एक मिट्टी की मूर्तियां बनाने वाला कुम्हार ईश्वर से कहता है....
हे प्रभु तू भी एक कलाकार है और मैं भी एक कलाकार हूं तूने मुझ जैसे असंख्य पुतले बनाकर इस धरती पर भेजे हैं और मैंने तेरे असंख्य पुतले बनाकर इस धरती पर बेचे है ,,,
पर ईश्वर उस समय बड़ी शर्म आती है जब तेरी बनाई हुई पुतले आपस में लड़ते हैं और मेरे बनाए हुए पुतलो के सामने लोग सिर झुकाते हैं
हे प्रभु तू भी एक कलाकार है और मैं भी एक कलाकार हूं तूने मुझ जैसे असंख्य पुतले बनाकर इस धरती पर भेजे हैं और मैंने तेरे असंख्य पुतले बनाकर इस धरती पर बेचे है ,,,
पर ईश्वर उस समय बड़ी शर्म आती है जब तेरी बनाई हुई पुतले आपस में लड़ते हैं और मेरे बनाए हुए पुतलो के सामने लोग सिर झुकाते हैं
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