श्रीराधाकुण्ड की शोभा निराली है। कुण्ड के मध्य में हंस के आकार का एक रंगमहल
है। कुंड में विभिन्न रंग के अनेक कमल पुष्प खिले हुए हैं। जलाशय में तैरते हुए हंसिनी-हंस सभी की दृष्टि को आकृष्ट कर लेते हैं। शीतल-मन्द-सुगंध पवन का स्पर्श सुहावना लग रहा है। कुण्ड की सीढ़ियां मणि-माणिक्य से निर्मित हैं। कुण्ड के आठों कोनों में अष्ट सखियों के अष्ट कुञ्ज हैं। श्री ललिता जी का कुंज उत्तर दिशा की ओर है। ललिता कुंज के घाट पर श्री प्रिया-प्रियतम खड़े हैं और खड़ी हैं अन्य सखियां-सहचरियां भी।
श्री प्रियाजी के मन में एक मनोरथ का उद्भव होता है कि हम दोनों होड़ बद कर कुण्ड के जल में संतरण(तैरने) का आनंद लें और देखें कि कौन पहले रंग-महल की सीढियों का स्पर्श करता है। श्री ललिता जी तथा अन्य सभी सहचरियां इस बदा-बदी का सोल्लास अनुमोदन करती हैं।
श्री प्रिया-प्रियतम कुण्ड के जल में उतर कर तैरने लगते है,साथ में हम सब भी तैर रही हैं यह देखने के लिए कि कौन सर्वप्रथम रंग-महल की सीढियों का स्पर्श करता है। स्पष्ट लग रहा है कि श्री प्रियाजी पहले स्पर्श करने वाली हैं, पर अचानक यह क्या हुआ ? संतरण करते करते श्री प्रियाजी डुबकी लगा लेती हैं,और श्री प्रियतम बाजी जीत लेते हैं,..!!
रात्रि के समय निकुंज में एकांत और अनुकूल अवसर पाकर मैं प्रिया जी से प्रश्न करती हूं कि हे स्वामिनी ! जीतते-जीतते डुबकी क्यों लगा ली?
श्री प्रियाजी उत्तर में कहती है,--''मैं अपने प्रियतम की हार नहीं देख सकती,,मेरी यही भावना है कि वे सदा विजयी हों।
ऐसा सुनते ही परमोल्लास में मेरे अधरों से स्वर फूट पड़े - इस तत्सुखी-भावना की सदा जय हो.....ऐसा कब होगा ????
है। कुंड में विभिन्न रंग के अनेक कमल पुष्प खिले हुए हैं। जलाशय में तैरते हुए हंसिनी-हंस सभी की दृष्टि को आकृष्ट कर लेते हैं। शीतल-मन्द-सुगंध पवन का स्पर्श सुहावना लग रहा है। कुण्ड की सीढ़ियां मणि-माणिक्य से निर्मित हैं। कुण्ड के आठों कोनों में अष्ट सखियों के अष्ट कुञ्ज हैं। श्री ललिता जी का कुंज उत्तर दिशा की ओर है। ललिता कुंज के घाट पर श्री प्रिया-प्रियतम खड़े हैं और खड़ी हैं अन्य सखियां-सहचरियां भी।
श्री प्रियाजी के मन में एक मनोरथ का उद्भव होता है कि हम दोनों होड़ बद कर कुण्ड के जल में संतरण(तैरने) का आनंद लें और देखें कि कौन पहले रंग-महल की सीढियों का स्पर्श करता है। श्री ललिता जी तथा अन्य सभी सहचरियां इस बदा-बदी का सोल्लास अनुमोदन करती हैं।
श्री प्रिया-प्रियतम कुण्ड के जल में उतर कर तैरने लगते है,साथ में हम सब भी तैर रही हैं यह देखने के लिए कि कौन सर्वप्रथम रंग-महल की सीढियों का स्पर्श करता है। स्पष्ट लग रहा है कि श्री प्रियाजी पहले स्पर्श करने वाली हैं, पर अचानक यह क्या हुआ ? संतरण करते करते श्री प्रियाजी डुबकी लगा लेती हैं,और श्री प्रियतम बाजी जीत लेते हैं,..!!
रात्रि के समय निकुंज में एकांत और अनुकूल अवसर पाकर मैं प्रिया जी से प्रश्न करती हूं कि हे स्वामिनी ! जीतते-जीतते डुबकी क्यों लगा ली?
श्री प्रियाजी उत्तर में कहती है,--''मैं अपने प्रियतम की हार नहीं देख सकती,,मेरी यही भावना है कि वे सदा विजयी हों।
ऐसा सुनते ही परमोल्लास में मेरे अधरों से स्वर फूट पड़े - इस तत्सुखी-भावना की सदा जय हो.....ऐसा कब होगा ????
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