Saturday, July 21, 2018

- श्री सूरदासजी

देखो  माई, नई  वरषा  रितु  आई   ।
उमगि  घटा  चहुंं  दिसि  तें  जुरि-जुरि  बिजुरी  चमक  सुहाई  ।।
दादुर-मोर-पपैया  बोलत  , कोकिल  शब्द  सुहाई  ।
निसि-दिन  रहत  सदा  प्रितम  संग  , निरखत  नैन  अघाई  ।।
घन  जमुना, घन  पुलिन  मनोहर, वायु  बहत  सुखदाई   ।
सूरदास  प्रभु  की  छबि  ऊपर, नैनन  नीर बहाई  ।।

   - श्री सूरदासजी

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