श्रीशिवपुराण ( पोस्ट - 11)
विद्येश्वरसंहिता
अध्याय ४
सुतजी कहते है - मुनिश्वरो ! इस साधन का महात्मय बताने के प्रसंग मे मै आप लोगों के लिये एक प्राचीन वृतान्त का वर्णन करूँगा , उसे ध्यान देकर आप सुने ।
पहले कि बात है , पराशर मूनि के पुत्र मेरे गुरु व्यासदेवजी सरस्वती नदि के सुन्दर तट पर तपस्या कर रहे थें । एक दिन सूर्यतुल्य तेजस्वी विमान से यात्रा करते हुये भगवान सनत्कुमार अक्समात् वहाँ आ पहुंचे । उन्होंने मेरे गुरु को वहॉ देखा । वे ध्यान मे मग्न थे। उससे जगने पर उन्होने ब्रह्मपुत्र सनत्कुमारजी को अपने सामने उपस्थित देखा । देख कर वे बडे वेग से उठे और उनके चरणो मे प्रणाम करके मुनि ने अर्ध्य दिया और देवताओ के बैठने योग्य आसन भी अर्पित किया । तब प्रसन्न हुए भगवान सनत्कुमार विनितभाव से खडे हुए व्यास जी से गंभीर वाणी मे बोले -
" मुने ! तुम सत्य वस्तु का चिंतन करो । वह सत्य पदार्थ भगवान शिव हि है, जो तुम्हारे साझात्कार के बिषय होंगे । भगवान शंकर का श्रवण , किर्तन , मनन - ये तीन महतर साधन कहे गये है । ये तीनो ही वेद सम्मत है । पुर्वकाल मे मै दुसरे दुसरे साधनो के भ्रम मे पड़कर घुमता - घामता मंदराचल पर जा पहुँचा और वहॉ तपस्या करने लगा । तदनन्तर महेश्वर शिव कि आज्ञा से भगवान नन्दिकेशवर वहॉ आये । उनकी मुझ पर बडी दया थी । वे सबके साक्षी तथा शिवगणो के स्वामी भगवान नन्दिकेशवर मुझे स्नेह पुर्वक मुक्ति का उतम साधन बताते हुए बोले - भगवान शंकर का श्रवण, किर्तन और मनन - ये तीनो ये तीनो साधन वेद सम्मत है और मुक्ति का साक्षात कारण है ; यह बात स्यंम भगवान शिव ने मुझसे कही है । अतः ब्राह्रण ! तुम श्रवणादि तीनों साधनो का हि अनुष्ठान करो । व्यास जी से बारंबार ऐसा कहकर अनुगामियों सहित ब्रम्ह पुत्र सनत्कुमार परम सुन्दर ब्रह्राधाम को चले गये । इस प्रकार पुर्वकाल के इस उतम वृतान्त का मैने संक्षेप मे वर्णन किया है ।
ऋषि बोले - सुतजी ! श्रवणादि तीन साधनो को आपने मुक्ति का उपाय बताया है । किन्तु जो श्रवणादि तीन साधनो मे असमर्थ हो , वह मनुष्य किस उपाय का अवलम्बन करके मुक्त हो सकता है । किस साधनभुत कर्म के द्वारा बिना यत्न के हि मोक्ष मिल सकता है ।
*हर हर महादेव*
ॐ नमः शिवा
विद्येश्वरसंहिता
अध्याय ४
सुतजी कहते है - मुनिश्वरो ! इस साधन का महात्मय बताने के प्रसंग मे मै आप लोगों के लिये एक प्राचीन वृतान्त का वर्णन करूँगा , उसे ध्यान देकर आप सुने ।
पहले कि बात है , पराशर मूनि के पुत्र मेरे गुरु व्यासदेवजी सरस्वती नदि के सुन्दर तट पर तपस्या कर रहे थें । एक दिन सूर्यतुल्य तेजस्वी विमान से यात्रा करते हुये भगवान सनत्कुमार अक्समात् वहाँ आ पहुंचे । उन्होंने मेरे गुरु को वहॉ देखा । वे ध्यान मे मग्न थे। उससे जगने पर उन्होने ब्रह्मपुत्र सनत्कुमारजी को अपने सामने उपस्थित देखा । देख कर वे बडे वेग से उठे और उनके चरणो मे प्रणाम करके मुनि ने अर्ध्य दिया और देवताओ के बैठने योग्य आसन भी अर्पित किया । तब प्रसन्न हुए भगवान सनत्कुमार विनितभाव से खडे हुए व्यास जी से गंभीर वाणी मे बोले -
" मुने ! तुम सत्य वस्तु का चिंतन करो । वह सत्य पदार्थ भगवान शिव हि है, जो तुम्हारे साझात्कार के बिषय होंगे । भगवान शंकर का श्रवण , किर्तन , मनन - ये तीन महतर साधन कहे गये है । ये तीनो ही वेद सम्मत है । पुर्वकाल मे मै दुसरे दुसरे साधनो के भ्रम मे पड़कर घुमता - घामता मंदराचल पर जा पहुँचा और वहॉ तपस्या करने लगा । तदनन्तर महेश्वर शिव कि आज्ञा से भगवान नन्दिकेशवर वहॉ आये । उनकी मुझ पर बडी दया थी । वे सबके साक्षी तथा शिवगणो के स्वामी भगवान नन्दिकेशवर मुझे स्नेह पुर्वक मुक्ति का उतम साधन बताते हुए बोले - भगवान शंकर का श्रवण, किर्तन और मनन - ये तीनो ये तीनो साधन वेद सम्मत है और मुक्ति का साक्षात कारण है ; यह बात स्यंम भगवान शिव ने मुझसे कही है । अतः ब्राह्रण ! तुम श्रवणादि तीनों साधनो का हि अनुष्ठान करो । व्यास जी से बारंबार ऐसा कहकर अनुगामियों सहित ब्रम्ह पुत्र सनत्कुमार परम सुन्दर ब्रह्राधाम को चले गये । इस प्रकार पुर्वकाल के इस उतम वृतान्त का मैने संक्षेप मे वर्णन किया है ।
ऋषि बोले - सुतजी ! श्रवणादि तीन साधनो को आपने मुक्ति का उपाय बताया है । किन्तु जो श्रवणादि तीन साधनो मे असमर्थ हो , वह मनुष्य किस उपाय का अवलम्बन करके मुक्त हो सकता है । किस साधनभुत कर्म के द्वारा बिना यत्न के हि मोक्ष मिल सकता है ।
*हर हर महादेव*
ॐ नमः शिवा
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