पञ्चाङ्ग प्रणाम बाँके बिहारीजी
।।तव कथामृतम तप्त जीवनम।।
आज ये छवि देखी। एक लीला का दिग्दर्शन हुआ हृदय में।
है प्रभु अपने भावों की शब्दाजंलि आपके श्री चरणकमलों में सादर अर्पित करती हूँ।
एक गोपी आज कृष्ण की याद में बहुत छटपटा रही है। नाम है मयूरी। शायद माता पिता ने मोर जैसा सुंदर रूप देखकर ही उसे ये नाम दिया होगा।
सुबह चार बजे जागी तो देखा जोरों की वर्षा हो रही है। बादल बिल्कुल काले होकर नभ पर बिखरे पड़े हैं। श्याम वर्ण घन देखते ही गोपी की बिरह वेदना बढ़ने लगी। मन ही मन बोली हे श्याम घन!! तुम भी मेरे प्रियतम घनश्याम की तरह हो। जाओ उन्हें मेरा सन्देश दे आओ कि एक गोपी तुम्हारी याद में पल पल तड़प रही है। मेरे इन आंसुओं को अपने जल में मिलाकर श्याम पर बरसा देना। मेरे आंसुओं की तपन से शायद उस छलिया को मेरी पीड़ा का एहसास हो,
सोचते सोचते गोपी ने मटकी उठाई और सासु माँ से पनघट जाकर जल भरने की आज्ञा मांगी। मुख पर घूँघट कमर और सर पर मटकी रख कृष्ण की याद में खोई चलती जा रही है पनघट की डगर।
उधर कान्हा को भक्त की पीड़ा का एहसास हो गया था। झट काली कमली कांधे पर डाली और निकल पड़े वंशी बजाते।
कुछ दूर वही गोपी घूँघट डाले चली आ रही है। नटखट ने रास्ता टोक लिया। और बोले भाभी ज़रा पानी पिला दो, बड़ी प्यास लगी है।
गोपी घूँघट में थी, पहचान नही पाई कि जिसकी याद में तड़प रही है वही आया है।
बोली, अरे ग्वाले! नेत्र क्या गिरवी धरा आये हो ? मटकी खाली है। पनघट जा रही हूँ अभी।
मंद मंद मुस्कुराते कान्हा ने घूँघट पलट दिया। बोले, अरि भाभी! नेक अपना चांद सा मुखड़ा तो दिखाती जा!
आँखे मिली। गोपी हतप्रभ! अरे ये यो श्याम हैं। ये मुझे भाभी बुला रहे हैं!कितने नटखट हैं!
बोली, मैं भाभी नही, गोपी हूँ। तुम्हारी सखि हूँ। कान्हा ज़ोर से खिलखिलाकर हँस पड़े।
अरि गोपी! हम तो तुमको दिक करने केो भाभी बोले!
गोपी थोड़ा शरमा गई। बोली तो हटो राह से! जल भर लाने दो हमें। कृष्ण ने हंसते हंसते रास्ता दे दिया। गोपी जल भरकर वापस आई। एक मटका सर पर, दूसरा कमर पर। कृष्ण के ख्यालों में खोई सी चल रही है। पास कदम्ब के पेड़ पर घात लगाकर छलिया बैठा है। गोपी के निकट आते ही कंकड़ मारकर सर पर रखी मटकी फोड़ दी। घबराहट में दूसरी मटकी भी हाथ से छूट गई। कदम्ब के पत्तों में छिपे श्याम की शरारती खिलखिलाहट भूमण्डल में गूंजने लगी। सारी प्रकृति खिल उठी। सब ओर सावन दृष्टिगोचर होने लगा।
गोपी ऊपर से रूठती, अंदर से प्रसन्न, आल्हादित! और हो भी क्यों न? सबके मन को हरने वाला सांवरा आज उसपर कृपा कर गया। गोपियों का माखन चोरी, मटकी फोड़ना और उन्हें परेशान करना ये सब गोपियों को बहुत भाता है। इसमें जो आनंद है, जगत में कहीं नही।
छछिया भर छाछ के लालच में कमर मटका मटका कर नन्हा कृष्ण जब उन्हें नृत्य दिखाता है तो सब दीवानी हो उठती हैं। कोई गाल चूमती है, कोई हृदय से लगाकर रोती है। कोई आलिंगन में ले गोद में बिठा लेती है, और वचन देने को कहती है कि अगले जन्म में उसका बेटा बनकर जन्मे।। एक नन्हा नटखट और बीस पचीस गोपियाँ👌सबके अलग भाव। किसीको बेटा दिखता है, किसी को प्रियतम और किसीको सखा। परन्तु भगवान का ऐश्वर्यशाली रूप उन्हें नही पता। उनका अबोध, निश्छल मन तो उन्हें बृज का ग्वाल समझकर प्रेम करता है। ऐसा प्रेम जिसकी कोई पराकाष्ठा नही। श्याम को भी कोई परेशानी नही, खूब माखन लिपटवाते हैं मुख पर। कपोल चूम चूम कर लाल कर देती हैं गोपियाँ। जिससे नन्हे का सांवला रूप और भी मोहक लगने लगता है।
अहा!! हे गोपियों आपके चरणों मे प्रणाम। जय हो आपके भावों की। जय हो आपके प्रेम।
।।तव कथामृतम तप्त जीवनम।।
आज ये छवि देखी। एक लीला का दिग्दर्शन हुआ हृदय में।
है प्रभु अपने भावों की शब्दाजंलि आपके श्री चरणकमलों में सादर अर्पित करती हूँ।
एक गोपी आज कृष्ण की याद में बहुत छटपटा रही है। नाम है मयूरी। शायद माता पिता ने मोर जैसा सुंदर रूप देखकर ही उसे ये नाम दिया होगा।
सुबह चार बजे जागी तो देखा जोरों की वर्षा हो रही है। बादल बिल्कुल काले होकर नभ पर बिखरे पड़े हैं। श्याम वर्ण घन देखते ही गोपी की बिरह वेदना बढ़ने लगी। मन ही मन बोली हे श्याम घन!! तुम भी मेरे प्रियतम घनश्याम की तरह हो। जाओ उन्हें मेरा सन्देश दे आओ कि एक गोपी तुम्हारी याद में पल पल तड़प रही है। मेरे इन आंसुओं को अपने जल में मिलाकर श्याम पर बरसा देना। मेरे आंसुओं की तपन से शायद उस छलिया को मेरी पीड़ा का एहसास हो,
सोचते सोचते गोपी ने मटकी उठाई और सासु माँ से पनघट जाकर जल भरने की आज्ञा मांगी। मुख पर घूँघट कमर और सर पर मटकी रख कृष्ण की याद में खोई चलती जा रही है पनघट की डगर।
उधर कान्हा को भक्त की पीड़ा का एहसास हो गया था। झट काली कमली कांधे पर डाली और निकल पड़े वंशी बजाते।
कुछ दूर वही गोपी घूँघट डाले चली आ रही है। नटखट ने रास्ता टोक लिया। और बोले भाभी ज़रा पानी पिला दो, बड़ी प्यास लगी है।
गोपी घूँघट में थी, पहचान नही पाई कि जिसकी याद में तड़प रही है वही आया है।
बोली, अरे ग्वाले! नेत्र क्या गिरवी धरा आये हो ? मटकी खाली है। पनघट जा रही हूँ अभी।
मंद मंद मुस्कुराते कान्हा ने घूँघट पलट दिया। बोले, अरि भाभी! नेक अपना चांद सा मुखड़ा तो दिखाती जा!
आँखे मिली। गोपी हतप्रभ! अरे ये यो श्याम हैं। ये मुझे भाभी बुला रहे हैं!कितने नटखट हैं!
बोली, मैं भाभी नही, गोपी हूँ। तुम्हारी सखि हूँ। कान्हा ज़ोर से खिलखिलाकर हँस पड़े।
अरि गोपी! हम तो तुमको दिक करने केो भाभी बोले!
गोपी थोड़ा शरमा गई। बोली तो हटो राह से! जल भर लाने दो हमें। कृष्ण ने हंसते हंसते रास्ता दे दिया। गोपी जल भरकर वापस आई। एक मटका सर पर, दूसरा कमर पर। कृष्ण के ख्यालों में खोई सी चल रही है। पास कदम्ब के पेड़ पर घात लगाकर छलिया बैठा है। गोपी के निकट आते ही कंकड़ मारकर सर पर रखी मटकी फोड़ दी। घबराहट में दूसरी मटकी भी हाथ से छूट गई। कदम्ब के पत्तों में छिपे श्याम की शरारती खिलखिलाहट भूमण्डल में गूंजने लगी। सारी प्रकृति खिल उठी। सब ओर सावन दृष्टिगोचर होने लगा।
गोपी ऊपर से रूठती, अंदर से प्रसन्न, आल्हादित! और हो भी क्यों न? सबके मन को हरने वाला सांवरा आज उसपर कृपा कर गया। गोपियों का माखन चोरी, मटकी फोड़ना और उन्हें परेशान करना ये सब गोपियों को बहुत भाता है। इसमें जो आनंद है, जगत में कहीं नही।
छछिया भर छाछ के लालच में कमर मटका मटका कर नन्हा कृष्ण जब उन्हें नृत्य दिखाता है तो सब दीवानी हो उठती हैं। कोई गाल चूमती है, कोई हृदय से लगाकर रोती है। कोई आलिंगन में ले गोद में बिठा लेती है, और वचन देने को कहती है कि अगले जन्म में उसका बेटा बनकर जन्मे।। एक नन्हा नटखट और बीस पचीस गोपियाँ👌सबके अलग भाव। किसीको बेटा दिखता है, किसी को प्रियतम और किसीको सखा। परन्तु भगवान का ऐश्वर्यशाली रूप उन्हें नही पता। उनका अबोध, निश्छल मन तो उन्हें बृज का ग्वाल समझकर प्रेम करता है। ऐसा प्रेम जिसकी कोई पराकाष्ठा नही। श्याम को भी कोई परेशानी नही, खूब माखन लिपटवाते हैं मुख पर। कपोल चूम चूम कर लाल कर देती हैं गोपियाँ। जिससे नन्हे का सांवला रूप और भी मोहक लगने लगता है।
अहा!! हे गोपियों आपके चरणों मे प्रणाम। जय हो आपके भावों की। जय हो आपके प्रेम।
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