Thursday, August 2, 2018

पुराणों में वर्णन मिलता है कि एक बार माता पार्वती द्वारा भगवान शिव से पूछा गया, "आप तो अजर-अमर हैं

पुराणों में वर्णन मिलता है कि एक बार माता पार्वती द्वारा भगवान शिव से पूछा गया, "आप तो अजर-अमर हैं किन्तु मुझे प्रत्येक जन्म के पश्चात नए स्वरूप में आकर पुनः कई वर्षों की कठोर तपस्या के पश्चात आपको प्राप्त करना पड़ता है. मेरी इस प्रकार कठोर परीक्षा क्यों? और आपके कंठ में सुशोभित इस नरमुण्ड माला और आपके अमर होने का आखिर रहस्य क्या है?

भगवान शंकर जी मुस्कुराए तथा माता पार्वती से एकांत एवं गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनने को कहा जिससे कोई अन्य जीव अमर कथा सुन न पाए. क्योंकि जो भी जीव इस अमर कथा को सुन लेता है, उसकी मृत्यु नहीं होती, वो अमर हो जाता.

पुराणों के अनुसार, शिवजी ने माता पार्वती को अमरनाथ की इसी परम पावन गुफा में अपनी साधना की अमर कथा सुनाई थी.

कहा जाता है अमरनाथ गुफा पहुँचने से पूर्व भगवान भोलेनाथ ने सबसे पहले अपनी सवारी नंदी को पहलगाम पर ही छोड़ दिया, चन्द्रमा को जटाओं से उतारकर चंदनवाड़ी में अलग कर दिया तथा गंगाजी को पंचतरणी में एवं अपने कंठ के आभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया.

इसीलिए इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा. इसके पश्चात अगला पड़ाव गणेश पड़ता है, यहाँ पर बाबा ने अपने पुत्र गणेश जी को भी छोड़ दिया था, इस स्थान को महागुणा का पर्वत भी कहा जाता है. पिस्सू घाटी पहुचने पर पिस्सू नामक कीड़े को भी त्याग दिया.

ऐसे करते हुए महादेव द्वारा जीवनदायिनी पांचों तत्वों को भी अपने से अलग कर दिया गया. इसके पश्चात मां पार्वती के साथ उन्होंने गुप्त गुफा में प्रवेश कर लिया तथा अमर कथा मां पार्वती को सुनाना प्रारंभ किया.

कथा सुनते-सुनते देवी माता पार्वती को निद्रा आ गई तथा वो सो गईं, जिसका शिवजी को आभास तक नहीं हुआ. भगवन शिव जी अमर होने की कथा माता को सुनाते रहे. उस वक़्त जब शिव जी ये कथा सूना रहे थे दो सफेद कबूतर भी ये कथा सुन रहे थे तथा बीच-बीच में गूं-गूं की आवाजें निकाल रहे थे. शिव जी को लगा कि माता पार्वती कथा श्रवण कर रही हैं तथा बीच-बीच में हुंकार भर रहीं हैं. इस प्रकार दोनों कबूतरों के द्वारा अमर होने की पूरी कथा सुन ली गई.

कथा के समाप्त होने के पश्चात शिव जी का ध्यान माता पार्वती की तरफ गया, जो सो चुकी थीं. जब महादेव की दृष्टि उन 2 कबूतरों पर पड़ी, तब वे अत्यंत क्रोधित हो उठे तथा उन्हें मारने के लिए आगे बढ़े.

तब उन कबूतरों ने भगवान शिव जी से कहा कि, "हे प्रभु हमारे द्वारा आपके मुख से अमर होने की कथा सुनी ली गई है यदि आप हमें मार दिया तो अमर होने की ये कथा असत्य हो जाएगी." इस बात पर शिव जी ने उन दोनों कबूतरों को जीवित छोड़ दिया तथा उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव तथा पार्वती के प्रतीक चिन्ह स्वरुप निवास करोगे.
इस प्रकार ये दोनों कबूतर अजर-अमर हो गए. ऐसा कहा जाता है कि आज भी इन दोनों कबूतरों के दर्शन भक्तों को यहां पर प्राप्त हो जाते हैं. इस प्रकार यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई एवं इसका नाम अमरनाथ गुफा के नाम से जग प्रसिद्ध हो गया
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