*संसार के सुखों की अनित्यता*
किसी नगर में एक गृहस्थ के घर एक गाय पली थी एक दिन उस गाय का बछड़ा बहुत उदास हो रहा था वह समय पर माता के स्तनों में मुंह लगाकर दूध पीने में भी उस दिन उत्साह नहीं दिखला रहा था गाय ने अपने बच्चे की यह दशा देखकर पूछा बेटा आज तुम इतने उदास क्यों हो उत्साहपूर्वक दूध क्यों नहीं पीते हो बछड़ा बोला मां तुम उस भेड़े की ओर तो देखो वो काला कलूटा है मुझसे छोटा है और सुस्त भी है किंतु अपने स्वामी का पुत्र उसे कितना प्यार करता है उसे वो रोटी खिलाता है हरी हरी घास देता है मटर की फलियां अपने हाथों से खिलाता है और उसे पुचकारता है उस भेड़े को स्वामी के पुत्र ने उसे घण्टी पहनाई है, और उसके सींगों में प्रतिदिन तेल लगाता है, दूसरी और मुझे अभागे की कोई पूछ भी नहीं है मुझे पेट भर सुखी घास भी नहीं दी जाती समय पर कोई मुझे पानी तक नहीं पिलाता मुझ में ऐसा क्या दोष है मैंने कौन सा अपराध किया है।
गाय बोली बेटा व्यर्थ दुःख मत करो यह *संसार ऐसा ही है कि यहां बहुत सुख और बहुत सम्मान मिलना बड़े भय की बात है संसार के सुख और सम्मान के पीछे रोग-शोक मृत्यु तथा पतन छिपे हैं* तुम लोभ मत करो और दूसरे का सुख सम्मान देखकर दुखी मत हो वह तो दया का पात्र है जैसे मरणासन्न रोगी जो कुछ चाहता है उसे दिया जाता है वैसे ही यह मेरा दीवानापन है इसे मारने के लिए मोटा किया जा रहा है हमारे लिए सुखी घास हमारे लिए शुभ है।
कुछ दिन बीत गए एक संध्या को गाय जब बन से चर कर लौटी तब उसने देखा उसका बछड़ा भय से कांप रहा है वो न दौड़ता है ना बोलता है दीवार से सट्टा दुबका खड़ा है पास जाने पर भी उसने दूध पीने का कोई प्रयत्न नहीं किया गाय ने उसे चाटते हुए पूछा बेटा आज तुझे क्या हो गया बछड़ा बोला माँ मैंने देखा कि एक भेड़े को पहले खूब सजाया गया फूल माला पहनाई गई किंतु पीछे एक मनुष्य ने उसका मस्तक काट दिया केवल एक बार चिल्ला सका बेचारा उसने थोड़ी देर पैर फड़फड़ाये, उसके शरीर के भी हत्यारों ने टुकड़े टुकड़े कर दिए अभी वहां आंगन में भेड़े का रक्त पड़ा है मैं तो यह सब देख कर बहुत डर गया हूं गाय ने बछड़े को पुकारा और बोली मैंने तो तुमसे पहले ही कहा था कि संसार के सुख और सम्मान से सावधान रहना चाहिए इनके पीछे रोग शोक पतन और विनाश दबे पाँव आ जाते है . 🙏
किसी नगर में एक गृहस्थ के घर एक गाय पली थी एक दिन उस गाय का बछड़ा बहुत उदास हो रहा था वह समय पर माता के स्तनों में मुंह लगाकर दूध पीने में भी उस दिन उत्साह नहीं दिखला रहा था गाय ने अपने बच्चे की यह दशा देखकर पूछा बेटा आज तुम इतने उदास क्यों हो उत्साहपूर्वक दूध क्यों नहीं पीते हो बछड़ा बोला मां तुम उस भेड़े की ओर तो देखो वो काला कलूटा है मुझसे छोटा है और सुस्त भी है किंतु अपने स्वामी का पुत्र उसे कितना प्यार करता है उसे वो रोटी खिलाता है हरी हरी घास देता है मटर की फलियां अपने हाथों से खिलाता है और उसे पुचकारता है उस भेड़े को स्वामी के पुत्र ने उसे घण्टी पहनाई है, और उसके सींगों में प्रतिदिन तेल लगाता है, दूसरी और मुझे अभागे की कोई पूछ भी नहीं है मुझे पेट भर सुखी घास भी नहीं दी जाती समय पर कोई मुझे पानी तक नहीं पिलाता मुझ में ऐसा क्या दोष है मैंने कौन सा अपराध किया है।
गाय बोली बेटा व्यर्थ दुःख मत करो यह *संसार ऐसा ही है कि यहां बहुत सुख और बहुत सम्मान मिलना बड़े भय की बात है संसार के सुख और सम्मान के पीछे रोग-शोक मृत्यु तथा पतन छिपे हैं* तुम लोभ मत करो और दूसरे का सुख सम्मान देखकर दुखी मत हो वह तो दया का पात्र है जैसे मरणासन्न रोगी जो कुछ चाहता है उसे दिया जाता है वैसे ही यह मेरा दीवानापन है इसे मारने के लिए मोटा किया जा रहा है हमारे लिए सुखी घास हमारे लिए शुभ है।
कुछ दिन बीत गए एक संध्या को गाय जब बन से चर कर लौटी तब उसने देखा उसका बछड़ा भय से कांप रहा है वो न दौड़ता है ना बोलता है दीवार से सट्टा दुबका खड़ा है पास जाने पर भी उसने दूध पीने का कोई प्रयत्न नहीं किया गाय ने उसे चाटते हुए पूछा बेटा आज तुझे क्या हो गया बछड़ा बोला माँ मैंने देखा कि एक भेड़े को पहले खूब सजाया गया फूल माला पहनाई गई किंतु पीछे एक मनुष्य ने उसका मस्तक काट दिया केवल एक बार चिल्ला सका बेचारा उसने थोड़ी देर पैर फड़फड़ाये, उसके शरीर के भी हत्यारों ने टुकड़े टुकड़े कर दिए अभी वहां आंगन में भेड़े का रक्त पड़ा है मैं तो यह सब देख कर बहुत डर गया हूं गाय ने बछड़े को पुकारा और बोली मैंने तो तुमसे पहले ही कहा था कि संसार के सुख और सम्मान से सावधान रहना चाहिए इनके पीछे रोग शोक पतन और विनाश दबे पाँव आ जाते है . 🙏
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