Saturday, August 4, 2018

शिव पुराण अध्याय --6

शिव पुराण अध्याय --6

शिवपुराण के श्रवण की विधी तथा श्रोताओ के पालन करने योग्य नियमो का वर्णन

शौनक जी कहते है - महाप्राज्ञ ! व्यासशिष्य सुतजी ।  आपको नमस्कार है । आप धन्य है , शिव भक्तो मे श्रेष्ठ है । आपके महान गुण वर्णन करने योग्य है । अब आप कल्याणमय शिवपुराण कि श्रवण कि विधि बताइये , जिससे सभी श्रोताओ को उतम फल की प्राप्ती हो सके ।
      अब सुतजी कहते है - मुने शौनक ! अब मै तुम्हे संपुर्ण फल कि प्राप्ती के लिये शिवपुराण के श्रवन कि विधि बता रहा हु । पहले किसी ज्योतिषी को बुलाकर के दान मान से संतुष्ट कर के अपने सहयोगी लोगो के साथ बैठकर बिना किसी विघ्न-बाधा के कथा की समाप्ति होने के उद्देश्य से शुद्ध मुहुर्त का अनुसंधान कराये और प्रयत्न पुर्वक देश देश मे स्थान स्थान पर यह संदेश भेजे की , " हमारे यहा शिवपुराण कि कथा होने वाली है । " अपने कल्याण कि इच्छा रखने वाले लोगो को कथा सुनने के लिये अवश्य पधारना चाहिये । कुछ लोग भगवान श्री हरि कि कथा से बहुत दुर पड गये है । कितने हि स्त्री , शुद्र आदि भगवान शंकर के कथा किर्तन से वंचित रहते है । उन सबको भी सुचना हो जाये , ऐसा प्रबंध करबा चाहिये । देश देश मे जो भगवान शिव के भक्त हो तथा शिव कथा के लिये किर्तन और श्रवण के लिये उत्सुक हो , उन सब को आदर पुर्वक बुलवाना चाहिये और आये हुए लोगो का सब प्रकार से आदर सत्कार करना चाहिये । शिवमंदिर में , तीर्थ में , वनप्रान्त मे अथवा घर में शिवपुराण कि कथा सुनने के लिये उतम स्थान का निर्मान करना चाहिये । केले के खम्भो से सुशोभीत एक ऊचा कथामंडप तैयार कराये ।  उसे सब ओर फल फुल आदि से  तथा सुन्द्र चंदोवे से अलंक्रित करे और चारो ओर ध्वजा पताका लगाकर तरह तरह के सामानो से सजाकर सुन्दर शोभासम्पन्न बना दे । भगवान शिव के प्रति सब प्रकार से उतम भक्ति करनी चाहिये । वही सब तरह से आन्नद का विधान करने वाली है । परमात्मा भगवान शंकर के लिये दिव्य आसन जा निर्माण करना चाहिये तथा कथावाचक के लिये भी एक ऐसा दिव्य आसन बनाना चाहिये , जो उनके लिये सुखद हो सके । मुने ! नियमपुर्वक कथा सुनने वाले श्रोताओ के लिये भी यथायोग्य सुन्दर स्थानो कि व्यवस्था करनी चाहिये । अन्य लोगो के लिये साधारण स्थान हि रखना चाहिये । जिसके मुख से निकली हुई वाणी देहधारियो के  लिये कामधेनु के समान अभिष्ट फल देने वाली होती है , उस पुराणवेता विद्वान  वक्ता के प्रति तुच्छ बुद्धि कभी नही करनी चाहिये । संसार मे जन्म तथा गुणो के कारण बहुत से गुरु होते है । पर उन सब मे पुराणो के ज्ञाता विद्वान ही परम गुरु माना गया है । पुराणवेता पवित्र , दक्ष, शांत इष्या पर विजय पाने वाला , साधु और दयालु होने चाहिये । ऐसा प्रवचनकुशल विद्वान इस पुन्यमयी कथा को कहे । सुर्योदय से आरंभ करके साढे तीन पहर तक उतम बुद्धिवाले विद्वान पुरुष को शिवपुराण कि कथा उतम रिति से बॉचनी चाहिये । मध्यानकाल में दो घडी तक कथा बंद रखनी चाहिये , जिससे कथा किर्तन से अवकास पाकर लोग मल - मुत्र का त्याग कर सके ।        कथा प्रारम्भ के दिन से एक दिन पहले व्रत ग्रहण करने के लिए वक्ता को क्षौर करा लेना चाहिए | जिन दिनों कथा हो रही हो , उन दिनों प्रयत्नपूर्वक प्रातः काल का सारा नित्यकर्म कम समय मे हि कर लेना चाहिये । वक्ता के पास उसकी सहायता के लिये एक दुसरा वैसा हि विद्वान स्थापित करना चाहिये । वह भी सब प्रकार के संशयो को निव्रित करने मे समर्थ और लोगो को समझाने मे कुशल हो । कथा मे आने वाले विघ्नो कि दुर करने के लिये गणेश जी का पुजन करे । कथा के स्वामी भगवान शिवकी तथा विशेषतः शिवपुराण की पुस्तक कि भक्ती भाव से पुजा करे । तत्पश्चात उतम बुद्धि वाला श्रोता तन मन से शुद्ध एवं प्रसन्नचित हो आदरपुर्वक शिवपुराण कि कथा को सुने । जो वक्ता और श्रोता अनेक प्रकार के कर्मो मे भटक रहे हो , काम आदि छः विकारो से युक्त हो , स्त्री मे आसक्ति रखते हो और पाखंड पुर्ण बाते कहते हो , वे पुण्य के भागी नहीं होते । जो लौकिक चिंता तथा धन , घर एवं पुत्र आदि कि चिंता को छोरकर कथा मे मन लगाये रहते है , उन शुद्ध बुद्धि पुरुषो को उतम फल कि प्राप्ती होती है । जो श्रोता श्रद्धा और भक्ती से युक्त होते है , दुसरे कर्मो मे मन नहीं लगाते और मौन ,पवित्र एवं उद्वेगशुन्य होते है , वे हि पुण्य के भागी होते है ।

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