*भक्त को बाहर से भले थोड़ा घाटा पड़े, फिर भी वह भीतर से दूसरे का हित करता है। ऐसा करने से बाहर की वस्तु भले थोड़ी कम हो जाये लेकिन भीतर की जो खुशी मिलती है, भीतर का जो बल बढ़ता है और भीतर का जो आनंद आता है उसे भक्त ही जानता है।*
*जो भक्ति के रास्ते चलते हैं उऩकी कुटिलता हटती जाती है, सरलता बढ़ती जाती है, हिंसात्मक वृत्ति मिटती जाती है। अहिंसात्मक वृत्ति बढ़ती जाती है। हिंसा करना तमोगुण है, प्रतिहिंसा करना रजोगुण है, अहिंसा सत्त्वगुण है। भक्ति करने से सत्त्व गुण बढ़ता है।*
*भक्त कभी कभार जरूरत पड़ने पर प्रतिक्रिया करता भी है लेकिन हिंसा की वृत्ति से नहीं, वरन् सामने वाले की भलाई के लिए करता है ताकि उसकी गलती दूर हो और वह सत्य की ओर चल पड़े।*
*जो भक्ति के रास्ते चलते हैं उऩकी कुटिलता हटती जाती है, सरलता बढ़ती जाती है, हिंसात्मक वृत्ति मिटती जाती है। अहिंसात्मक वृत्ति बढ़ती जाती है। हिंसा करना तमोगुण है, प्रतिहिंसा करना रजोगुण है, अहिंसा सत्त्वगुण है। भक्ति करने से सत्त्व गुण बढ़ता है।*
*भक्त कभी कभार जरूरत पड़ने पर प्रतिक्रिया करता भी है लेकिन हिंसा की वृत्ति से नहीं, वरन् सामने वाले की भलाई के लिए करता है ताकि उसकी गलती दूर हो और वह सत्य की ओर चल पड़े।*
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