*मौत के मुँह में पड़े हुए मनुष्य का भोगों की तृष्णा रखना वैसा ही है जैसा कालसर्प के मुँह में पड़े हुए मेंढक का मच्छरों की ओर झपटना। पता नहीं कब मौत आ जाये। इसलिए भोगों से मन हटाकर दिन-रात भगवान् में मन लगाना चाहिए। जब तक स्वास्थ्य अच्छा है तभी तक भजन में आसानी से मन लगाया जा सकता है। अस्वस्थ होने पर बिना अभ्यास के भगवान् का स्मरण होना भी कठिन हो जायेगा। इसी से भक्त प्रार्थना करता है-*
*'श्रीकृष्ण ! मेरा यह मनरूपी राजहंस तुम्हारे चरणकमल रुपी पिंजरे में आज ही प्रवेश कर जाये।* *प्राण निकलते समय जब कफ-वात-पित्त से कंठ रुक जायेगा, इन्द्रियां अशक्त हो जाएँगी तब स्मरण तो दूर रहा, तुम्हारा नामोच्चारण भी नहीं हो सकेगा।* *अतएव अभी से मन को भगवान् में लगाना और जीभ से उनके नाम का जप आरम्भ कर देना चाहिए।*
*धन-ऐश्वर्य, कुटुम्ब-परिवार सभी क्षणभंगुर हैं। इनकी प्राप्ति में सुख तो है ही नहीं वरं दुःख ही बढ़ता हैं।*
*जय श्री कृष्णा*🙏🙏
*आज का दिन शुभ मंगलमय हो।*
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