*शरीरं स्वरूपं नवीनं कलत्रं*
*धनं मेरुतुल्यं यशश्चारु चित्रम् |*
*हरेरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं*
*तत: किं तत: किं तत: किं तत: किम् ||*
*भावार्थ -*
*✋शरीर चाहे कितना भी सुन्दर हो ,धन चाहे कितना भी सुमेरु पर्वत की भांति असीम हो और सारे संसार में चाहे कितना भी नाम रोशन हो चुका हो लेकिन जब तक जिन्दगी देने वाले श्रीहरि के चरण कमलों में मन नहीं लगा , तब तक क्या हासिल किया ! क्या पाया ! अर्थात् सब बेकार है ...!!!*
*🙏🏻 राधे राधे जी 🙏🏻*
*धनं मेरुतुल्यं यशश्चारु चित्रम् |*
*हरेरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं*
*तत: किं तत: किं तत: किं तत: किम् ||*
*भावार्थ -*
*✋शरीर चाहे कितना भी सुन्दर हो ,धन चाहे कितना भी सुमेरु पर्वत की भांति असीम हो और सारे संसार में चाहे कितना भी नाम रोशन हो चुका हो लेकिन जब तक जिन्दगी देने वाले श्रीहरि के चरण कमलों में मन नहीं लगा , तब तक क्या हासिल किया ! क्या पाया ! अर्थात् सब बेकार है ...!!!*
*🙏🏻 राधे राधे जी 🙏🏻*
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