Monday, July 23, 2018

*भगवान शालिग्राम....*🌸💐

*श्री राधे...*🌸💐

*भगवान शालिग्राम....*🌸💐

*शालिग्राम* एक पाषाण पत्थर है जो कि भगवान *विष्णुजी* के प्रतीक माने जाते हैं, जैसे भगवान *शिवजी* को शिविलंग के रूप में पूजा जाता है। उसी प्रकार भगवान *विष्णुजी* को *शालिग्राम* के रूप में पूजा जाता है। जो कि नेपाल के गंडकी नदी में पाए जाते हैं।

*सदना कसाई की कथा...* 🌸 📖 🌸

एक बार का बात है, काशी के एक ब्राह्मण थे जो कि बैठ कर माल फेर रहे थे ¦ वही उनके पास से एक गाय भागती हुई एक गली में जा घुसा। उस गाय के पीछे एक आदमी  भागता हुआ आया। और उसने पंडित से गाय के बारे में पूछा. माला फेरने कि वजह से पंडित कुछ ना बोले परंतु उन्होंने गली की इशारा कर दिया जिस तरफ वह गाय गई थी. वह आदमी एक कसाई था, जिससे वह पंडित अंजान थे | और गाय उस कसाई के चंगुल से जान बचाकर भागी थीं. जिसे कसाई ने पुन: पकड़कर वध कर दिया. अंजाने में ही सही परंतु गौ-वध का पाप उस को भी लग गया | जिसके कारण उस पंडित का अगला जन्म एक कसाई के रूप हुआ. जिसका नाम सदना था। पूर्वजन्म मे किये पुण्यकर्मो की वजह से वह कसाई तो थे लेकिन उदार और सदाचारी भी थे। कसाई परिवार में जन्म होने के वजह से सदना मांस बेचते तो थे, परन्तु उसकी मन भगवत भजन में भी लगा ऱहा था और वह बड़ी निष्ठा से भजन पूजन करते थे. जब एक दिन सदना किसी काम से बाहर जाते रहते है तो नदी के पास से गुज़रते समय उसे एक पत्थर मिलता है | गोलाकार और सुंदर देखने के कारण सदना उस पत्थर को मांस तोलने के लिए अपने साथ लेकर आ जाता है,  और *शालिग्राम* पत्थर को बाट मे रखकर तौलता तो बाट का ऐसा कमाल होता कि चाहे आधे किलो तौलता, एक किलो या दो किलो तोला तो सारा वजन उसमे बराबर आ जाता. यह देख सदना खुश हो सोचते यह तो बडे काम का है, और वह उस *शालिग्राम* पत्थर से ही सारे वजन करता और भगवान का भजन करता|

कसाई होने की वजह से सदना अंजान थे इसलिए वह *शालिग्राम* की महत्ता को नही समझ पाये | परंतु पूर्वजन्म में *शालिग्राम* की नित्य पूजा करने की वजह से *शालिग्राम* पुनः सदना कसाई को प्राप्त हुआ | जिसका सदना ने इस जन्म में मांस तोलने कके लिए बाट बना लिया। और सदाचारी और निष्ठावान होने के कारण सदना काम करते हुए भी *ठाकुरजी* के भजन गाते रहते थे|

एक बार ब्राम्हणों का दल सदना दुकान के सामने से गुजरता है, वही से गुज़रते हुए एक ब्राम्हण की नजर *शालिग्राम* पर पड़ती है जो तराजू मे बाट की जगह पर रखी थी, यह देख ब्राम्हण सदना के पास आते है, और कहते है अरे मूर्ख जिसे तू बाट समझ कर उससे मास तौल रहा है वह साक्षात भगवान *विष्णुजी* है और तुमने भगवान *शालिग्राम* को यहाँ रखकर उन्हें अपवित्र कर दिया है | यह कहकर ब्राह्मण ने सदना से *शालिग्राम* भगवान को लिया और घर लेकर आ जाते| और गंगा जल से स्नान कराकर, धूप, दीप, चन्दन लगा पूजा की. ब्राह्मण को यह अहंकार होता है कि जिस *शालिग्राम* से पतितों का उध्दार होता है आज उसकी वजह से एक *शालिग्राम* का वह उद्धार कर रहा है। रात को उस ब्राह्मण के सपने में ठाकुरजी आते है और कहते है - "* हे ब्राम्हण देव* आप मुझे जहां से लाए हो वहीँ मुझे छोड़ दो। मुझे मेरे भक्त सदना कसाई की याद आ रही है, मुझे उसकी भक्ति मे जो आंनद मिलता था वह आनंद मुझे यहां नही मिल रहा है |

ब्राह्मण बोलते, " *है - प्रभु!* वह कसाई का पापकर्म करता है. आपका उपयोग मांस तोलने में करता है. मांस की दुकान जैसा अपवित्र स्थान आपके योग्य नहीं.

भगवान कहते है - "हे ब्राम्हण देव वह जगह मुझे अत्यंत प्रिय लगती थी, क्योंकि जब सदना मुझे तराजू में रखकर तौलता था तो मुझे ऐसा लगता है, कि वह मुझे झूला रहा है. और वह मांस की दुकान में आने वालों को भी मेरे नाम का स्मरण कराता है. मेरी भजन करता है. इसलिये मुझे वहां जो आनन्द मिलता था वह यहाँ नहीं मिलता | इसलिये आप मुझे वही छोड आओ।" ब्राह्मण भगवान की बात मान *शालिग्राम* भगवान को पुन: सदना कसाई को वापस दे आते है, और कहते है, भगवान को तुम्हारी संगत ज्यादा ही सुहाने लगी है। और भगवान यही तुम्हारे पास ही रहना चाहते हैं। यह *शालिग्राम भगवान* का स्वरुप हैं। हो सके तो इनकी पूजा करो बाट बनाकर मास तौलना।

सदना ब्राम्हण की बात सुन अनजाने में हुए अपराध से दुखी हो जाता है। और सदना इस अपराध की प्रायश्चित करने का निर्णय करता है , और उसी समय वही से वह भगवान *शालिग्राम* को लेकर भगवान *जगन्नाथ* के दर्शन के लिए निकल पड़ता है | जब वह भगवान *जगन्नाथ* के दर्शन को जाते रहता है तो उसे एक समूह मिलता जो भगवान *जगन्नाथ* की यात्रा के लिये जाते रहते है सदना उसमे शामिल हो जाता है और उनके साथ जाने लगता है, लेकिन समूह के कुछ लोगों सदना से उसके गांव व काम को पीछे तो वह जब बताया है कि वह एक कसाई का काम करता था. तो लोग उससे दूर-दूर रहने लगते है, और उसका छुआ खाना-पीना पसंद नहीं करते है|यह सब देख सदना दुखी होकर उस समूह का साथ छोड़ा अकेले ही भगवान *शालिग्राम* को लिये भजन करते चलने लगता है, कुछ दूर चलने के बाद सदना को प्यास लगती है तो वह पास के एक गांव मे ठहर कर कुंए से पानी पीने लगता है, सदना के कद-काठी मजबूत शरीर देख कुएं मे पानी भर रही एक स्त्री उस पर मोहित हो जाती है, और सदना से कहने लगती है कि शाम हो गई है इसलिए आज रात यही हमारे घर में ही रूक विश्राम कर लें| और कल सुबह चले जाये सदना को उसकी कुटिलता समझ में न आई, और वह उसके घर अतिथि बनकर रूक जाता है|

रात्रि में जब वह स्त्री अपने पति के सो जाने पर सदना के पास पहुंचती है, और सदना से अपने प्रेम की बात कहती है तो वह स्त्री की बात सुन चौंक जाता है और उसे अपनी पतिव्रता रहने को कहने लगता है,  उस स्त्री को लगता शायद मेरा पति है इस कारण सदना मुझ पर रुचि नहीं ले रहे है. इसलिये वह जाकर सोते हुए अपने पति का गला काट देती है, जिसे देख सदना अत्यधिक डर जाता है, बात बिगड़ जाने के डर से वह स्त्री जोर-जोर से रोना-चिल्लाना शुरू कर देती है, जिससे गांव मे उसके पड़ोसी वहा आ जाते है जिसके सामने वह स्त्री सदना पर आरोप लगा देती है कि यह चोरी की नीयत से हमारे घर घुसकर इसने मेरे पति का गला काट दिया. सभी गांव वाले सदना को पकड़ कर राजा के पास पेश करते है| राजा सदना को देख समझ जाते है कि यह हत्यारा नहीं है और वह सदना से सच पूछते है, परंतु सदना यह सोचने लगता कि यदि मै प्यास से व्याकुल हो गांव में नही आता तो हत्या नहीं होती. ऐसा सोच वह स्वयं को ही इसके लिए दोषी समझने लगता है और राजा उसके चुप रहने को एक तरह से अपराध की मौन स्वीकृति दे रहा है. राजा समझ जाते है परंतु सजा नही देने से प्रजा मे गलत संदेश जायेगा इस हेतु दण्ड अनिवार्य बनता है. वह सदना के  हाथ काटने का हुक्म देते है, और सदना का दायां हाथ काट दिया जाता है| सदना उस पूर्वजन्म के कर्म मानकर चुपचाप दंड सहा और पुनः जगन्नाथपुरी धाम की यात्रा के लिये निकल जाता है |

जैसे ही सदना ? जगन्नाथ पुरी धाम के निकट पहुंचे है तो भगवान संवय ने अपने सेवक राजा को कहते है कि वह संवत जाये, और मेरे प्रियभक्त सदना कसाई को सम्मान पूर्वक यहा लेकर आये| भगवान के आदेश का पालन कर राजा अपनी मंत्री एवं प्रजा को लेकर गाजे-बाजे के साथ लेकर सदना को लेने जीते है. लेकिन सदना ने यह सम्मान स्वीकार नहीं करते है, तब स्वयं भगवान जगन्नाथ सदना को दर्शन देते है और उसे सारा वृतान्त सिखाते है - तुम पूर्वजन्म में ब्राहमण थे, माला करते समय एक कसाई को गाय उंगली से इशारा करके पता बताया था. तुम्हारे कारण उस गाय की जान गई थी, वह गाय का पुनर्जन्म स्त्री को रूप मे हुआ| जिसके झूठे आरोपों के कारण तुम्हारे हाथ काटा दिये गये. और वह जो पुनर्जन्म मे कसाई था वह इस जन्म मे उसी स्त्री का पति था जिसकी हत्या कर उस स्त्री ने अपने पूर्वजन्म बदला लिया है. भगवान जगन्नाथजी कहते है सभी के शुभ और अशुभ कर्मों का फल मैं देता हूँ. अब तुम सारे कर्मो से निष्पाप हो गए हो. कसाई जन्म लेकर भी तुमने धर्म और मेरी भक्ति नही छोड़ी इसलिए तुम्हारे प्रेम को मैंने स्वीकार किया. और इस कारण मैं तुम्हारे साथ मांस तोलने वाले तराजू में भी प्रसन्न रहा. इस प्रकार भगवान के दर्शन से सदनाजी को मोक्ष प्राप्त हुआ. भगवान भी भक्ति मसे प्रसन्न होते है आडंबर से नही | भक्ति की भावना होनी चाहिए श्रध्दा जहा होती है वहा भगवान को सब स्वीकार होता है इसलिये भगवान के नाम का गुणगान करो और पूर्ण श्रध्दा से प्रभु की पूजा करो ध्यान करो यही सबसे बड़ा पुण्य है|

      🌸 *!! जय जगन्नाथ भगवान !!* 🌸

No comments:

Post a Comment