Friday, August 17, 2018

भगत कबीर जी की बेटी की शादी का समय नजदीक आ रहा था। सभी नगर वासीयों में कानाफूसी चल रही थी।

भगत कबीर जी की बेटी की शादी का समय नजदीक आ रहा था।
सभी नगर  वासीयों में कानाफूसी चल रही थी।

कि देखो कबीर की बेटी की शादी है,और इनको कोई फिक्र ही नहीं।पता नहीं यह बरातियों की आवभगत कर भी पाएँगे या नहीं, ।

उधर किसी ने लड़के वालों के कानों तक यह बात पहुँचा दी कि कबीर ने न तो अभी तक शादी की कोई तैयारी की है ,और न ही दान दहेज का कोई इंतजाम किया है।

जैसे जैसे वक्त बितता गया,लोगों की सुगबुगाहट तेज हो गई।

इतने में शादी का दिन भी आ गया।पूरा गाँव विवाह स्थल की और चल पड़ा ,

कुछ तो ऐसै लोग भी थे जो सिर्फ यह देखने के लिए गये कि कबीर जी की पगड़ी उछलते देखें सकें ।

लेकिन कबीर जी सुबह पहले पहर ही घर से दूर एक टीले के पीछे जा के भजन बंदगी में बैठ गये।

मालिक से अरदास करने लगे ,

    हे परम पिता परमेश्वर आपने मुझे जिस मकसद के लिए भेजा है,मैं तो उसी में लीन हूँ, बाकि आप ही संभाले ।

खैर शाम होते होते भजन बंदगी में बैठे कबीर जी के कानों में आवाजें आनी शुरू हुईं,  धन्य है कबीर धन्य हैं कबीर,,

कबीर जी ने आँखें खोलकर देखा कि कुछ गाँव वाले वहाँ से गुजर रहे हैं ।
कबीर जी ने अपनी दोशाला से मुँह ढका और उनसे पूछा ,भाई क्या हुआ ?किसी कबीर की बात कर रहे हो ?क्या वह जुलाहा? ?

लोगों ने कहा हाँ भाई ,ऐसी शादी तो आज तक नहीं देखी।।इतना दान दहेज बहुत सारे पकवान

 
वाह भई वाह मजेदार लजीज व्यंजन, बोलते हुए वह लोग आगे बढ गये।
कबीर जी ने सोचा कि कहीं यह मेरा मजाक तो नहीं बना रहे,जल्दी जल्दी घर की तरफ भागे ।

वहाँ का नजारा देख हैरान रह गये ,पूरा घर चमचमा रहा था चारो तरफ लोग वाह वाह कर रहे थे,इतने में कबीर जी की बीवी उनके पास आकर बोलीं,सुबह से शादी की तैयारी में भाग दौड़ कर रहे हो,

अब तो कपड़े बदल लो, बेटी की डोली विधा करने का वक्त हो गया है,कबीर जी की आँखों में पानी आ गया ,और धीरे से बोले भागयवान मैं सुबह पहर से ही घर से निकल गया था।

उनकी बीवी सारा माजरा समझ चुकीं थीं कि परमेश्वर खुद ही कबीर जी का रूप बनाकर हमारे घर भाग दौड कर रहे थे।।

अब दोनों के ही आंखों में शुक्र शुक्र शुक्र के आंसू थे।।।।।।

संता के कारज ,आप खलोहा ।।।

इन्सान मायूस इसलिए होता है, क्योंकि वो रब को राजी करने के बजाए लोगों को राजी करने में लगा रहता है.... इन्सान यह भूल जाता है कि "रब राजी" तो "सब राजी।

"सिमरन" से मत कहो कि मुझे काम है, काम को कहो की मुझे "सिमरन" करना है।

"सिमरन" किया है तो शुक्र करो, और अगर "सिमरन" नही किया तो फिकर करो।

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