कृष्ण:--
कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है।
कृष्ण के जीवन में वह सबकुछ है जिसकी मानव को आवश्यकता होती है।
कृष्ण गुरु हैं, तो शिष्य भी। आदर्श पति हैं तो प्रेमी भी। आदर्श मित्र हैं, तो शत्रु भी। वे आदर्श पुत्र हैं, तो पिता भी। युद्ध में कुशल हैं तो बुद्ध भी।
कृष्ण के जीवन में हर वह रंग है, जो धरती पर पाए जाते हैं इसीलिए तो उन्हें पूर्णावतार कहा गया है।
मूढ़ हैं वे लोग, जो उन्हें छोड़कर अन्य को भजते हैं।
‘भज गोविन्दं मुढ़मते।’
आठ का अंक:--
कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है।
उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था।
उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठमित्र और आठ शत्रु थे।
इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।
कृष्ण के नाम:--
नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव।
बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि।
कृष्ण के माता-पिता:--
कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था।
उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था।
बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार दिया। रोहिणी वसुदेव की पत्नी थीं।
कृष्ण के गुरु:--
गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था।
गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दी थी।
माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे।
कृष्ण के भाई:--
कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे।
शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ।
अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण।
इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे।
इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे।
कृष्ण की बहनें:--
कृष्ण की 3 बहनें थी।
1. *एकानंगा* (यह यशोदा की पुत्री थीं)।
2. *सुभद्रा* : वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ।
वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं।
सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे।
3. *द्रौपदी* : पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्ण इसे अपनी मानस भगिनी मानते थे।
4. देवकी के गर्भ से सती ने *महामाया* के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं, विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं।
कृष्ण की पत्नियां:--
रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी।
कृष्ण के पुत्र:--
रुक्मणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण,
जम्बवंती से साम्ब,
मित्रवंदा से वृक,
सत्या से वीर,
सत्यभामा से भानु,
लक्ष्मणा से…,
भद्रा से… और
कालिंदी से…।
कृष्ण की पुत्रियां:--
रुक्मणी से कृष्ण की एक पुत्री थीं जिसका नाम चारू था।
कृष्ण के पौत्र:--
प्रद्युम्न से अनिरुद्ध। अनिरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ था।
कृष्ण की 8 सखियां:--
राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। सखियों के नाम निम्न हैं:--
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं:--
चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।
कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं:--
चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी।
इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गई सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। कुछ जगह पर:--
ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुङ्गविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है।
कृष्ण के 8 मित्र:--
श्रीदामा, सुदामा, सुबल, स्तोक कृष्ण, अर्जुन, वृषबन्धु, मन:सौख्य, सुभग, बली और प्राणभानु। इनमें से आठ उनके साथ मित्र थे।
ये नाम आदिपुराण में मिलते हैं। हालांकि इसके अलावा भी कृष्ण के हजारों मित्र थे जिसनें दुर्योधन का नाम भी लिया जाता है।
कृष्ण के शत्रु:--
कंस, जरासंध, शिशुपाल, कालयवन, पौंड्रक।
कंस तो मामा था। कंस का श्वसुर जरासंध था। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। कालयवन यवन जाति का मलेच्छ जाती था जो जरासंध का मित्र था। पौंड्रक काशी नरेश था जो खुद को विष्णु का अवतार मानता था।
कृष्ण ने किया जिनका वध कृष्ण के शिष्य थे:--
ताड़का, पूतना, चाणूड़, शकटासुर, कालिया, धेनुक, प्रलंब, अरिष्टासुर, बकासुर, तृणावर्त अघासुर, मुष्टिक, यमलार्जुन, द्विविद, केशी, व्योमासुर, कंस, प्रौंड्रक और नरकासुर आदि।
कृष्ण चिन्ह:--
सुदर्शन चक्र, मोर मुकुट, बंसी, पितांभर वस्त्र, पांचजन्य शंख, गाय, कमल का फूल और माखन मिश्री।
कृष्ण लोक:--
वैकुंठ, गोलोक, विष्णु लोक।
कृष्ण ग्रंथ:--
महाभारत और गीता
कृष्ण का कुल:--
यदुकुल। कृष्ण के समय उनके कुल के कुल 18 कुल थे।
अर्थात उनके कुल की कुल 18 शाखाएं थीं।
यह अंधक-वृष्णियों का कुल था। वृष्णि होने के कारण ये वैष्णव कहलाए।
अन्धक, वृष्णि, कुकर, दाशार्ह भोजक आदि यादवों की समस्त शाखाएं मथुरा में कुकरपुरी (घाटी ककोरन) नामक स्थान में यमुना के तट पर मथुरा के उग्रसेन महाराज के संरक्षण में निवास करती थीं।
शाप के चलते सिर्फ यदुओं का नाश होने के बाद अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को द्वारिका से मथुरा लाकर उन्हें मथुरा जनपद का शासक बनाया गया।
इसी समय परीक्षित भी हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाए गए।
वज्र के नाम पर बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज कहलाने लगा।
जरासंध के वंशज सृतजय ने वज्रनाभ वंशज शतसेन से 2781 वि.पू. में मथुरा का राज्य छीन लिया था।
बाद में मागधों के राजाओं की गद्दी प्रद्योत, शिशुनाग वंशधरों पर होती हुई नंद ओर मौर्यवंश पर आई। मथुराकेमथुर नंदगाव, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, मधुवन और द्वारिका।
कृष्ण पर्व:--
श्रीकृष्ण ने ही होली और अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत की थी।
जन्माष्टमी के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है।
मथुरा मंडल के ये 41 स्थान कृष्ण से जुड़े हैं:--
मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, संकेत तीर्थ, लोहवन और वृन्दावन। इसके बाद द्वारिका, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथद्वारा और खाटू श्याम प्रमुख कृष्ण स्थान है।
भक्तिकाल के कृष्ण भक्त:--
सूरदास, ध्रुवदास, रसखान, व्यासजी, स्वामी हरिदास, मीराबाई, गदाधर भट्ट, हितहरिवंश, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, कुंभनदास, परमानंद, कृष्णदास, श्रीभट्ट, सूरदास मदनमोहन, नंददास, चैतन्य महाप्रभु आदि।
कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है।
कृष्ण के जीवन में वह सबकुछ है जिसकी मानव को आवश्यकता होती है।
कृष्ण गुरु हैं, तो शिष्य भी। आदर्श पति हैं तो प्रेमी भी। आदर्श मित्र हैं, तो शत्रु भी। वे आदर्श पुत्र हैं, तो पिता भी। युद्ध में कुशल हैं तो बुद्ध भी।
कृष्ण के जीवन में हर वह रंग है, जो धरती पर पाए जाते हैं इसीलिए तो उन्हें पूर्णावतार कहा गया है।
मूढ़ हैं वे लोग, जो उन्हें छोड़कर अन्य को भजते हैं।
‘भज गोविन्दं मुढ़मते।’
आठ का अंक:--
कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है।
उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था।
उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठमित्र और आठ शत्रु थे।
इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।
कृष्ण के नाम:--
नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव।
बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि।
कृष्ण के माता-पिता:--
कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था।
उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था।
बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार दिया। रोहिणी वसुदेव की पत्नी थीं।
कृष्ण के गुरु:--
गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था।
गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दी थी।
माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे।
कृष्ण के भाई:--
कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे।
शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ।
अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण।
इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे।
इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे।
कृष्ण की बहनें:--
कृष्ण की 3 बहनें थी।
1. *एकानंगा* (यह यशोदा की पुत्री थीं)।
2. *सुभद्रा* : वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ।
वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं।
सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे।
3. *द्रौपदी* : पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्ण इसे अपनी मानस भगिनी मानते थे।
4. देवकी के गर्भ से सती ने *महामाया* के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं, विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं।
कृष्ण की पत्नियां:--
रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी।
कृष्ण के पुत्र:--
रुक्मणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण,
जम्बवंती से साम्ब,
मित्रवंदा से वृक,
सत्या से वीर,
सत्यभामा से भानु,
लक्ष्मणा से…,
भद्रा से… और
कालिंदी से…।
कृष्ण की पुत्रियां:--
रुक्मणी से कृष्ण की एक पुत्री थीं जिसका नाम चारू था।
कृष्ण के पौत्र:--
प्रद्युम्न से अनिरुद्ध। अनिरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ था।
कृष्ण की 8 सखियां:--
राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। सखियों के नाम निम्न हैं:--
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं:--
चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।
कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं:--
चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी।
इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गई सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। कुछ जगह पर:--
ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुङ्गविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है।
कृष्ण के 8 मित्र:--
श्रीदामा, सुदामा, सुबल, स्तोक कृष्ण, अर्जुन, वृषबन्धु, मन:सौख्य, सुभग, बली और प्राणभानु। इनमें से आठ उनके साथ मित्र थे।
ये नाम आदिपुराण में मिलते हैं। हालांकि इसके अलावा भी कृष्ण के हजारों मित्र थे जिसनें दुर्योधन का नाम भी लिया जाता है।
कृष्ण के शत्रु:--
कंस, जरासंध, शिशुपाल, कालयवन, पौंड्रक।
कंस तो मामा था। कंस का श्वसुर जरासंध था। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। कालयवन यवन जाति का मलेच्छ जाती था जो जरासंध का मित्र था। पौंड्रक काशी नरेश था जो खुद को विष्णु का अवतार मानता था।
कृष्ण ने किया जिनका वध कृष्ण के शिष्य थे:--
ताड़का, पूतना, चाणूड़, शकटासुर, कालिया, धेनुक, प्रलंब, अरिष्टासुर, बकासुर, तृणावर्त अघासुर, मुष्टिक, यमलार्जुन, द्विविद, केशी, व्योमासुर, कंस, प्रौंड्रक और नरकासुर आदि।
कृष्ण चिन्ह:--
सुदर्शन चक्र, मोर मुकुट, बंसी, पितांभर वस्त्र, पांचजन्य शंख, गाय, कमल का फूल और माखन मिश्री।
कृष्ण लोक:--
वैकुंठ, गोलोक, विष्णु लोक।
कृष्ण ग्रंथ:--
महाभारत और गीता
कृष्ण का कुल:--
यदुकुल। कृष्ण के समय उनके कुल के कुल 18 कुल थे।
अर्थात उनके कुल की कुल 18 शाखाएं थीं।
यह अंधक-वृष्णियों का कुल था। वृष्णि होने के कारण ये वैष्णव कहलाए।
अन्धक, वृष्णि, कुकर, दाशार्ह भोजक आदि यादवों की समस्त शाखाएं मथुरा में कुकरपुरी (घाटी ककोरन) नामक स्थान में यमुना के तट पर मथुरा के उग्रसेन महाराज के संरक्षण में निवास करती थीं।
शाप के चलते सिर्फ यदुओं का नाश होने के बाद अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को द्वारिका से मथुरा लाकर उन्हें मथुरा जनपद का शासक बनाया गया।
इसी समय परीक्षित भी हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाए गए।
वज्र के नाम पर बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज कहलाने लगा।
जरासंध के वंशज सृतजय ने वज्रनाभ वंशज शतसेन से 2781 वि.पू. में मथुरा का राज्य छीन लिया था।
बाद में मागधों के राजाओं की गद्दी प्रद्योत, शिशुनाग वंशधरों पर होती हुई नंद ओर मौर्यवंश पर आई। मथुराकेमथुर नंदगाव, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, मधुवन और द्वारिका।
कृष्ण पर्व:--
श्रीकृष्ण ने ही होली और अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत की थी।
जन्माष्टमी के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है।
मथुरा मंडल के ये 41 स्थान कृष्ण से जुड़े हैं:--
मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, संकेत तीर्थ, लोहवन और वृन्दावन। इसके बाद द्वारिका, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथद्वारा और खाटू श्याम प्रमुख कृष्ण स्थान है।
भक्तिकाल के कृष्ण भक्त:--
सूरदास, ध्रुवदास, रसखान, व्यासजी, स्वामी हरिदास, मीराबाई, गदाधर भट्ट, हितहरिवंश, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, कुंभनदास, परमानंद, कृष्णदास, श्रीभट्ट, सूरदास मदनमोहन, नंददास, चैतन्य महाप्रभु आदि।
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