दिल्ली सल्तनत : गुलाम वंश का शासन
कुतब-उद-दीन ऐबक, मुहम्मद गौरी के सिपाहसालार के साथ उसका ग़ुलाम भी था | कुतब -उद-दीन ऐबक का जन्म मध्य एशिया के तुर्की परिवार में हुआ था और उसे बचपन में ही ग़ुलाम के तौर पर बेच दिया गया था | सुल्तान मुहम्मद गौरी के राजपाल होने के कारण कुतब-उद-दीन ने बनारस को 1194 A D में बर्खास्त कर दिया | इसने अजमेर के राजा को भी हराया | इसने ग्वालियर पर विजय प्राप्त करने के बाद राजा सोलंखोल से ज़बरदस्ती शुल्क अदा करवाया | इसके अलावा, इसने गुजरात के राज्यों पर भी विजय हासिल की |
इल्तुत्मिश, कुतब-उद-दीन ऐबक ( 1206-11) का उत्तराधिकारी बना जिसके बाद रज़िया (1236-40) और बलबन (1265-85) ने राजभार संभाला | कुतब-उद-दीन ऐबक ने क़ुतुब मीनार की नींव रखी परंतु इल्तुत्मिश ने इसे पूरा कराया था | चौगान खेलने के दौरान अपने घोड़े से गिरने के कारण कुतब-उद-दीन की मृत्यु हो गई |
1206 A D में मुहम्मद गौरी की हत्या के बाद, कुतब-उद-दीन ऐबक भारत का सुल्तान बन गया और ममेलुक वंश या दास वंश परंपरा की नींव रखी |1206 A D में इसे मुहम्मद गौरी के द्वारा नैब-उस-सल्तनत ( गौरी के भारतीय साम्राज्य के राजपाल ) के तौर पर नियुक्त कर दिया |
कुतब-उद-दीन ऐबक से जुड़े कुछ मुख्य तथ्य निम्न हैं:
यह इल्लाबरी जाति का तुर्क था | वह ऐबक का दामाद था और ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली का अगला सुल्तान बना | उसके नाम से दिल्ली के निकट महरौली में हौज़-इ-शमशि नामक इमारत है | इसने क़ुतुब मीनार का कार्य पूरा कराया जिसे इसके पूर्वजों ने आरंभ किया था |
इल्तुत्मिश ने दिल्ली सल्तनत में इक्ता प्रणाली की भी शुरुआत की जिसमे खेती पर कर की प्रथा थी | इक्ता प्रणाली के अंतर्गत, एक अधिकारी को राज्य से तनख्वा के बदले में राजस्व कर का अनुदान दिया जाता था |हालांकि, इक्ता प्रणाली वंशानुगत नहीं थी | इक्ता प्रणाली ने सल्तनत के दूर के भागों को केंद्र सरकार से जोड़ दिया था |
चांदी टांका और ताँबा जीटल की शुरुआत का श्रेय भी इल्तुत्मिश को जाता है | चाँदी टांके का वज़न 175 इकाई था |
इल्तुत्मिश के शासन के दौरान चेंगेज़ खान के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया | परंतु उन्होने जल्द ही भारत को छोड़ दिया और मुल्तान, सिंध और क़बचा की तरफ चले गए |
इल्तुत्मिश के देहांत के बाद रज़िया दिल्ली सल्तनत की सुल्तान बन गई | परंतु यह इसके लिए आसान नहीं था | सुल्तान बनने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि इल्तुत्मिश ने अपने सभी पुत्रों को अवगुणता पाई और रज़िया राजगद्दी को संभालने के लिए प्रत्येक रूप से उपयुक्त थी | इसलिए, इल्तुत्मिश ने रज़िया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया | परंतु छिहल्गनी या मुख्य चालीस तुर्कियों ने इल्तुत्मिश की अंतिम इच्छा का विरोध किया और उसके पुत्र रुक्नउद दीन फिरूज़ को राजगद्दी पर बैठा दिया |
रुक्न उद दीन फिरूज़ अयोग्य था और अपने ही इंद्रिय आनंदों में ज्यादा व्यस्त हो गया तथा राज्य के मसले अव्यवस्थित हो गए | 7 महीनो के अंदर ही रुक्न उद दीन फिरूज़ की हत्या कर दी गई | 1236 A D में रज़िया ने रुक्न उद दीन के बाद पदभार संभाला | रज़िया ने 1240 तक साड़े तीन साल तक शासन किया | यद्यपि, एक अच्छे शासक के सभी गुण रज़िया में मौजूद दे परंतु छिहल्गनी ( 40 तुर्की अधिकारियों का दल ) ने कभी भी औरत के शासन को स्वीकार नहीं किया |उन्होने रज़िया के खिलाफ विद्रोह किया जब उसने अपने पसंदीदा याक़ूत को अस्तबलों का संचालक नियुक्त कर दिया | याक़ूत अबिसीनियल था जिसने तुर्क-अफ़गान वंशों में ईर्ष्या जगाई |
विद्रोही मुखियों को भटिंडा के राजपाल, मलिक अल्तुनीय का साथ मिला | जल्दी ही दो विद्रोही दलों के बीच में युद्ध हुआ जिसमे याक़ूत मारा गया और रज़िया को बंदी बना लिया गया |
रज़िया ने अल्तुनीय से विवाह किया और दोनों ने मिलकर दिल्ली सल्तनत को वापिस पाना चाहा जिस पर रज़िया के भाई मुईज़ुद्दीन बहराम शाह ने कब्जा कर रखा था | हालांकि, रज़िया और उसका शौहर हार गए और उन्हे वहाँ से भागने के लिए मजबूर कर दिया गया | कैथल की तरफ भागने के दौरान जाटों ने इन्हे पकड़ लिया और इनकी हत्या कर दी |
मुईज़ुद्दीन बहराम ने दो साल के लिए शासन किया जो कि हत्याओं और धोखेबाज़ी से भरा था | बाद में उसकी सेना ने ही उसकी हत्या कर दी | परिणाम स्वरूप इस काल ने दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर कुछ कठपुतली राजाओं को बैठे देखा |
नसीर-उद-दीन महमूद , इल्तुत्मिश के सबसे छोटे पुत्र ने 1246 से 1266 तक शासन किया, जिसे तुर्क अधिकारी बलबन ने काम मे सहायता की | बाद में बलबन नसीर-उद-दीन महमूद का उत्तराधिकारी बना |
इल्तुत्मिश, कुतब-उद-दीन ऐबक ( 1206-11) का उत्तराधिकारी बना जिसके बाद रज़िया (1236-40) और बलबन (1265-85) ने राजभार संभाला | कुतब-उद-दीन ऐबक ने क़ुतुब मीनार की नींव रखी परंतु इल्तुत्मिश ने इसे पूरा कराया था | चौगान खेलने के दौरान अपने घोड़े से गिरने के कारण कुतब-उद-दीन की मृत्यु हो गई |
1206 A D में मुहम्मद गौरी की हत्या के बाद, कुतब-उद-दीन ऐबक भारत का सुल्तान बन गया और ममेलुक वंश या दास वंश परंपरा की नींव रखी |1206 A D में इसे मुहम्मद गौरी के द्वारा नैब-उस-सल्तनत ( गौरी के भारतीय साम्राज्य के राजपाल ) के तौर पर नियुक्त कर दिया |
कुतब-उद-दीन ऐबक से जुड़े कुछ मुख्य तथ्य निम्न हैं:
- इसने सिर्फ 4 साल के किए शासन किया | चौघन खेलने के दौरान 2010 में इसकी मृत्यु हो गई |
- कुतब-उद-दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था |
- वह अय्बक जाति का तुर्क था |
- दयालु होने के कारण इसे सुल्तान “लाख बक्ष” भी कहा गया |
- कुतब-उद-दीन ऐबक को कुतुब मीनार की नींव रखने का श्रेय जाता है जिसका नाम सूफी संत ख्वाजा कुतब –उद-दीन बख्तियार काकी के ऊपर रखा गया था |
- इसने क़ुतुब अल इस्लाम मस्जिद का भी कार्यभार संभाला |
- इसके दामाद इल्तुत्मिश ने इसकी मृत्यु के बाद कार्यभार संभाला |
- कुतब-उद-दीन ऐबक का किला पाकिस्तान के लाहौर में है |
यह इल्लाबरी जाति का तुर्क था | वह ऐबक का दामाद था और ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली का अगला सुल्तान बना | उसके नाम से दिल्ली के निकट महरौली में हौज़-इ-शमशि नामक इमारत है | इसने क़ुतुब मीनार का कार्य पूरा कराया जिसे इसके पूर्वजों ने आरंभ किया था |
इल्तुत्मिश ने दिल्ली सल्तनत में इक्ता प्रणाली की भी शुरुआत की जिसमे खेती पर कर की प्रथा थी | इक्ता प्रणाली के अंतर्गत, एक अधिकारी को राज्य से तनख्वा के बदले में राजस्व कर का अनुदान दिया जाता था |हालांकि, इक्ता प्रणाली वंशानुगत नहीं थी | इक्ता प्रणाली ने सल्तनत के दूर के भागों को केंद्र सरकार से जोड़ दिया था |
चांदी टांका और ताँबा जीटल की शुरुआत का श्रेय भी इल्तुत्मिश को जाता है | चाँदी टांके का वज़न 175 इकाई था |
इल्तुत्मिश के शासन के दौरान चेंगेज़ खान के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया | परंतु उन्होने जल्द ही भारत को छोड़ दिया और मुल्तान, सिंध और क़बचा की तरफ चले गए |
इल्तुत्मिश के देहांत के बाद रज़िया दिल्ली सल्तनत की सुल्तान बन गई | परंतु यह इसके लिए आसान नहीं था | सुल्तान बनने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि इल्तुत्मिश ने अपने सभी पुत्रों को अवगुणता पाई और रज़िया राजगद्दी को संभालने के लिए प्रत्येक रूप से उपयुक्त थी | इसलिए, इल्तुत्मिश ने रज़िया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया | परंतु छिहल्गनी या मुख्य चालीस तुर्कियों ने इल्तुत्मिश की अंतिम इच्छा का विरोध किया और उसके पुत्र रुक्नउद दीन फिरूज़ को राजगद्दी पर बैठा दिया |
रुक्न उद दीन फिरूज़ अयोग्य था और अपने ही इंद्रिय आनंदों में ज्यादा व्यस्त हो गया तथा राज्य के मसले अव्यवस्थित हो गए | 7 महीनो के अंदर ही रुक्न उद दीन फिरूज़ की हत्या कर दी गई | 1236 A D में रज़िया ने रुक्न उद दीन के बाद पदभार संभाला | रज़िया ने 1240 तक साड़े तीन साल तक शासन किया | यद्यपि, एक अच्छे शासक के सभी गुण रज़िया में मौजूद दे परंतु छिहल्गनी ( 40 तुर्की अधिकारियों का दल ) ने कभी भी औरत के शासन को स्वीकार नहीं किया |उन्होने रज़िया के खिलाफ विद्रोह किया जब उसने अपने पसंदीदा याक़ूत को अस्तबलों का संचालक नियुक्त कर दिया | याक़ूत अबिसीनियल था जिसने तुर्क-अफ़गान वंशों में ईर्ष्या जगाई |
विद्रोही मुखियों को भटिंडा के राजपाल, मलिक अल्तुनीय का साथ मिला | जल्दी ही दो विद्रोही दलों के बीच में युद्ध हुआ जिसमे याक़ूत मारा गया और रज़िया को बंदी बना लिया गया |
रज़िया ने अल्तुनीय से विवाह किया और दोनों ने मिलकर दिल्ली सल्तनत को वापिस पाना चाहा जिस पर रज़िया के भाई मुईज़ुद्दीन बहराम शाह ने कब्जा कर रखा था | हालांकि, रज़िया और उसका शौहर हार गए और उन्हे वहाँ से भागने के लिए मजबूर कर दिया गया | कैथल की तरफ भागने के दौरान जाटों ने इन्हे पकड़ लिया और इनकी हत्या कर दी |
मुईज़ुद्दीन बहराम ने दो साल के लिए शासन किया जो कि हत्याओं और धोखेबाज़ी से भरा था | बाद में उसकी सेना ने ही उसकी हत्या कर दी | परिणाम स्वरूप इस काल ने दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर कुछ कठपुतली राजाओं को बैठे देखा |
नसीर-उद-दीन महमूद , इल्तुत्मिश के सबसे छोटे पुत्र ने 1246 से 1266 तक शासन किया, जिसे तुर्क अधिकारी बलबन ने काम मे सहायता की | बाद में बलबन नसीर-उद-दीन महमूद का उत्तराधिकारी बना |
No comments:
Post a Comment