श्री गणेशायः नमः
श्री पुराणपुरुशोतमायः नमः
श्री शिवमहापुराण ( माहात्मय समाप्ती के बाद से )
विधेश्वरसहिंता
प्रथम अध्याय -प्रयाग मे सुतजी से मुनियो का तुरन्त पाप नाश करनेवाले साधन के बिषय मे प्रश्न
जो आदि और अन्त मे ( और मध्य मे भी ) नित्य मंगलमय है , जिनकी समानता अथवा तुलना कही भी नही है , जो आत्मा के स्वरुप को प्रकाशित करने वाले देवता ( परमात्मा ) है , जिनके पॉच मुख है , और जो खेल -हि- खेल मे अनायास जगत कि रचना , पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरुप पॉच प्रबल कर्म करते रहते है , उन सर्वश्रेष्ठ अजर अमर इश्वर अम्बिकापति भगवान शंकर का मै मन - हि - मन चिन्तन करता हु ।
व्यास जी कहते है --जो धर्म का महान छेत्र है और जहॉ गंगा यमुना का संगम हुआ है , उस परमपुण्यमय प्रयाग मे , जो ब्रहालोक का मार्ग है । सत्यव्रत मे तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियो ने एक विशाल ज्ञानयज्ञ का आयोजन किया । उस ज्ञानयज्ञ का समाचार सुनकर पौरानिकशिरोमनी व्यासशिष्य महामुनी सुतजी वहॉ मुनियो का दर्शन करने के लिये वहॉ आये । सुतजी को आते देखकर सब मुनि हर्ष से खिल उठे और अत्यन्त प्रसन्नचित से उन्होने उनका विधीवत स्वागत सत्कार किया । तत्पश्चात उन प्रसन्न महात्माओ ने उनकी विधिवत स्तुति करके विनयपुर्वक हाथ जोरकर उनसे इस प्रकार कहा ---
सर्वज्ञ विद्वान रोमहर्षणजी ! आपका भाग्य बडा भारी है ,इसी से आपने व्यास जी के मुख से अपनी प्रसन्नता के लिये हि संपुर्ण पुराण विद्या प्राप्त कि है । इसलिये आप आश्चर्यस्वरुप कथाओ के भंडार है -- ठिक उसीतरह, जैसे रत्नाकार समुद्र बडे बडे सारभुत रत्नो का आगार है । तीनो लोको मे भुत , वर्तमान और भविष्य तथा और भी जो कोइ वस्तु है । वह आप से अज्ञात नही है । आप हमारे सौभाग्य से इस यज्ञ का दर्शन करने के लिये यहॉ पधार गये है | और इसी ब्याज से हमारा कुछ कल्याण करनेवाले है , क्युकी आपका आगमन निरर्थक नही हो सकता । हमने पहले भी आपसे शुभाशुभ तत्व का वर्णन सुना है ; किन्तु उससे हमे तिप्ती नही होती ; हमे उसे सुनने कि बारंबार इच्छा होती है । उतम बुद्धिवाले सुतजी इस समय हमे एक हि बात सुननी है । यदि आपका अनुग्रह हो तो गोपनिये होने पर भी आप उस बिषय का वर्णन करे । घोर कलयुग आने पर मनुष्य पुन्य कर्म से दुर रहेगें । दुराचार मे फस जायेगें और सब के सब सत्य भाषण से मुह फेर लेंगे , दुसरो कि निन्दा मे तत्पर रहेगें । पराये धन को हडप लेने कि इच्छा करेगें । उनका मन परायी स्त्रीयों मे आसक्त रहेगा तथा वे दुसरे प्राणीयो कि हिंसा किया करेगें । अपने शरीर को ही आत्मा समझेगें । मुढ , नास्तिक और पशुबुद्धि रखने वाले होंगे ,माता पिता से द्वेष करेंगे । ब्राह्रण लोभरुपी ग्राह के ग्रास बन जायेंगे । वेद बेचकर जीविका चलायेंगे । धन का उपार्जन करने के लिये हि विद्या का अभ्यास करेंगे और मद से मोहित रहेंगे । अपनी जाति के कर्म छोर देंगे । प्रायः दुसरो को ठगेंगे , तीनो काल कि सन्ध्योपासना से दुर रहेंगे और ब्रम्हज्ञान से शुन्य रहेंगे । समस्त क्षत्रिये भी स्वधर्म का त्याग करने वाले होंगे । कुसंगी , पापी और व्यभिचारी होंगे । उनमे शौर्य का अभाव होगा । वे कुत्सित चौर्य कर्म से जीविका चलायेंगे , शुद्रो का सा वर्ताव करेंगे । और उनका चित काम का किंकर बना रहेगा । वैश्य संस्कार-भष्ट ,स्वधर्मत्यागी , कुमार्गी , धनोपार्जन-परायण तथा नाप तौल अपनी कुत्सित विचार का परिचय देने वाले होंगे । इसी तरह शुद्र ब्राह्रणो के आचार में तत्पर होंगे उनकी आक्रिती उज्जवल होगी , अर्थात वे अपना कर्म धर्म छोरकर उज्जवल भेष भुषा से विभुषित हो व्यर्थ घुमेंगे । वे स्वभावतः हि अपने धर्म का त्याग करने वाले होंगे । उनके विचार धर्म के प्रतिकूल होंगे । वे कुटिल और द्विजनिन्दक होंगे । यदि धनी हुए तो कुकर्म मे लग जायेंगे । विद्वान हुए तो वाद -विवाद करने वाले होंगे । अपने को कुलिन मानकर चारो वर्णो के साथ वैवाहिक संबन्ध स्थापित करेंगे , समस्त वर्णो को अपने सम्पर्क से भ्रष्ट करेंगे । वे लोग अपनी अधिकार सीमा से बाहर जाकर द्विजोचित सत्कर्मो का अनुष्ठान करने वाले होंगे । कलयुग कि स्त्रीयॉ प्रायः सदाचार से भ्रष्ट और सदा पति का अपमान करने वाली होगी । सास -ससुर से द्रोह करेगी । किसी से भय नहीं मानेगी । मलिन भोजन करेंगी । कुत्सित हाव-भाव मे तत्पर होंगी । उनका शिल-स्वभाव बहुत हि बुरा होगा और वे और अपने पति कि सेवा से सदा ही विमुख रहेंगी । सुतजी ! इस प्रकार जिसकी बुद्धि नष्ट हो गयी है , जिन्होने अपने धर्म का त्याग कर दिया है , ऐसे लोगो को इहलोक और परलोक मे उतम गति कैसे प्राप्त होंगी ---- इसी चिन्ता से हमारा मन सदा व्याकुल रहता है । परोपकार जे समान दुसरा कोइ धर्म नही है । अतः जिस छोटे से छोटे उपाय से इन सब पापो का तत्काल नाश हो जाये ,उसे इस समय क्रिपा पुर्वक बताइयें ; क्युकि आप समस्त सिद्धान्तो के ज्ञाता है ।
अब व्यासजी बोलते है --उन भावितात्मा मुनियो कि यह बात सुनकर सुतजी मन -ही-मन भगवान शिव का स्मरण करके उनसे इस प्रकार बोले ---
हर हर महादेव
श्री पुराणपुरुशोतमायः नमः
श्री शिवमहापुराण ( माहात्मय समाप्ती के बाद से )
विधेश्वरसहिंता
प्रथम अध्याय -प्रयाग मे सुतजी से मुनियो का तुरन्त पाप नाश करनेवाले साधन के बिषय मे प्रश्न
जो आदि और अन्त मे ( और मध्य मे भी ) नित्य मंगलमय है , जिनकी समानता अथवा तुलना कही भी नही है , जो आत्मा के स्वरुप को प्रकाशित करने वाले देवता ( परमात्मा ) है , जिनके पॉच मुख है , और जो खेल -हि- खेल मे अनायास जगत कि रचना , पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरुप पॉच प्रबल कर्म करते रहते है , उन सर्वश्रेष्ठ अजर अमर इश्वर अम्बिकापति भगवान शंकर का मै मन - हि - मन चिन्तन करता हु ।
व्यास जी कहते है --जो धर्म का महान छेत्र है और जहॉ गंगा यमुना का संगम हुआ है , उस परमपुण्यमय प्रयाग मे , जो ब्रहालोक का मार्ग है । सत्यव्रत मे तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियो ने एक विशाल ज्ञानयज्ञ का आयोजन किया । उस ज्ञानयज्ञ का समाचार सुनकर पौरानिकशिरोमनी व्यासशिष्य महामुनी सुतजी वहॉ मुनियो का दर्शन करने के लिये वहॉ आये । सुतजी को आते देखकर सब मुनि हर्ष से खिल उठे और अत्यन्त प्रसन्नचित से उन्होने उनका विधीवत स्वागत सत्कार किया । तत्पश्चात उन प्रसन्न महात्माओ ने उनकी विधिवत स्तुति करके विनयपुर्वक हाथ जोरकर उनसे इस प्रकार कहा ---
सर्वज्ञ विद्वान रोमहर्षणजी ! आपका भाग्य बडा भारी है ,इसी से आपने व्यास जी के मुख से अपनी प्रसन्नता के लिये हि संपुर्ण पुराण विद्या प्राप्त कि है । इसलिये आप आश्चर्यस्वरुप कथाओ के भंडार है -- ठिक उसीतरह, जैसे रत्नाकार समुद्र बडे बडे सारभुत रत्नो का आगार है । तीनो लोको मे भुत , वर्तमान और भविष्य तथा और भी जो कोइ वस्तु है । वह आप से अज्ञात नही है । आप हमारे सौभाग्य से इस यज्ञ का दर्शन करने के लिये यहॉ पधार गये है | और इसी ब्याज से हमारा कुछ कल्याण करनेवाले है , क्युकी आपका आगमन निरर्थक नही हो सकता । हमने पहले भी आपसे शुभाशुभ तत्व का वर्णन सुना है ; किन्तु उससे हमे तिप्ती नही होती ; हमे उसे सुनने कि बारंबार इच्छा होती है । उतम बुद्धिवाले सुतजी इस समय हमे एक हि बात सुननी है । यदि आपका अनुग्रह हो तो गोपनिये होने पर भी आप उस बिषय का वर्णन करे । घोर कलयुग आने पर मनुष्य पुन्य कर्म से दुर रहेगें । दुराचार मे फस जायेगें और सब के सब सत्य भाषण से मुह फेर लेंगे , दुसरो कि निन्दा मे तत्पर रहेगें । पराये धन को हडप लेने कि इच्छा करेगें । उनका मन परायी स्त्रीयों मे आसक्त रहेगा तथा वे दुसरे प्राणीयो कि हिंसा किया करेगें । अपने शरीर को ही आत्मा समझेगें । मुढ , नास्तिक और पशुबुद्धि रखने वाले होंगे ,माता पिता से द्वेष करेंगे । ब्राह्रण लोभरुपी ग्राह के ग्रास बन जायेंगे । वेद बेचकर जीविका चलायेंगे । धन का उपार्जन करने के लिये हि विद्या का अभ्यास करेंगे और मद से मोहित रहेंगे । अपनी जाति के कर्म छोर देंगे । प्रायः दुसरो को ठगेंगे , तीनो काल कि सन्ध्योपासना से दुर रहेंगे और ब्रम्हज्ञान से शुन्य रहेंगे । समस्त क्षत्रिये भी स्वधर्म का त्याग करने वाले होंगे । कुसंगी , पापी और व्यभिचारी होंगे । उनमे शौर्य का अभाव होगा । वे कुत्सित चौर्य कर्म से जीविका चलायेंगे , शुद्रो का सा वर्ताव करेंगे । और उनका चित काम का किंकर बना रहेगा । वैश्य संस्कार-भष्ट ,स्वधर्मत्यागी , कुमार्गी , धनोपार्जन-परायण तथा नाप तौल अपनी कुत्सित विचार का परिचय देने वाले होंगे । इसी तरह शुद्र ब्राह्रणो के आचार में तत्पर होंगे उनकी आक्रिती उज्जवल होगी , अर्थात वे अपना कर्म धर्म छोरकर उज्जवल भेष भुषा से विभुषित हो व्यर्थ घुमेंगे । वे स्वभावतः हि अपने धर्म का त्याग करने वाले होंगे । उनके विचार धर्म के प्रतिकूल होंगे । वे कुटिल और द्विजनिन्दक होंगे । यदि धनी हुए तो कुकर्म मे लग जायेंगे । विद्वान हुए तो वाद -विवाद करने वाले होंगे । अपने को कुलिन मानकर चारो वर्णो के साथ वैवाहिक संबन्ध स्थापित करेंगे , समस्त वर्णो को अपने सम्पर्क से भ्रष्ट करेंगे । वे लोग अपनी अधिकार सीमा से बाहर जाकर द्विजोचित सत्कर्मो का अनुष्ठान करने वाले होंगे । कलयुग कि स्त्रीयॉ प्रायः सदाचार से भ्रष्ट और सदा पति का अपमान करने वाली होगी । सास -ससुर से द्रोह करेगी । किसी से भय नहीं मानेगी । मलिन भोजन करेंगी । कुत्सित हाव-भाव मे तत्पर होंगी । उनका शिल-स्वभाव बहुत हि बुरा होगा और वे और अपने पति कि सेवा से सदा ही विमुख रहेंगी । सुतजी ! इस प्रकार जिसकी बुद्धि नष्ट हो गयी है , जिन्होने अपने धर्म का त्याग कर दिया है , ऐसे लोगो को इहलोक और परलोक मे उतम गति कैसे प्राप्त होंगी ---- इसी चिन्ता से हमारा मन सदा व्याकुल रहता है । परोपकार जे समान दुसरा कोइ धर्म नही है । अतः जिस छोटे से छोटे उपाय से इन सब पापो का तत्काल नाश हो जाये ,उसे इस समय क्रिपा पुर्वक बताइयें ; क्युकि आप समस्त सिद्धान्तो के ज्ञाता है ।
अब व्यासजी बोलते है --उन भावितात्मा मुनियो कि यह बात सुनकर सुतजी मन -ही-मन भगवान शिव का स्मरण करके उनसे इस प्रकार बोले ---
हर हर महादेव
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