Friday, August 10, 2018

श्री शिवमहापुराण part 9

श्री शिवमहापुराण 

विधेश्वरसहिंता (महात्मय से आगे )
दुसरा अध्याय ~ शिवपुराण का परिचय

सुतजी कहते है ~ साधु महात्माओ ! आपने बहुत अच्छी बात पुछी है ।आपका यह प्रश्न तीनो लोको का हित करने वाला है । मैं गुरुदेव व्यास का स्मरण करके आपलोगो के स्नेहवश इस विषय का वर्णन करुंगा । आप आदरपुर्वक सुने । सबसे उतम जो शिवपुराण है , वह वेदान्त का सार सर्वस्व है तथा वक्ता और श्रोता का समस्त पापराशियो से उद्धार करनेवाला है । इतना हि नही , वह परलोक मे भी परमार्थ वस्तुओ को देने वाला है , कलि की कल्मषराशि का विनाश करने वाला है । उसमें भगवान शिव के उतम यश का वर्णन है। ब्राह्रणो ! धर्म , अर्थ, काम और मोक्ष ~~ इन चारो पुरुषार्थो को देने वाला  वह पुराण सदा हि अपने प्रभाव कि दृष्टि से वृद्धि या विस्तार को प्राप्त हो रहा है | विप्रवरो ! उस सर्वोतम शिवपुराण के अध्ययन मात्र से वे कलयुग के पाप मे आसक्त जीव श्रेष्टतम गति को प्राप्त हो जायेंगे । कलयुग के महान उत्पाद तभी तक जगत मे निर्भय होकर विचरेंगे , जब तक यहॉ शिव पुराण का उदय नहीं होगा । इसे वेद के तुल्य माना गया है । इस वेद कल्प पुराण का सबसे पहले भागवान शिव ने हि प्रणयन किया था । विद्येश्वरसंहिता , रुद्रसंहिता ,विनायकसंहिता , उमासंहिता , मातृसंहिता , एकादशरुद्रसंहिता , कैलाशसंहिता , शतरुद्रसंहिता , कोटिरुद्रसंहिता , सहस्त्र-कोटिरुद्रसंहिता , वायवीयसंहिता तथा धर्मसंहिता ~~इस प्रकार इस पुराण के बारह भेद या खण्ड है । ये बारह संहितायें अत्यन्त पुण्यमयी मानी गयी है । ब्राहणो ! अब मै उनके श्लोको कि संख्या बता रहा हुं । आप लोक वह सब आदरपुर्वक सुने । विद्येश्वरसंहिता में दस हजार श्लोक है ।  रुद्रसंहिता , विनायकसंहिता , उमासंहिता और मातृसंहिता ~~ इनमें से प्रत्येक में आठ -आठ हजार श्लोक है | ब्राह्मणो ! एकादसरुद्रसंहिता में तेरह हजार , कैलाशसंहिता में छः हजार , सतरूद्रसंहिता में तीन हजार ,कोटिरुद्रसंहिता में  नौ हजार ,सहस्त्रकोटिरुद्रसंहिता में ग्यारह हजार , वायवीयसंहिता में चार हजार तथा धर्मसंहिता में बारह हजार श्लोक है | इस प्रकार मूल शिवपुराण की श्लोको की संख्या एक लाख है | परन्तु व्यासजी ने उसे चौबीस हजार श्लोको में संक्षिप्त कर दिया है | पुराणो की क्रम संख्या के विचार से इस शिवपुराण का स्थान चौथा है | इसमें सात संहिताएं है |
          पूर्वकाल में भगवान शिव ने श्लोक संख्या कि दृष्टी से सौ करोड  श्लोको का एक हि पूराण ग्रन्थ ग्रथित किया था । सृष्टि के आदि में निर्मित हुआ वह  पुराण - साहित्य अत्यन्त विस्तृत था । फिर द्वापर आदि युगो में , द्वैपायन (व्यास) आदि महर्षियो ने जब पुराण का अठ्ठारह भागो मे विभाजन कर दिया  ,उस समय संपुर्ण पुराणो का संक्षिप्त स्वरुप केवल चार लाख श्लोको का रह गया । उस समय उन्होने शिवपुराण का चौबीस हजार श्लोको में प्रतिपादन किया । यही इसके श्लोको कि संख्या है । यह वेद तुल्य पुराण सात संहिताओ मे बटा हुआ है । इसकी पहली संहिता का नाम विद्येश्वरसंहिता है ,दुसरी रुद्रसंहिता समझनी चाहिये , तीसरे  का नाम  सतरूद्रसंहिता , चौथी का कोटीरुद्रसंहिता , पाँचवीं का उमासंहिता , छठी का कैलाशसंहिता और सातवीं का वायवीयसंहिता है । ईस प्रकार यह सात संहितायें मानी गयी है । इन सात संहिताओ से युक्त यह द्विव्य शिवपुराण वेदो के तुल्य प्रमाणिक तथा सबसे उतकृष्ट गति प्रदान करने वाला है । यह निर्मल शिव पुराण भगवान शिव के द्वारा हि प्रतिपादित है । इसे शैवशिरोमणी भगवान व्यास ने सक्षेप में संकलित किया हैं । यह समस्त जीव समुदाय के लिये उपकारक ,त्रिबिधिक तापो का नाश करने वाला , तुलना रहित एवं सत्पुरुषो को कल्याण प्रदान करने वाला है । इसमे वेदान्त-विज्ञानमय , प्रधान तथा निष्कपट(निष्काम) धर्म का प्रतिपादन किया गया है । यह पुराण ईष्या रहित अन्तः करण वाले विद्वानो के जानने कि वस्तु है  । इसमे श्रेष्ठ मंत्र-समुहो का संकलन है । टथा धर्म, अर्थ और काम -इस त्रिवर्ग कि प्राप्ती के साधन का भी वर्णन है । यह उतम शिवपुराण सब पुराणो मे श्रेष्ठ है । वेद - वेदान्त मे  वेद्यरुप से विलसित परम वस्तु - परमात्मा का इसमे गान किया गया है । जो बडे आदर से इसे पढता और सुनता है , वह भगवान शिव का प्रिये होकर परमगति को प्राप्त कर लेता है
*हर हर महादेव

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