Thursday, August 2, 2018

–अज्ञान से भरे इस संसार में पाप करना कोई अद्भुत विषय नहीं,

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–अज्ञान से भरे इस संसार में पाप करना कोई अद्भुत विषय नहीं,
इसलिए पाप हो जाने की चिन्ता तो मुझे नहीं। ‘अरे , मैंने तो पाप कर लिया है। मुझसे इन पाप कर्मों को करने से  इस लोक तथा परलोक में मेरी क्या दशा होगी?’  इस तरह का भय, अनुताप और लज्जा यदि होती तो मेरे द्वारा किये हुए पाप का कुछ प्रायश्चित हो जाता और यह बाद में जान बूझ कर पाप करने से हमें रोकता भी। लेकिन मुझको पापों के विषय में जरा भी न भय है, न अनुताप है और न लज्जा ही। इसका कारण है विवेक का अभाव। पाप से रोकने वाले अनुताप आदि के अभाव से बार-बार पाप करता ही रहता हूँ। अपने पापों की अधिकता को उपर्युक्त शब्दों में श्रीरामानुज की सेवा में निवेदन करते वरवरमुनि जी कहते हैं कि  मुझ ऐसे पापी को आपकी कृपा के सिवाय दूसरी कोई गति नहीं।*


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