*-इंसान सदा दूसरे को बदलने की कोशिश में लगा रहता है।
वह चाहता है दूसरा बदल जाएगा तो उसके द्वारा मिलने वाला दुख खुद-ब-खुद सुख में बदल जाएगा। लेकिन हर दूसरा आदमी यही कर रहा है। वह दूसरे के बदलने के इंतजार में बैठा हुआ है। लेकिन इंसान बहुत अजीब है वह यह भूल जाता है कि जब वह स्वयं को अपनी इच्छानुसार अपने लिए नहीं बदल सकता तो दूसरा कैसे उसके कहने या प्रयास से बदल सकता है। यदि यह बात सबकी समझ में आ जाए तो इंसान जितनी ऊर्जा, जितना समय दूसरे को बदलने में लगाता है उससे आधे श्रम में वह स्वयं को बदल सकता है
radhey radhey .s
shyam sunder
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