Thursday, July 26, 2018

*आज की ब्रज रस धारा* 〰〰〰〰〰〰〰〰

*आज की ब्रज रस धारा*
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*दिनांक 26/07/2018*



*क्यों मचल पड़े श्री मदन मोहन जी ?*

                               
  *“श्री मदन मोहन जी मंदिर”*
स्थान – “श्री मदन मोहन जी मंदिर” श्री सनातन गोस्वामी के अप्रकट लीला में प्रवेश करने के बाद 1670 ई० में हिन्दू विरोधी राजाओं ने इस मन्दिर के शिखर आदि को तोड़कर मन्दिर को अपवित्र कर दिया ।

उसके पहले ही श्री मदनमोहन जी अन्य विग्रहों के साथ जयपुर चले गये थे इस समय वे करोली में विराजमान हैं ।

1748 ई० में श्री मदन मोहनजी की पर्तिभुती वृन्दावन में स्थापित हुई और 1819 ई० में कलकत्ता के श्री नन्दकुमार वसु के द्वारा वर्तमान मन्दिर का निर्माण हुआ।

स्थापना – सेवा प्राकट्य और इष्टलाभ नामक प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों में लिखा है की सनातन गोस्वामी ने संवत 1590 ई० में महावन के परशुराम चौबे से श्री मदनमोहनजी को प्राप्तकर उसी संवत्सर में माघ शुक्ला द्वितीया तिथि में पुनः स्थापना कर श्रीकृष्णदास ब्रहम्चारीजी के ऊपर सेवा पूजा का भार न्यौछावर कर दिया ।

विग्रह – सनातन जी मदनमोहन को चौबाईन के घर से लाये, उस समय श्री मदनमोहनजी के साथ श्री राधा विग्रह नहीं था ।

श्री मदनमोहनजी के प्रकट होने की बात सुनकर उड़ीसा के राजा प्रतापरुद्र के पुत्र श्री पुरुषोत्तम जाना ने बड़ी श्रद्धा के साथ पुनः दो राधा विग्रहों को पुरी धाम से वृन्दावन भेजा ।

श्री मदनमोहन जी ने अपने पुजारी को स्वप्नादेश दिया की पुरी से जो दो विग्रह आये हैं, उनमें से एक बड़ी ललितजी हैं और छोटी राधिकाजी हैं ।

“श्री सनातन गोस्वामी जी” जब वृंदावन आये और द्वादश टीला जो कलिदेह के निकट है वही पर एक कुटिया में निवास करते थे

और उन्ही श्री सनातन गोस्वामी जी कि भक्ति से प्रसन्न होकर श्री मदन मोहन जी ने मथुरा के चौबे रमणी के घर से आकर उनकी सेवा प्राप्त की

श्री कृष्ण के प्रपौत्र श्री वज्रनाभ ने श्री गोविंद, श्री गोपीनाथ, और श्री मदनमोहन इन तीनो विग्रहों की श्रीधाम वृंदावन में स्थापना की थी.

कालांतर में मेलेच्छो के अत्याचार से पुजारी इन विग्रहों को इधर उधर छिपाकर वहाँ से चले गए वृंदावन घोर जंगल के रूप में परिणित हो गया यहाँ किसी गृहस्थ का वास नहीं था.

अतः सनातन जी मथुरा से भिक्षा माँग कर लाते थे श्री सनातन जी प्रातः काल वृंदावन से सोलह मील चलकर चौदह मील गोवर्धन की परिक्रमा करते थे

वहाँ से सोलह मील चलकर मथुरा में मधुकरी करते और पुन:वृंदावन में अपनी भजन कुटी पर लौट आते.
                                 

 सनातन जी का मदनमोहन को चौबाईन के घर से लाना

प्रसंग १. – एक दिन मथुरा में एक चौबे के घर में श्री सनातन जी ने श्यामकांति वाले मदन नामक बालक को देखा,

जो चौबे के घर में स्थित मंदिर से निकलकर चौबे के बालक के साथ गुल्ली डंडा खेल रहे थे.

उन श्याम कांति वाले मदन बालक ने चौबाईन के बालक को पराजित कर दिया,

मदन ने पराजित चौबे बालक के कंधे पर बैठकर घोड़े क का आनंद लिया, किन्तु दूसरी बार पराजित होने पर जब मदन के कंधे पर, चौबे बालक को चढ़ने की बारी आई तो मदन भागकर मंदिर में प्रवेश कर गया.

ऐसा देखकर चौबे का बालक क्रोध से गली देता हुआ उसके पीछे दौड़ा, वह मंदिर में प्रवेश करना चाहता था किन्तु पुजारी जी ने उसे डाट-डपटकर भगा दिया,

अतः विग्रह बने मदन को दूर से ही तर्जनी अँगुली दिखाते हुए चौबे बालक ने कहा – अच्छा कल तुझे देख लूँगा.

श्री सनातन जी इस द्रश्य को देखकर आश्चर्य चकित रह गए दूसरे दिन वे कुछ पहले ही दर्शनों की पिपासा लेकर पहुँच गए कलेवे का समय था

अतः चौबाईन दोनों बालको के कलेबे के लिए खिचड़ी पका रही थी, अभी उसने स्नान आदि नहीं किया था दोनों बालक कलेवे की प्रतीक्षा कर रहे थे.

मैया दातुन करती जा रही थी और उसके दूसरे सिरे से खिचड़ी को भी चलाती जा रही थी.

खिचड़ी पक जाने पर कटोरी में गर्म-गर्म खिचड़ी बालको के सामने रखकर फूँक कर उसे ठंडा भी करने लगी. और दोनों बालको ने बड़े प्रेम से खिचड़ी का रसास्वादन करने लगे.

सनातन  जी से ये चौबाईन का अनाचार सहन नहीं हुआ उन्होंने कहा – माई! इन बालको को बिना स्नान किये दातुन से खिचड़ी चलाकर अपवित्र कलेवा देना उचित नहीं है,

चौबा ईन अपनी भूल समझ गई. बोली – बाबा कल से शुद्ध रूप से बनाकर ही दूँगी .

सनातन जी तो रोज ही मधुकरी के लिए आते थे तीसरे दिन फिर पहुच गए तो देखा की माई के स्नान पूजन में विलम्ब के कारण दोनों बालक भूख लगने के कारण कलेबा के लिए मचल रहे है.

माँ बर्तन धोकर खिचड़ी पका रही है. दोनों उसके वस्त्र पकड़कर मचल रहे थे .

तब सनातन जी ने फिर कहा – माई!  आपको स्नान करने की कोई आवश्यकता नहीं है आप पूर्ववत ही बनाये

.मैंने आपके चरणों का अपराध किया है , उस बालक के दर्शन हेतु सनातन जी नियम से चौबे के घर आने लगे,और घंटो खड़े उसे देखते और रोते रहते.

एक दिन रात में स्वप्न में श्री मदनमोहन जी ने श्री सनातन जी से कहा – कि तुम मुझे मथुरा से यहाँ ले आओ,

और उधर चौबाईन को भी स्वप्न में कहा – कि मुझे उन बाबा को दे देना,अगले दिन चौबाईन ने मदनमोहन जी को श्री सनातन जी को सौप दिया,

बोली ये तो बहुत छलिया है जिस यशोदा ने इतना लाड लड़ाया उसे ही छोडकर मथुरा चला गया.

इसका कोई सगा नहीं है, इसे मेरी चाह नहीं है तो मै भी क्यों इसके लिए मरू,जाये मेरी बला से, इस तरह प्रेम में रोष करने लगी.

बाहर से तो गुस्सा दिखा रही थी और अन्दर से प्रेम के कारण आँसू निकल रहे थे,

श्री सनातन जी  भिक्षा के द्वारा प्राप्त आटे से अलौनी बाटी बनाकर अपने मदन मोहन का भोग लगाकर खुद पाते थे

एक दिन मदन मोहन जी  ने कहा बोले – बाबा ये अलौनी बाटी मेरे गले के नीचे नहीं उतरती थोडा सा नमक क्यों नहीं डालते सनातन जी बोले नमक कहा से लाऊ ?

बोले मधुकरी मागकर लाते हो वही से, अब सनातन जी नमक लगाकर बाटी बनाने लगे,

अब कुछ दिनों बाद मदनमोहन जी फिर बोले –बाबा ये बिना घी कि बाटी हमसे नहीं खायी जाती अब तो सनातन जी बोले –  देखो मै ठहरा वैरागी,

अगर इतना ही स्वादिष्ट भोजन करना चाहते थे तो किसी सेठ के पास क्यों नहीं गए यहाँ तो ऐसे ही मिलेगा,

कभी कहते हो नमक नही, कभी कहते हो घी नहीं, कल ५६ भोग मांगोगे, कहा से लाऊंगा ? अपनी व्यवस्था स्वयं कर लो.

प्रसंग २-  एक दिन पंजाब में मुल्तान का रामदास खत्री – जो कपूरी नाम से अधिक जाना जाता था,

आगरा जाता हुआ व्यापार के माल से भरी नाव लेकर जमुना में आया किन्तु कालीदह घाट के पास रेतीले तट पर नाव अटक गयी।

तीन दिनों तक निकालने के असफल प्रयासों के बाद वह स्थानीय देवता को खोजने और सहायता माँगने लगा।

वह किनारे पर आकर पहाड़ी पर चढ़ा। वहाँ उसे सनातन मिले। और सारा वृतांत कहा सनातन जी बोले मै तो एक संन्यासी हूँ क्या कर सकता हूँ

अन्दर मदन मोहन जी है उनसे प्रार्थना करो व्यापारी से मदनमोहन से प्रार्थना करने लगा,और तत्काल नाव तैरने लग गई।

जब वह आगरे से माल बेचकर लौटा तो उसने सारा पैसा सनातन को अर्पण कर दिया और उससे वहाँ मंदिर बनाने की विनती की।

मंदिर बन गया और लाल पत्थर का घाट भी बना ।

श्री राम दास कपूर द्वारा निर्मित श्री मदन मोहन जी का प्राचीन मंदिर यमुना से ६० फूट उन्नत आदित्य टीला पर स्थित है

उडीसा के महराजा श्री प्रताप रूद्र के पुत्र श्री पुरुषोत्तम ने उस समय के प्रमुख विग्रहों के लिए श्री राधा कि अत्यंत सुन्दर प्रतिमाये वृंदावन भेजी थी

वे वाम अंग में श्री राधा और दक्षिण भाग में श्री ललिता के रूप में प्रतिष्ठित कि गई राज्य विप्लव के समय श्री मदन मोहन की मूर्ति को जयपुर पहुचाया गया.

प्रसंग ३- जयपुर में राजकन्या के विवाह के समय अपने इष्ट मदन मोहन जी को दहेज में करौली ले जाने की इच्छुक थी पर पिता भेजना नहीं चाहते थे,

राजा ने कहा मदन मोहन कि छै प्रतिमाये तुम्हारे सामने रखता हूँ तुम्हारी आँखों पर पट्टी बांध दी जायेगीतुम जिस विग्रह पर अपना हाथ रखोगी वही ले जाना,

रात्रि में मदन मोहन जी ने स्वप्न में राज कन्या से कहा –देखो जिस विग्रह के हाथ की एक अँगुली ऊपर उठी हुई रहे

उसे तुम चुन लेना मै अपनी एक अँगुली को ऊँचा उठा कर रखुगा राजकन्या ने ऐसा ही किया और ठाकुर जी जयपुर से करौली आ गए और आज तक वही विराजमान है.

*जय जय श्री राधे*


     

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