सावन विशेष में-
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श्रीमद्भागवत कथा की महिमा :-
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श्रीमद्भागवत कथा में कहा गया है कि ज्ञान, वैराग्य तथा भक्ति की प्राप्ति के बाद ही भगवान की प्राप्ति हो सकती है।
ज्ञान, वैराग्य तथा भक्ति की उत्पत्ति श्री भागवत कथा श्रवण के बाद ही होती है।भगवान व्यास ने अनेक वेद, पुराण कथा का विस्तार किया और महाभारत की रचना की लेकिन उन्हें आत्म
संतोष प्राप्त नहीं हुआ। उन्होंने नारद जी से अपनी व्यथा बताई। नारद जी ने उन्हें उपदेश दिया कि जब तक आप भगवान की प्रेममयी लीला का बखान नहीं करेंगे। तब तक आपको आत्म संतोष प्राप्त नहीं होगा।
नारद जी के कहने पर व्यास जी ने भागवत कथा लिखी। यही कथा उन्होंने अपने पुत्र शुक्रदेव जी को पढ़ाया और शुक्रदेव जी ने वह कथा राजा परीक्षित को सुनाई जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।
पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत के दर्शन से, श्रवण से,पूजन से पापों का नाश होता है।
पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत का पाढ़ करना चाहिए और प्रभु श्री कृष्ण और श्री हरी विष्णु के कथाओं को पढ़ना या सुनना चाहिए. भागवत कथा सुनने मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप दूर होते हैं।
इदं भागवतं नाम पुराणं ब्रह्म सम्मितम् |
भक्तिज्ञानविरागाणां स्थापनाय प्रकाशितम् ||
;(माहात्म्य 2/71
अर्थ :- यह भागवत पुराण वेदों के समान है |श्री व्यासदेव ने इसे भक्ति ,ज्ञान और वैराग्य की स्थापना के लिए प्रकाशित किया है |
कृष्णप्राप्तिकरं शश्वत् प्रेमानन्दफलप्रदम्|
श्रीमद्भागवतं शास्त्रं कलौ कीरेण भाषितम्||
अर्थ: -श्रीशुकदेवजी के मुख से कहा हुआ
यह श्रीमद् भागवत शास्त्र तो कलियुग में साक्षात् श्रीकृष्ण की प्राप्ति करने वाला और नित्य प्रेमानन्द रूप फल प्रदान करने वाला है |
धनं पुत्रांस्तथा दारान् वाहनादि यशो गृहान् |
असापत्न्यम् च राज्यं च दद्याद् भागवती कथा ||
अर्थ: श्रीमद् भागवत की कथा धन,पुत्र ,स्त्री ,वाहन ,यश , मकान
और निष्कंटक राज्य भी दे सकती है |
श्रीमद्भागवतं पुन्यमायुरारोग्यपुष्टिदम् |
पठनात् श्रवणात् वापि सर्व पापैः प्रमुच्यते ||
अर्थ :- यह पावन पुराण श्रीमद भागवत
आयु, आरोग्य , और पुष्टि को देने वाला है ।इसका पाठ अथवा श्रवण करने से सब पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है |
उत्थाय प्रणमेद् यो वै श्रीमद्भागवतं नरः |
धनं पुत्रांस्तथा दारान् भक्तिं च प्रददाम्यहम् ||
अर्थ :- जो मानव खड़ा होकर श्रीमद् भागवत को प्रणाम करता है, उसे मै धन , स्त्री ,पुत्र और अपनी भक्ति प्रदान करता हूँ |
श्लोकार्धम् श्लोकपादं वा नित्यं भागवतोदभवम्|
पठते श्रनुयाद् यस्तु गोसहस्रफलं लभेत्||
अर्थ:- जो प्रतिदिन भागवत के आधे श्लोक
या चौथाई श्लोक का पाठ अथवा श्रवण करता है , उसे एक हज़ार गोदान का फल मिलता है |✍☘💕
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श्रीमद्भागवत कथा की महिमा :-
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श्रीमद्भागवत कथा में कहा गया है कि ज्ञान, वैराग्य तथा भक्ति की प्राप्ति के बाद ही भगवान की प्राप्ति हो सकती है।
ज्ञान, वैराग्य तथा भक्ति की उत्पत्ति श्री भागवत कथा श्रवण के बाद ही होती है।भगवान व्यास ने अनेक वेद, पुराण कथा का विस्तार किया और महाभारत की रचना की लेकिन उन्हें आत्म
संतोष प्राप्त नहीं हुआ। उन्होंने नारद जी से अपनी व्यथा बताई। नारद जी ने उन्हें उपदेश दिया कि जब तक आप भगवान की प्रेममयी लीला का बखान नहीं करेंगे। तब तक आपको आत्म संतोष प्राप्त नहीं होगा।
नारद जी के कहने पर व्यास जी ने भागवत कथा लिखी। यही कथा उन्होंने अपने पुत्र शुक्रदेव जी को पढ़ाया और शुक्रदेव जी ने वह कथा राजा परीक्षित को सुनाई जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।
पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत के दर्शन से, श्रवण से,पूजन से पापों का नाश होता है।
पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत का पाढ़ करना चाहिए और प्रभु श्री कृष्ण और श्री हरी विष्णु के कथाओं को पढ़ना या सुनना चाहिए. भागवत कथा सुनने मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप दूर होते हैं।
इदं भागवतं नाम पुराणं ब्रह्म सम्मितम् |
भक्तिज्ञानविरागाणां स्थापनाय प्रकाशितम् ||
;(माहात्म्य 2/71
अर्थ :- यह भागवत पुराण वेदों के समान है |श्री व्यासदेव ने इसे भक्ति ,ज्ञान और वैराग्य की स्थापना के लिए प्रकाशित किया है |
कृष्णप्राप्तिकरं शश्वत् प्रेमानन्दफलप्रदम्|
श्रीमद्भागवतं शास्त्रं कलौ कीरेण भाषितम्||
अर्थ: -श्रीशुकदेवजी के मुख से कहा हुआ
यह श्रीमद् भागवत शास्त्र तो कलियुग में साक्षात् श्रीकृष्ण की प्राप्ति करने वाला और नित्य प्रेमानन्द रूप फल प्रदान करने वाला है |
धनं पुत्रांस्तथा दारान् वाहनादि यशो गृहान् |
असापत्न्यम् च राज्यं च दद्याद् भागवती कथा ||
अर्थ: श्रीमद् भागवत की कथा धन,पुत्र ,स्त्री ,वाहन ,यश , मकान
और निष्कंटक राज्य भी दे सकती है |
श्रीमद्भागवतं पुन्यमायुरारोग्यपुष्टिदम् |
पठनात् श्रवणात् वापि सर्व पापैः प्रमुच्यते ||
अर्थ :- यह पावन पुराण श्रीमद भागवत
आयु, आरोग्य , और पुष्टि को देने वाला है ।इसका पाठ अथवा श्रवण करने से सब पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है |
उत्थाय प्रणमेद् यो वै श्रीमद्भागवतं नरः |
धनं पुत्रांस्तथा दारान् भक्तिं च प्रददाम्यहम् ||
अर्थ :- जो मानव खड़ा होकर श्रीमद् भागवत को प्रणाम करता है, उसे मै धन , स्त्री ,पुत्र और अपनी भक्ति प्रदान करता हूँ |
श्लोकार्धम् श्लोकपादं वा नित्यं भागवतोदभवम्|
पठते श्रनुयाद् यस्तु गोसहस्रफलं लभेत्||
अर्थ:- जो प्रतिदिन भागवत के आधे श्लोक
या चौथाई श्लोक का पाठ अथवा श्रवण करता है , उसे एक हज़ार गोदान का फल मिलता है |✍☘💕
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