मुट्ठी भर मेढक
बहुत समय पहलेकी बात है किसी गाँव में मोहन नाम का एक किसान रहता था. वह बड़ा मेहनती और ईमानदार था. अपने अच्छेव्यवहार के कारण दूर-दूर तक लोग उसे जानतेथे और उसकी प्रशंशा करते थे. पर एक दिन जब देर शाम वहखेतों से काम कर लौट रहा था तभी रास्ते में उसने कुछलोगों को बाते करते सुना, वे उसी के बारे में बात कररहे थे.
मोहन अपनी प्रशंशा सुनने के लिएउन्हें बिना बतायेधीरे-धीरे उनके पीछेचलने लगा,पर उसने उनकी बात सुनी तो पाया किवे उसकी बुराईकर रहे थे, कोई कह रहा था कि, “मोहन घमण्डी है.”, तो कोई कह रहा था कि,“सबजानते हैं वो अच्छाहोने का दिखावा करता है.”
मोहन ने इससे पहले सिर्फ अपनी प्रशंशा सुनी थी परइस घटना का उसके दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा और अब वह जबभी कुछ लोगों को बाते करतेदेखता तो उसे लगता वेउसकी बुराई कर रहे हैं. यहाँ तक कि अगर कोई उसकी तारीफ़ करता तो भी उसे लगता कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है. धीरे-धीरे सभी ये महसूस करने लगे कि मोहन बदल गया है, और उसकी पत्नी भी अपने पति के व्यवहार में आये बदलाव सेदुखीरहने लगी और एक दिन उसनेपूछा,“आज-कल आप इतने परेशान क्यों रहते हैं ;कृपयामुझे इसका कारण बताइये.”
मोहन ने उदास होते हुए उस दिन कीबात बता दी. पत्नी को भी समझ नहीं आया कि क्या किया जाए पर तभी उसे ध्यान आयाकि पास के ही एकगाँव में एक सिद्धमहात्मा आये हुए हैं, और वो बोली,“स्वामी, मुझे पता चला है कि पड़ोस के गाँव में एक पहुंचे हुए संत आये हैं । चलिये हम उनसेकोई समाधान पूछतेहैं.”
अगले दिन वे महात्मा जी के शिविरमें पहुंचे. मोहन ने सारी घटना बतायी और बोला, महाराज उस दिन के बाद से सभी मेरीबुराई और झूठी प्रशंशा करते हैं, कृपया मुझे बताइये कि मैं वापस अपनी साख कैसे बना सकता हूँ !”महात्मा मोहन कि समस्या समझ चुके थे.
“पुत्र तुम अपनी पत्नी को घर छोड़ आओ और आज रातमेरे शिविर में ठहरो.”, महात्मा कुछ सोचते हुए बोले. मोहन ने ऐसा ही किया, पर जब रात में सोने का समयहुआ तो अचानक ही मेढ़कों के टर्र-टर्र की आवाज आने लगी.
मोहन बोला, “ये क्यामहाराज यहाँ इतनाकोलाहल क्यों है ?”
“पुत्र,पीछे एक तालाब है, रात के वक़्त उसमेमौजूद मेढक अपना राग अलापने लगतेहैं !!!”
“पर ऐसे में तो कोई यहाँ सो नहीं सकता ?,” मोहानने चिंता जताई।
“हाँ बेटा, पर तुम ही बताओ हम क्याकर सकते हैं,हो सके तो तुम हमारीमदद करो”,महात्मा जी बोले.
मोहन बोला, “ठीक है महाराज, इतना शोर सुनके लगताहै इन मेढकों की संख्या हज़ारों में होगी, मैं कल ही गांव से पचास-साठमजदूरों कोलेकर आता हूँ और इन्हेपकड़ कर दूर नदी में छोड़ आता हूँ.”
और अगले दिन मोहन सुबह-सुबहमजदूरों के साथ वहाँपंहुचा, महात्मा जी भी वहीँखड़े सब कुछ देख रहे थे. तालाब जयादा बड़ा नहीं था, 8-10 मजदूरों ने चारोंऔर से जाल डाला औरमेढ़कों को पकड़ने लगे. थोड़ी देर की ही मेहनत में सारे मेढक पकड़ लिए गए.
जब मोहन ने देखा कि कुल मिला कर 50-60 ही मेढक पकड़े गए हैं तब उसने माहत्मा जी से पूछा, “महाराज, कल रात तो इसमें हज़ारोंमेढक थे,भला आज वे सब कहाँ चले गए, यहाँ तो बस मुट्ठी भर मेढक ही बचे हैं.”
महात्मा जी गम्भीर होते हुए बोले, “कोई मेढक कहीं नहीं गया, तुमने कल इन्ही मेढ़कोंकी आवाज सुनी थी, ये मुट्ठी भर मेढक हीइतना शोर कररहे थे कि तुम्हे लगा हज़ारों मेढक टर्र-टर्र कर रहे हों. पुत्र, इसी प्रकार जबतुमनेकुछ लोगों को अपनी बुराई करते सुना तो भी तुम यही गलती कर बैठे, तुम्हेलगा कि हर कोई तुम्हारीबुराई करता है पर सच्चाई ये है कि बुराई करने वाले लोगमुठ्ठी भर मेढक केसामान ही थे. इसलिए अगली बार किसी को अपनी बुराई करते सुनना तो इतना याद रखना कि होसकता है ये कुछ ही लोग हों जो ऐसा कर रहे हों, और इस बात को भी समझना कि भले तुम कितने ही अच्छे क्यों न हो ऐसे कुछ लोग होंगे ही होंगे जोतुम्हारी बुराई करेंगे।”
अब मोहन को अपनी गलती का अहसास होचुका था,वहपुनः पुराना वाला मोहन बन चुका था.
दोस्तों, मोहन की तरह हमें भीकुछ लोगों के व्यवहार को हर किसी काव्यवहार नहीं समझ लेना चाहिए और सकारात्मक नजरिये औरसोंच सेअपनी ज़िन्दगी जीनी चाहिए। हमकुछ भी कर लें पर जिंदगी में कभी ना कभी ऐसी समस्या आ ही जाती है जो रात के अँधेरे में ऐसी लगती है मानो हज़ारों मेढक कानमें टर्र-टर्र कररहे हों। पर जब दिन केउजाले में हम उसका समाधान करने का प्रयास करते हैं तो वहीसमस्या छोटी लगने लगती है. इसलिए हमें ऐसी स्थिति मेंघबराने की जगह उसकासमाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए और कभी मुट्ठी भरमेढकों से घबराना नहींचाहिए.
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