Monday, August 20, 2018

*संसार एक भूल--भुलैया है ।

सारी सृष्टि मंगलमय मालूम होनी चाहिए। साम्य दृष्टि होनी चाहिए। जैसे हमे अपने आप पर पूरा विश्वास है वैसे ही सारी सृष्टि पर मुझे विश्वास होना चाहिए। यहाँ डरने जैसी कोई बात नही है। सब कुछ पवित्र है शुद्ध है । यह विश्व मंगलमय है। क्योकि यह परमेश्वर का है परमेश्वर ही इसकी देख भाल करते है । संसार में कुछ भी बिगाड़ नही है कोई अनहोनी नही है। अगर कही कोई बिगाड़ या त्रुटि है तो सिर्फ मेरी नजर में है। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ।*

 *यदि हमारे मन को विश्वास न हो कि सृष्टि शुभ है तो हमारे चित की एकाग्रता नही हो सकती । जब तक मै यह समझता रहूँ गा कि सृष्टि बिगड़ी हुई है तब तक मै संशक दृष्टि से चारो और देखता रहूँ गा और शांत नही हो पाऊ गा। अपनी दृष्टि को बदलना जरूरी है।*


       *संसार एक भूल--भुलैया है । इसको जीव ने सच्चा मान कर,  इससे संबंध जोड़कर सुख चाहने के भ्रम से ममता में आबद्ध हो गया । अब संसार में सुख सीमित मिल रहा है । और दुःखों का अंत नहीं हो रहा है । ऐसी स्थिति से उबरने के लिए मनुष्य चारों तरफ,  मनमाने ढंग से हाथ पैर मार रहा है । उतना ही इस संसार के दल--दल में फंसता जा रहा है । संसार के दुःखों से छूटने का उपाय जो सत्संग में मिलता है । वह संसार में और कही नहीं मिलता है । हम ध्यान से देखे महाराजजी के आज के वचनों में सभी दुःखों के निवारण हेतु, मुक्ति और भक्ति  की प्राप्ति के ठोस एवं सरल उपाय बताये गये है । जिन्हें  धारण करने पर सर्वदुःख निवारण हो सकते है । जैसे--संसार अच्छा हो या मंदा इन बातों से अपना मतलब न रखनेवाला साधक,  योगी होकर संसार से पार हो जाता हैं । और इनसे मतलब रखने वाला मनुष्य भोगी हो कर, संसारमें जन्म--मरण के चक्कर में पड़ जाता हैं ।*

 *जय श्री कृष्णा*

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