Thursday, August 16, 2018

सन्त जन कहते हैं कि सदा संतो का ही संग करो

     सन्त जन कहते हैं कि सदा संतो का ही संग करो ।भूलकर भी असन्त की संगति नहीं करनी चाहिए।उनका संग सदा दुख देने वाला होता है।असन्त सदा परायी स्त्री , पराये धन तथा निन्दा में आसक्त रहते हैं   कलियुग में तो असन्तो के झुंड के झुंड हैं ।इसके विपरीत सन्त वे हैं जो निंदा और स्तुति दोनों में समान रहते हैं। सन्तों का चित्त बड़ा ही कोमल होता है।सबको सम्मान देते हैं पर स्वयं मानरहित होते हैं।

       सन्त सद्गुणों की खान होते हैं ।इनमें शीतलता सरलता और सबके प्रति मित्रभाव , मृदुभाषी होते हैं।जिसके हृदय में ये सब लक्षण बसते हो वही सन्त है और ऐसे सन्तजन ही ठाकुर 

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