेष्ठ हो ।

  समुद्र के निकटवर्ती प्रदेशो मे वाष्कल नामक एक ग्राम है । जहॉ वैदिक धर्म से च्युत महापापी द्विज निवास करते है  , वे सब के सब बड़े दुष्ट है | उनका मन दूषित विषय भोगो में ही लगा रहता है | वे न देवो पर विश्वास करते है न भाग्य पर ; वे सभी बड़े कुटिल वृति वाले है | किसानी करते और भाती भाती के घातक अस्त्र सस्त्र रखते है | वे व्यभिचारी और खल है | ज्ञान , वैराग्य तथा सधर्म का सेवन ही मनुष्यो के लिए परम पुरुषार्थ है - वे इस बात को बिलकुल नहीं जानते है | वे सभी पशु बुद्धि वाले है | ( जहां के द्विज ऐसे बुद्धि वाले हो वह| के अन्य वर्णो के बारे में क्या कहा जाय ) अन्य वर्णो के लोग भी उन्ही कि भाती कुत्सित विचार रखने वाले , स्वधर्म-बिमुख एवं खल है । वे सदा कुकर्म मे लगे रहते और नित्य बिषय भोगो मे हि डुबे रहते है । वहॉ कि सब औरते भी कुटिल स्वभाव कि ,स्वेक्छाचारणी , पापासक्त , कुत्सित विचार वाली और व्यभीचारणी है । वे सदव्यावहार तथा सदाचार से सर्वथा सुन्य है । इस प्रकार वहॉ दुष्टो का ही निवास है।
        उस वाष्कल नामक ग्राम मे किसी समय एक बिन्दुग नामक ब्राह्रण रहता था, वह बडा अधम था । दुरात्मा और महापापी था । यधपि उसकी पत्नी बहुत सुन्दर थी, तो भी वो कुमार्ग पर ही चलता था । उसकी पत्नी का नाम चंचुला था ; वह सदा उतम धर्म के पालन मे लगी रहती थी । तो भी वह दुष्ट ब्राह्रण उसे छोरकर वेश्यागामी हो गया था । इस तरह कुकर्म मे लगे हुए उस बिन्दुग के बहुत वर्ष व्यतीत हो गये । उसकी पत्नी चंचुला काम से पीडित होने पर भी  स्वधर्म नाश के भय से क्लेश सहकर भी दिर्घकाल तक धर्म से भ्रष्ट नहीं हुइ । परन्तु दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित हो आगे चलकर वो भी दुराचारणी हो गयी ।
      इस तरह दुराचार में डुबे हुए उन मुढ चित वाले पति -पत्नी का बहुत सा समय व्यर्थ बित गया । तदन्नतर शुद्रजातिये वेश्या का पति बना हुआ वह दुषित बुद्धी वाला दुष्ट ब्राह्रण बिन्दुग समयानुसार मर कर नरक मे जा पडा । बहुत दिनो तक नरक का दुख भोग कर वह मुढ बुद्धि पापी विन्ध्य पर्वत पर भयंकर पिचाश हुआ ।
           इधर उस दुराचारी पती बिन्दुग के मर जाने पर वह मुढ ह्रदया चंचुला बहुत समय तक अपने पुत्रो के साथ अपने घर मे ही रही ।
      एक दिन दैवयोग से किसी पुन्य पर्व के आनेपर वह अपने भाइ - बन्धुओ के साथ गोकर्ण प्रदेश मे गयी । तिर्थयात्रियो के संग से उसने भी उस समय जाकर किसी तिर्थ के जल मे स्नान किया । फिर वह साधारणतया ( मेला देखने कि द्रिष्टी से ) बन्धुजनो के साथ यत्र तत्र घुमने लगी ।घुमती -घामती किसी देव मंदिर मे गयी और वहॉ उसने एक दैवज्ञ ब्राह्रण के मुख से भगवान शिव कि परम पवित्र एवं मंगलकारिणी उतम पौराणिक कथा सुनी । कथावाचक ब्राह्रण कह रहे थे कि " जो स्त्री पुरुषो के साथ व्यभीचार करती है , वो मरने के बाद यमलोक जाती है तब यमराज के दुत उनकी योनि मे तपे हुए लोहे का परिध डालते है ।" पौराणिक ब्राह्रण के मुख से ये वैराग्य बढाने वाली कथा सुनकर चंचुला भय से व्याकुल हो कर वहॉ पर कापने लगी । कथा समाप्त हुइ और सुनने वाले सब लोग बाहर चले गये , तब वह भयभीत नारी एकान्त मे शिव पुराण कथा बोलने वाले ब्राह्रण देवता से बोली  - ब्राह्रण ! मै अपने धर्म को नही जानती थी । इसलिये मेरे द्वारा बडा दुराचार हुआ है । स्वामीन् ! मेरे उपर अनुपम क्रिपा करके आप मेरा उद्धार किजिये । आज आपके वैराग्य रस से ओत प्रोत इस प्रवचन को सुनकर मुझे बडा भय लग रहा है । मै कॉप उठी हु और मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है । मुझ मुढ चित वाली पापीनी को  धिक्कार है । मै सर्वथा निन्दा के योग्य हु । कुत्सित विषयो में फसी हुई हु और अपने धर्म से विमुख हो गयी हु | हाय ! न जाने किस किस घोर कष्टदायक दुर्गति में मुझे पड़ना पड़ेगा और वहां कौन कौन बुद्धिमान पुरुष कुमार्गमे मन लगनेवाली मुझ पापिनी का साथ देगा | मृत्युकाल में उन भयंकर यमदूतों को मै कैसे देखूंगी ? जब वे बलपूर्वक मेरे गले में फंदे डालकर मुझे बंधेंगे तब मई कैसे धीरज धारण कर सकुंगी | नरक में जब मेरे शरीर के टुकड़े -टुकड़े किये जायेंगे , उस समय विशेष दुःख देने वाली उस महायतना को वहां मैं कैसे सहूंगी ? हाय ! मैं मरी गयी ! मैं जल गयी ! मेरा हृदय विदीर्ण हो गया और मैं सब प्रकार से नष्ट हो गयी ; क्युकी मैं हर तरह से पाप में ही डूबी रही हु | ब्राह्मण ! आप ही मेरे गुरु , आपही माता और आपही पिता है | आपकी शरण में आई हु , मुझ दिन अबला पर आप ही उद्धार कीजिये |
      अब सूत जी कहते है - शौनक ! इस प्रकार खेद और वैराग्य से युक्त चंचुला ब्राह्मण देवता के चरणो में गिर गयी | तब उन बुद्धिमान ब्राह्मण ने उसे कृपा पूर्वक उठाया और इस प्रकार कहा |

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