*आज का विचार
*"वर्तमान में संसार के समस्त प्राणियों के दुख की धुरी स्वार्थ पर केंद्रित है...हम अपनी सम्पूर्ण दूरदर्शिता निज स्वार्थ साधने में ही नष्ट कर देते..अपने कार्यों को सफल बनाने हेतु हम तब तक नम्र बने रहते जब तक हम उसको अंजाम तक न पहुचा दें,तदुपरांत हम उस माध्यम की ऐसे भूल जाते है जैसे नदी पार करने के उपरांत नौका को हम अनुपयोगी समझ लेते है*
*हम कितने भी अनजान बने रहें ,परन्तु सर्वव्यापी परमात्मा से हमारी ये चालाकियां छुप नही सकती है, और इसी क्रियाशीलता के आधार पर प्रभु हमारे सुखों-दुखों का निर्धारण करते है...आज प्रभु से संसार की नज़रों में न सही ,परमेश्वर की निगाहों में बेहतर करने की अलौकिक प्रार्थना के साथ..."*
*"वर्तमान में संसार के समस्त प्राणियों के दुख की धुरी स्वार्थ पर केंद्रित है...हम अपनी सम्पूर्ण दूरदर्शिता निज स्वार्थ साधने में ही नष्ट कर देते..अपने कार्यों को सफल बनाने हेतु हम तब तक नम्र बने रहते जब तक हम उसको अंजाम तक न पहुचा दें,तदुपरांत हम उस माध्यम की ऐसे भूल जाते है जैसे नदी पार करने के उपरांत नौका को हम अनुपयोगी समझ लेते है*
*हम कितने भी अनजान बने रहें ,परन्तु सर्वव्यापी परमात्मा से हमारी ये चालाकियां छुप नही सकती है, और इसी क्रियाशीलता के आधार पर प्रभु हमारे सुखों-दुखों का निर्धारण करते है...आज प्रभु से संसार की नज़रों में न सही ,परमेश्वर की निगाहों में बेहतर करने की अलौकिक प्रार्थना के साथ..."*
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