Friday, August 3, 2018

चंचुला की प्रार्थना से ब्राह्मण का उसे पूरा शिव पुराण सुनना और समयानुसार शरीर छोरकर शिव लोक में जा चंचुला का पार्वती जी की सखी एवं सुखी होना |


चंचुला की प्रार्थना से ब्राह्मण का उसे पूरा शिव पुराण सुनना और समयानुसार शरीर छोरकर शिव लोक में जा चंचुला का पार्वती जी की सखी एवं सुखी होना |

 ब्राह्मण बोले - नारी ! सौभाग्य की बात है की भगवान शिव की कृपा से शिवपुराण की इस वैराग्य युक्त कथा को सुनकर तुम्हे समय पर चेत हो गया है | ब्राह्मणपत्नी ! तुम डरो मत | भगवान शिव की शरण में जाओ | शिव की कृपा से सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाता है | मैं तुमसे भगवान शिव की कीर्तिकथा से युक्त उस परम वास्तु का वर्णन करूँगा , जिससे तुम्हे सदा सुख देने वाली उत्तम गति प्राप्त होगी | शिव की उत्तम कथा सुनने से ही तुम्हारी बुद्धि पश्चाताप से युक्त एवं शुद्ध हो गयी है | साथ ही तुम्हारे मन में विषयो के प्रति वैराग्य हो गया है | पश्चाताप ही पाप करने वाले पापियो के लिए सबसे बड़ा प्राश्चित है | सत्पुरुषों ने सब के लिए पश्चाताप को ही सब पापो का शोधक बताया है , पश्चाताप से ही सब पापो की शुद्धि होती है | जो पश्चाताप करता है , व्ही वास्तव में पापो का प्राश्चित करता है ; क्युकी सत्पुरुषों ने समस्त पापो की शुद्धि के लिए प्राश्चित का उपदेश किया है , वह सब पश्चाताप से संपन्न हो जाता है | जो पुरुष विधि पूर्वक प्राश्चित करके निर्भय हो जाता है , पर अपने कुकर्म के लिए पश्चाताप नहीं करता , उसे प्रायः उत्तम गति प्राप्त नहीं होती है | परन्तु जिसे अपने कुकृत्य पर हार्दिक पश्चाताप होता है , वह अवश्य उत्तम गति का भागी होता है , इसमें संशय नहीं है | इस शिव पुराण की कथा सुनने  से जैसे चिट की शुद्धि होती है , वैसे दूसरे उपयो से नहीं होती | जैसे दर्पण साफ करने पर निर्मल हो जाता है , उसी प्रकार इस शिव पुराण की कथा से चित अत्यंत शुद्ध हो जाता है - इस में संशय नहीं है | मनुष्यो के शुद्ध चित में जगदम्बा पार्वती सहित भगवान शिव विराजमान रहते है | इससे वह विशुद्धात्मा पुरुष श्री साम्ब सदाशिव के पद को प्राप्त होता है | इस उत्तम कथा का श्रवण समस्त मनुष्यो के लिए कल्याण का बीज है | अतः यथोचित ( शास्त्रोक्त ) मार्ग से इसकी आराधना अथवा सेवा करनी चाहिए | यह भवबंधन रूपी रोग का नाश करने वाली है | भगवान शिव की कथा को सुनकर फिर अपने हृदय में उसका मनन एवंम निधि ध्यासन करना चाहिए | इससे पूर्णतः चित शुद्धि  हो जाती है | चित शुद्धि होने से महेश्वर की भक्ति अपने दोनों पुत्रो ( ज्ञान और वैराग्य ) के साथ निस्चय ही प्रकट होती है | तत्पश्चात महेश्वर के अनुग्रह से दिव्य मुक्ति प्राप्त होती है , इसमें संशय नहीं है | जो मुक्ति से वंचित है ; उसे पशु समझना चाहिए ; क्युकी उसका चित माया के बंधन में आसक्त है | वह निश्चय ही संसार बंधन से मुक्त नहीं हो पता |
       ब्राह्मणपत्नी ! इसलिए तुम बिषयों से मन को हटा लो और भक्ति भाव से इस भगवान शंकर की पावन कथा को सुनो | परमात्मा शंकर की इस कथा को सुनने से तुम्हारे चित की शुद्धि होगी और इससे तुम्हे मोक्ष. की प्राप्ति हो जाएगी | जो निर्मल चित से भगवान शिव के चर्णारविंदो की चिंतन करता है , उसकी एक ही जन्म में मुक्ति हो जाती है | यह मैं तुमसे सत्य कहता हु |
       
     अब सूतजी कहते है - शौनक ! इतना कहकर वो श्रेष्ठ शिव भक्त ब्राह्मण चुप हो गए , उनका हृदय करुणा से आद्र हो गया था | वे शुद्ध चित महात्मा भगवान शिव के ध्यान में मग्न हो गए | उसके बाद बिन्दुग की पत्नी चंचुला मन ही मन प्रसन्न हो उठी | ब्राह्मण का उक्त उपदेश सुनकर उसके नेत्रों में आनंद के आंसू छलक आये थे |  वह ब्राह्रण पत्नी चंचुला हर्ष भरे ह्रदय से उन श्रेष्ठ ब्राह्रण के दोनो चरणो मे गिर पडी। और हाथ जोर कर बोली - " मै कृतार्थ हो गयी " | तत्पश्चात उठकर वैराग्य युक्त उतम बुद्धिवाली स्त्री , जो अपने पापो के कारण आतंकित थी , उस महान शिवभक्त ब्राह्रण से हाथ जोरकर गदगद वाणी में बोली ।
चंचुला ने कहॉ - ब्राह्रण ! शिवभक्तो में श्रेष्ठ !  स्वामिन¡ आप धन्य है , परमार्थदर्शी है । और सदा परोपकार मे लगे रहते है । इसलिये श्रेष्ठ साधु पुरुषो में प्रशंसा के योग्य है । साधो ! मैं नरक के समुन्द्र मे गिर रही हु । आप मेरा उद्धार किजिये, उद्धार किजिये । पौराणिक अर्थतत्व से संपन्न जिस सुन्दर शिव पुराण कि कथा को सुनकर मेरे मन मे संपुर्ण बिषयो से वैराग्य उत्पन्न हो गया है । उसी  इस शिवपुराण को सुनने के लिये मेरे मन मे बडी श्रद्धा हो रही है ।
        अब सुतजी कहते है - ऐसा कहकर हाथ जोर उनका अनुग्रह पाकर चंचुला उस शिव पुराण कि कथा को सुनने कि इच्छा मन मे लिये उन ब्राह्रण देवता कि सेवा में तत्पर हो वहॉ रहने लगी । तदनन्तर शिव भक्तो मे श्रेष्ठ और शुद्ध बुद्धि वाले ब्राह्रण देवता ने उसी स्थान पर उस स्त्री को शिव पुराण कि उतम कथा सुनाई । इस प्रकार उस गोकर्ण नामक स्थान मे उन्ही श्रेष्ठ ब्राह्रण से उसने शिवपुराण कि परम उतम कथा सुनी , जो भक्ती ,ज्ञान और वैराग्य को बढाने वाली तथा मुक्ती प्रदान करने वाली है । उस परम उत्तम कथा को सुनकर ब्राह्मणपत्नी अत्यंत कृतार्थ हो गयी | उसका चित शीघ्र ही शुद्ध हो गया | फिर भगवान शिव के अनुग्रह से उसके हृदय में शिव के सगुण रूप का चिंतन होने लगा | इस प्रकार उसने भगवान शिव में लगी रहनेवाली उत्तम बुद्धि पाकर शिव के सचिदानंद स्वरूप का बारम्बार चिंतन आरम्भ किया | तत्पश्चात समय के पुरे होने पर भक्ति ,ज्ञान और वैराग्य से युक्त हुई चंचुला ने अपने शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग दिया | इतने में ही त्रिपुरशत्रु भगवान शिव का भेजा हुआ एक दिव्य विमान द्रुत गति से वहां पहुंचा , जो उनके अपने गणो से संयुक्त और भांति भांति के शोभा साधनो से सम्पन्न था | चंचुला उस विमान पर आरूढ़ और भगवन शिव के श्रेष्ठ पार्षदो ने उसे तत्काल शिवपुरी में पहुंचा दिया | उसके सारे मल धूल गए थे | वह दिव्यरूपिणी दिव्याग्ना हो गयी थी | उसके दिव्य अवयव उसकी शोभा बढ़ाते थे | मस्तक पर अर्ध चंद्राकर का मुकुट धारण किये वह गौरांगी देवी शोभाशाली दिव्य आभूषणो से बिभूषित थी | शिवपुरी में पहुंचकर उसने सनातन देवता त्रिनेत्रधारी महादेवजी को देखा | सभी मुख्य मुख्य देवता उनकी सेवा में खड़े थे | गणेश , भृंगी , नन्दीश्वर तथा वीरभद्रेश्वर आदि उनकी सेवा म उत्तम भक्ति भाव से उपस्थित थे | उनकी अंगकांति करोड़ो सूर्यो  की भांति प्रकाशित हो रही थी | कंठ में निल चिन्ह शोभा पाता था | पांच मुख और प्रतेक्य मुख में तीन -तीन नेत्र थे | मस्तक पर अर्धचन्द्राकार मुकुट शोभा देता था | उन्होंने अपने वामांग भाग में गौरी देवी को बिठा रखा था , जो विधुत - पुंज के सामान प्रकाशित थी | गौरीपति महादेवजी की कान्ति कपूर के सामान गौर थी | उनका सारा शरीर स्वेत भस्म से भासित था | शरीर पर स्वेत वस्त्र शोभा परहे थे |  इस प्रकार परम उज्जवल भगवान शंकर का दर्शन कर के वह ब्राह्मण पत्नी चंचुला बहुत प्रसन्न हुई | अत्यंत प्रितियुक्त होकर उसने बड़ी उतावली के साथ भगवान शिव को बारम्बार प्रणाम किया | फिर हाथ जोरकर वह बड़े प्रेम ,आनंद और संतोष से युक्त हो विनीत भाव से खड़ी हो गयी | उसके नेत्रों से आनन्दाश्रुओ के अविरल धारा बहने लगी तथा सम्पूर्ण शरीर में रोमांच हो गया | उस समय भगवती पार्वती और भगवान शंकर ने उसे बड़ी करुणा के साथ अपने पास बुलाया और सौम्य दृष्टि से उसकी और देखने लगे | पार्वती जी ने तो दिव्य रूप धारणी बिन्दुगप्रिया चंचुला को प्रेम पूर्वक अपनी सखी बना लिया | वह उस परमानन्दघन ज्योतिस्वरूप सनातन धाम में अविचल निवास पाकर दिव्य सौख्य से संपन्न हो अक्षय सुख. का अनुभव करने लगी |

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