Monday, August 13, 2018

भावार्थ:- हे प्रभो ! आप शरणागत रक्षक हैं। आपके चरणारविन्द सदा-सर्वदा ध्यान-करने योग्य, माया-मोहादि से उत्पन्न सांसारिक पराजयों को समाप्त करने वाले, तथा भक्तों को समस्त अभीष्ट प्रदान करने वाले कामधेनु स्वरूप हैं। वे तीर्थों को भी तीर्थ बनाने वाले स्वयं तीर्थ स्वरूप हैं; शिव, ब्रह्मा आदि देवता उन्हें नमस्कार करते हैं। "महापुरुष" आप सेवकों की समस्त आर्ति और विपत्ति के नाशक तथा संसार-सागर से पार जाने के लिए जहाज हैं।


ध्येयं सदा परिभवघ्नमभीष्टदोहं
तीर्थास्पदं शिवविरिञ्चिनुतं शरण्यम्।
भृत्यार्तिहं प्रणतपाल भवाब्धिपोतं
वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम्॥
    (श्रीमद्भागवत )

   भावार्थ:-
 हे प्रभो ! आप शरणागत रक्षक हैं। आपके चरणारविन्द सदा-सर्वदा ध्यान-करने योग्य, माया-मोहादि से उत्पन्न सांसारिक पराजयों को समाप्त करने वाले, तथा भक्तों को समस्त अभीष्ट प्रदान करने वाले कामधेनु स्वरूप हैं। वे तीर्थों को भी तीर्थ बनाने वाले स्वयं तीर्थ स्वरूप हैं; शिव, ब्रह्मा आदि देवता उन्हें नमस्कार करते हैं। "महापुरुष" आप सेवकों की समस्त आर्ति और विपत्ति के नाशक तथा संसार-सागर से पार जाने के लिए जहाज हैं।

 मैं आपके चरणों की वन्दना करता हूँ।

         !! शुभ प्रभात !!
           वन्दन
          

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