1-- सभी शास्त्रों में चातुर्मास का उल्लेख है।
2-- चातुर्मास में वर्ष के चार महीने आते हैं
सावन, भादों, क्वार, कार्तिक।
(श्रावण, भाद्र,अश्विन, कार्तिक-मास)
3--वेद शास्त्रों, धर्म शास्त्रों, पुराणों, आधुनिक स्मृति के लेखो, परमार्थ- स्मृति श्री हरि भक्ति विलास तथा रघुनंदन ठाकुर के कृत्य- तत्व में चातुर्मास व्रत की बात देखने को मिलती है।
4---एक दण्डी तथा त्रिदंडी सभी के लिए ही चातुर्मास व्रत करणीय है अर्थात एक दंडी - ज्ञानीगण तथा त्रिदंडी भक्त गण दोनों ही चातुर्मास व्रत का पालन करते हैं।
श्री शंकर मठ के अनुयायियों में भी चातुर्मास व्रत की व्यवस्था है।
5-- श्री गौर सुंदर के द्वारा चातुर्मास व्रत पालन- श्री भगवान गौर सुंदर ने भी चातुर्मास आने पर कावेरी के तट पर श्रीरंग मंदिर में 4 महीने तक निवास किया।
6-- श्री गौड़ीय भक्त चार महीनों के लिए श्री नीलाचल( पुरी) में श्री गौरांग महाप्रभु के श्री चरणों में प्रत्येक वर्ष जाया करते थे।
7--चातुर्मास में भोग - परित्याग की विधि कर्मी, ज्ञानी तथा भक्त तीनों प्रकार के समाज में ही समान रूप से करणीय है।
8--चारों आश्रमों में से तीन आश्रमों में अर्थात ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी, सन्यासी तो सदैव भोग त्याग करते हैं।
9--गृहस्थ भी वर्ष के चार महीनों तक भोग त्याग विधि का पालन करने के लिए शास्त्रों द्वारा आदेशित हैं।
10--असमर्थ के लिए --जो 4 महीनों तक नियम सेवा पालन करने में असमर्थ है उनके लिए कार्तिक मास में विशेष रुप से नियम सेवा पालन करने की विधि है। यह असमर्थ लोगों के लिए वैकल्पिक ( alternate) व्यवस्था मात्र है।
इसे देखकर कोई यह न समझे की बाकी के 3 महीने भक्तों के लिए चातुर्मास नियम की आवश्यकता नहीं है।
11-- चार महीनों तक नियम के अधीन रहकर हरि सेवा करने से स्वाभाविक रुप से मन में हरि सेवा की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।
12-- श्री भगवान वर्षा के चारों महीने शयन करते हैं। इस शयन काल में कृष्ण सेवा प्रवृत्ति में वृद्धि के लिए चातुर्मास व्रत का पालन करना चाहिए। यह नित्य व्रत है। व्रत न करने पर प्रत्यवाय ( नुकसान) होता है।
13-- व्रत में ग्रहणीय विधि में--- भगवान का नियम पूर्वक सेवा तथा जप /संकीर्तन आदि है।
14--चातुर्मास व्रत की वर्जनीय विचार में लिखा गया है कि ---चातुर्मास के प्रथम मास
🌸सावन में साग
🌸भाद्र में दही
🌸आश्विन में दूध
🌸कार्तिक में आमिष
सेवनिय नहीं है।
15--- समर्थवान के लिए व्रत पालन की विधि ----
एक समय प्रसाद ग्रहण करेंगे
प्रतिदिन स्नान करेंगे
हरिनिष्ठ होंगे तथा चारों मास हरि का अर्चन (पूजा) करेंगे।
भूमि पर शयन करेंगे।
व्रती - व्यक्ति योग का अभ्यास करेंगे। सभी योगों में भक्ति योग ही प्रशस्त है क्योंकि वही आत्मा की नित्य वृत्ति है।
राजयोग य ज्ञान योग मन की अनित्य वित्ति है।
कर्मयोग या हठयोग शरीर और कुछ हद तक मानसिक वृत्तिमय अर्थात अनित्य है।
अतः समस्त गृहस्थो को चातुर्मास के नियमो का पालन करते हुए श्री कृष्ण की भक्ति भाव से सेवा, पूजा, जप,भजन, कीर्तन करना ही चाहिए।
🌹यह अनिवार्य है🌹
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे
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