Friday, August 31, 2018

ईश्वर का विधान

 ईश्वर का विधान

संतों की एक सभा चल रही थी !

🌟किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगाजल भरकर वहां रखवा दिया ताकि संत जन जब प्यास लगे तो गंगाजल पी सकें !

संतों की उस सभा के बाहर एक व्यक्ति खड़ा था ! उसने गंगाजल से भरे घड़े को देखा तो उसे तरह-तरह के विचार आने लगे !

वह सोचने लगा- अहा ! यह घड़ा कितना भाग्यशाली है !

🌟एक तो इसमें किसी तालाब पोखर का नहीं बल्कि गंगाजल भरा गया और दूसरे यह अब सन्तों के काम!

संतों का स्पर्श मिलेगा ! उनकी सेवा का अवसर मिलेगा.. ऐसी किस्मत किसी किसी की ही होती है !

घड़े ने उसके मन के भाव पढ़ लिए और घड़ा बोल पड़ा- बंधु मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा था ! किसी काम का नहीं था. कभी नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है !

🌟फिर एक दिन एक कुम्हार आया  उसने फावड़ा मार-मारकर हमको खोदा और गधे पर लादकर अपने घर ले गया !

वहां ले जाकर हमको उसने रौंदा !  फिर पानी डालकर गूंथा ! चाकपर चढ़ाकर तेजी से घुमाया ! फिर गला काटा ! फिर थापी मार-मारकर बराबर किया.. बात यहीं नहीं रूकी , उसके बाद आंवे के आग में झोंक दिया जलने को !

🌟इतने कष्ट सहकर बाहर निकला तो गधे पर लादकर उसने मुझे बाजार में भेज दिया ! वहां भी लोग ठोक-ठोककर देख रहे थे कि ठीक है कि नहीं ?

ठोकने-पीटने के बाद मेरी कीमत लगायी भी तो क्या- बस 20 से 30 रुपये ! मैं तो पल-पल यही सोचता रहा कि हे ईश्वर सारे अन्याय मेरे ही साथ करना था !

🌟रोज एक नया कष्ट एक नई पीड़ा देते हो मेरे साथ बस अन्याय ही अन्याय होना लिखा है ! भगवान ने कृपा करने की भी योजना बनाई है यह बात थोड़े ही मालूम पड़ती थी !

किसी सज्जन ने मुझे खरीद लिया और जब मुझमें गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में भेज दिया !

🌟तब मुझे आभास हुआ कि कुम्हार का वह फावड़ा चलाना भी भगवान् की कृपा थी !

उसका वह गूंथना भी भगवान् की कृपा थी !

आग में जलाना भी भगवान् की कृपा थी और बाजार में लोगों के द्वारा ठोके जाना भी भगवान् की कृपा ही थी !

अब मालूम पड़ा कि सब भगवान् की कृपा ही कृपा थी !

🌟परिस्थितियां हमें तोड़ देती हैं ! विचलित कर देती हैं  !इतनी विचलित की भगवान के अस्तित्व पर भी प्रश्न उठाने लगते हैं ! क्यों हम सबमें शक्ति नहीं होती ईश्वर की लीला समझने की भविष्य में क्या होने वाला है उसे देखने की !

इसी नादानी में हम ईश्वर द्वारा कृपा करने से पूर्व की जा रही तैयारी को समझ नहीं पाते , बस कोसना शुरू कर देते हैं कि सारे पूजा-पाठ, सारे जतन कर रहे हैं फिर भी ईश्वर हैं कि प्रसन्न होने और अपनी कृपा बरसाने का नाम ही नहीं ले रहे !

पर हृदय से और शांत मन से सोचने का प्रयास कीजिए.. क्या सचमुच ऐसा है या फिर हम ईश्वर के विधान को समझ ही नहीं पा रहे??

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