Monday, August 13, 2018

श्यामावदातं करूणाद्रनेत्रं प्रसन्नवक्त्रं स्वजनैक जीवनम्। श्रीवत्सचिह्नं गलकौस्तुभं भजे श्रीमन्मुकुंदं प्रणतार्तिन्शम्।। आप सबका *श्री निम्बार्क सम्प्रदाय* में स्वागत है। यह जगत बद्ध , मुक्त , बद्धमुक्त तीनों प्रकार की जीव श्रेणी में बंटा है ऐसा श्री नियमानन्द भगवान का मत है ।


श्यामावदातं करूणाद्रनेत्रं प्रसन्नवक्त्रं स्वजनैक जीवनम्।
श्रीवत्सचिह्नं गलकौस्तुभं भजे श्रीमन्मुकुंदं प्रणतार्तिन्शम्।।

    आप सबका *श्री निम्बार्क सम्प्रदाय* में स्वागत है। यह जगत बद्ध , मुक्त , बद्धमुक्त तीनों प्रकार की जीव श्रेणी में बंटा है ऐसा श्री नियमानन्द भगवान का मत है । बद्ध = जो अभी पूर्णतया इस संसार को ही परम उद्देश्य मानते हैं । मुक्त = जो इस जगत की माया का त्याग श्री युगलचरणोपासना मे ही रति करते हैं। बद्धमुक्त = जो बद्ध भी जगत में रति भी है , परंतु संतुलन के द्वारा श्री श्यामाश्याम युगलचरणारविन्दो की उपासना भी करता है । परन्तु यह इतना ही नहीं है आगे इनके भी प्रभेद हैं। बद्ध के आगे दो भेद हैं १) वभुक्षु और २) मुमुक्षु । इसके आगे वभुक्षु भी दो भेद हैं ।
1) एक वें जो केवल विषयो के आनंद को ही चर्मानंद मानकर  इच्छा करते  हैं उन्हे "केवल विषयानन्दी"।
2) "भावी कल्याणेछुक" जो भावोन्मुक्त हो अथवा भगवान से ही केवल संसार की इच्छापूर्ति चाहते हैं । जैसे कर्मकंण्डी यजमान जो केवल दुःख के समय ही भगवत आराधन करते हैं।
मुमुक्षु :-
1) "स्वस्वरूप प्राप्ति के इच्छुक" जो अष्टयाम योग को सिद्ध करते हैं। या जो निराकार आत्मा को ही  परमात्मा स्विकारते हैं।
2) "श्रीकृष्ण स्वरूपप्राप्ति इच्छुक" जो परमात्मा को जानने की इच्छा करते हैं।
 इस प्रकार बद्ध जीवों की चार भेद हुए । मुक्त जीवों के भी आगे दो भेद हैं । १) मुक्त और २) नित्यमुक्त ।
मुक्त:-
 १)जो जीव अपने स्वरूप मे स्थित होकर भगवतसेवा प्राप्त करे वह "स्वस्वरूप सिद्ध" हैं । और
जो जीव " शिवोऽहं" "कृष्णोऽहं" ऐसे सिद्धी कर निराकार सत्ता मे लीन होता है । वह "परस्वरूप सिद्ध" हैं।
  नित्यमुक्त :-
1)जो श्रीभगवत विग्रह से पृथक नहीं होते वे "अंतरंग नित्यमुक्त" हैं। जैसे शंख - चक्र , श्री वत्सादि ।
2) जो कभी भगवत विग्रह से अलग और कभी युक्त होते हैं । वे "बाह्यनित्यमुक्त" हैं ।
 यह निम्बार्क भगवान के द्वारा प्रतिपादित "द्वैताद्वैतमतानुसार" जीव के आठ प्रभेद बताए हैं ।
इनका चिंतन करके समझने का प्रयास करना चाहिए । कई बार धीरे धीरे पढने समझ आएगा। अगले भाग में इससे आगे सिद्धांत को समझाने का प्रयास किया जाएगा।

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