श्री शिवपुराण – माहात्म्य ( post 16 )
विद्येश्वर संहिता
अध्याय – १२
विषय - मोक्षदायक पुण्यक्षेत्रों का वर्णन, कालविशेष में विभिन्न नदियों के जल में स्नान के उत्तम फल का निर्देश तथा तीर्थों में पापसे बचे रहने की चेतावनी
सूतजी बोले – विद्वान एवं बुद्धिमान महर्षियों ! मोक्षदायक शिवक्षेत्रों का वर्णन सुनो | तत्पश्चात मैं लोकरक्षा के लिये शिव सम्बन्धी आगमों का वर्णन करूँगा |
पर्वत, वन और काननों सहित इस पृथ्वी का विस्तार पचास करोड़ योजन हैं | भगवान् शिवकी आज्ञा से पृथ्वी सम्पूर्ण जगत को धारण करके स्थित है | भगवान् शिवने भूतलपर विभिन्न स्थानों में वहाँ-वहाँ के निवासियों को कृपापूर्वक मोक्ष देने के लिये शिवक्षेत्र का निर्माण किया है | कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जिन्हें देवताओं तथा ऋषियों ने अपना वासस्थान बनाकर अनुगृहित किया है | इसीलिये उनमें तीर्थत्व प्रकट हो गया हैं तथा अन्य बहुत-से तीर्थक्षेत्र ऐसे हैं, जो लोकों की रक्षा के लिये स्वयं प्रादुर्भूत हुए हैं | तीर्थ और क्षेत्र में जानेपर मनुष्य को सदा स्नान, दान, और जप आदि करना चाहिये; अन्यथा वह रोग, दरिद्रता तथा मूकता आदि दोषों का भागी होता हैं | जो मनुष्य इस भारतवर्ष के भीतर मृत्यु को प्राप्त होता है, वह अपने पुण्य के फल से ब्रह्मलोक में वास करके पुण्यक्षय के पश्चात पुन: मनुष्य-योनि में ही जन्म लेता हैं | (पापी मनुष्य पाप करके दुर्गति में ही पड़ता हैं |) ब्राह्मणों ! पुण्यक्षेत्र में पापकर्म किया जाय तो वह और भी दृढ़ हो जाता हैं | अत: पुण्यक्षेत्र में निवास करते समय सूक्ष्म-से-सूक्ष्म अथवा थोडा सा भी पाप न करें |
सिन्धु और शतद्रु (सतलज) नदी के तटपर बहुत-से पुण्यक्षेत्र हैं | सरस्वती नदी परम पवित्र और सात मुखवाली कही गयी हैं अर्थात उसकी साठ धाराएँ हैं | विद्वान पुरुष सरस्वती के उन-उन धाराओं के तटपर निवास करे तो वह क्रमश: ब्रह्मपद को पा लेता हैं | हिमालय पर्वत में निकली हुई पुण्यसलिला गंगा सौ मुखवाली नदी है, उसके तटपर काशी-प्रयाग आदि अनेक पुण्यक्षेत्र हैं | वहाँ मकरराशि के सूर्य होनेपर गंगा की तटभूमि पहले से भी अधिक प्रशस्त एवं पुण्यदायक हो जाती हैं | शोणभद्र नदी की दस धाराएँ हैं, वह बृहस्पति के मकरराशि में आनेपर अत्यंत पवित्र तथा अभीष्ट फल देनेवाला हो जाता हैं | उस समय वहां स्नान और उपवास करनेसे विनायकपद की प्राप्ति होती है | पुण्यसलिला महानदी नर्मदा के चौबीस मुख (स्त्रोत) हैं | उसमें स्नान तथा उसके तटपर निवास करनेसे मनुष्य को वैष्णवपद की प्राप्ति होती हैं | तमसा के बारह तथा रेवा के दस मुख हैं | परम पुण्यमयी गोदावरी के इक्कीस मुख बताये गये हैं | वह ब्रह्महत्या तथा गोवध के पापका भी नाश करनेवाली एवं रूद्रलोक देनेवाली हैं | कृष्णावेणी नदी का जल बड़ा पवित्र हैं | वह नदी समस्त पापों का नाश करनेवाली हैं | उसके अठाराह मुख बताये गये हैं तथा वह विष्णुलोक प्रदान करनेवाली हैं | तुंगभद्रा के दस मुख हैं | वह ब्रह्मलोक देनेवाली हैं | पुण्यसलिला सुवर्ण-मुखरी के नौ मुख कहे गये हैं | ब्रह्मलोक से लौटे हुए जीव उसी के तटपर जन्म लेते हैं | सरस्वती नदी, पम्पासरोवर, कन्याकुमारी अंतरीम तथा शुभकारक श्वेत नदी – ये सभी पुण्यक्षेत्र हैं | इनके तटपर निवास करनेसे इन्द्रलोक की प्राप्ति होती है | सह्य पर्वत से निकली हुई महानदी कावेरी परम पुण्यमयी हैं | उसके सत्ताईस मुख बताये गये है | वह सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को देनेवाली हैं | उसके तट स्वर्गलोक की प्राप्ति करानेवाले तथा ब्रह्मा और विष्णुका पद देनेवाले हैं | कावेरी के जो तट शैवक्षेत्र के अंतर्गत हैं, वे अभीष्ट फल देने के साथ ही शिवलोक प्रदान करनेवाले भी हैं |
नैमिषारण्य तथा बद्रिकाश्रम में सूर्य और बृहस्पति के मेषराशि में आनेपर यदि स्नान करे तो उससमय वहाँ किये हुए स्नान पूजन आदि को ब्रह्मलोक की प्राप्ति करनेवाला जानना चाहिये | सिंह और कर्कराशि में सूर्य की संक्राति होनेपर सिन्धु नदी में किया हुआ स्नान तथा केदार तीर्थ के जल का पान एवं स्नान ज्ञानदायक माना गया हैं | जब बृहस्पति सिंहराशि में स्थित हों, उस समय सिंह की संक्राति से युक्त भाद्रपदमास में यदि गोदावरी के जल में स्नान किया जाय तो वह शिवलोक की प्राप्ति करानेवाला होता है, ऐसा पूर्वकाल में स्वयं भगवान शिव ने कहा था | जब सूर्य और बृहस्पति कन्याराशि में स्थित हों, तब यमुना और शौंणभद्र में स्नान करे | वह स्नान धर्मराज तथा गणेशजी के लोक में महान भोग प्रदान करानेवाला होता हैं, यह महर्षियों की मान्यता हैं | जब सूर्य और बृहस्पति तुलाराशि में स्थित हों, उससमय कावेरी नदीमें स्नान करे | वह स्नान भगवान् विष्णु के वचन की महिमासे सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को देनेवाला माना गया हैं | जब सूर्य और बृहस्पति वृश्चिक राशिपर आ जायें, तब मार्गशीर्ष (अगहन) के महीने में नर्मदा में स्नान करनेसे श्रीविष्णुलोक की प्राप्ति हो सकती हैं | सूर्य और बृहस्पति के धनराशी में स्थित होनेपर सुवर्ण मुखरी नदी में किया हुआ स्नान शिवलोक प्रदान करनेवाला होता हैं, जैसा कि ब्रह्माजी का वचन हैं | जब सूर्य और बृहस्पति मकरराशि में स्थित हों, उस समय माघमास में गंगाजी के जल में स्नान करना चाहिये | ब्रह्माजी का कथन हैं कि वह स्नान शिवलोक के पश्चात ब्रह्मा और विष्णु के स्थानों में सुख भोग्नेप्र अंत में मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती हैं | माघमास में तथा सूर्य के कुम्भराशि में स्थित होनेपर फाल्गुन मास में गंगाजी के तटपर किया हुआ श्राद्ध, पिंडदान अथवा तिलोदक-दान पिता और नाना दोनों कुलों के पितरों की अनेकों पीढ़ियों का उद्धार करने वाला माना गया हैं | सूर्य और बृहस्पति जब मीनराशि में स्थित हों, तब कृष्णवेणी नदी में किये गये स्नान की ऋषियों ने प्रशंसा की है | उन-उन महीनों में पूर्वोक्त तीर्थों में किया हुआ स्नान इंद्रपद की प्राप्ति करानेवाला होता हैं | विद्वान पुरुष गंगा अथवा कावेरी नदीका आश्रय लेकर तीर्थवास करे | ऐसा करनेसे तत्काल किये हुए पापका निश्चय ही नाश हो जाता हैं |
रुद्रलोक प्रदान करनेवाले बहुत-से क्षेत्र हैं | ताम्रपर्णी और वेगवती – ये दोनों नदियाँ ब्रह्मलोक की प्राप्तिरूप फल देनेवाली हैं | इन दोनों के तटपर कितने ही स्वर्गदायक क्षेत्र हैं | इन दोनों के मध्य में बहुत-से पुण्यप्रद क्षेत्र हैं | वहाँ निवास करनेवाला विद्वान पुरुष वैसे फल का भागी होता है | सदाचार, उत्तम वृत्ति तथा सद्भावना के साथ मनमें दयाभाव रखते हुए विद्वान पुरुष को तीर्थ में निवास करना चाहिये | अन्यथा उसका फल नहीं मिलता | पुण्यक्षेत्र में किया हुआ थोडा-सा पुण्य भी अनेक प्रकार से वृद्धि को प्राप्त होता हैं | तथा वहाँ किया हुआ छोटा-सा पाप भी महान हो जाता हैं | यदि पुण्यक्षेत्र में रहकर ही जीवन बिताने का निश्चय हो तो उस पुण्यसंकल्प से उसका पहले का सारा पाप तत्काल नष्ट हो जायगा; क्योंकि पुण्य को ऐश्चर्यदायक कहा गया हैं | ब्राह्मणों ! तीर्थवासजनित पुण्य कायिक, वाचिक और मानसिक सारे पापोंका नाश कर देता हैं | तीर्थ में किया हुआ मानसिक पाप वज्रलेप हो जाता हैं | वह कई कल्पोतक पीछा नहीं छोड़ता हैं |
पुण्यक्षेत्रे कृतं पुण्यं बहुधा ऋद्धिमृच्छति | पुण्यक्षेत्रे कृतं पापं महद्न्यपि जायते ||
तत्कालं जीवनार्थचेत पुण्येन श्रयमेष्यति | पुण्यगैश्वर्य: प्राहु: कायिकं याचिकं तथा ||
मानसं च तथा पापं तादृशं नाश्येद द्विजा: | मानसं वज्रलेपं तुल्यकल्पकल्पानुगं तथा || (शिवपुराण, विद्येश्वर संहिता १३ / ३६-३८)
वैसा पाप केवल ध्यान से ही नष्ट होता हैं, अन्यथा नहीं | वाचिक पाप जप से तथा कायिक पाप शरीर को सुखाने-जैसे कठोर तपसे नष्ट होता हैं; अत: सुख चाहनेवाले पुरुष को देवताओं की पूजा करते और ब्राह्मणों को दान देते हुए पाप से बचकर ही तीर्थ में निवास करना चाहिये |
- ॐ नम: शिवाय –
विद्येश्वर संहिता
अध्याय – १२
विषय - मोक्षदायक पुण्यक्षेत्रों का वर्णन, कालविशेष में विभिन्न नदियों के जल में स्नान के उत्तम फल का निर्देश तथा तीर्थों में पापसे बचे रहने की चेतावनी
सूतजी बोले – विद्वान एवं बुद्धिमान महर्षियों ! मोक्षदायक शिवक्षेत्रों का वर्णन सुनो | तत्पश्चात मैं लोकरक्षा के लिये शिव सम्बन्धी आगमों का वर्णन करूँगा |
पर्वत, वन और काननों सहित इस पृथ्वी का विस्तार पचास करोड़ योजन हैं | भगवान् शिवकी आज्ञा से पृथ्वी सम्पूर्ण जगत को धारण करके स्थित है | भगवान् शिवने भूतलपर विभिन्न स्थानों में वहाँ-वहाँ के निवासियों को कृपापूर्वक मोक्ष देने के लिये शिवक्षेत्र का निर्माण किया है | कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जिन्हें देवताओं तथा ऋषियों ने अपना वासस्थान बनाकर अनुगृहित किया है | इसीलिये उनमें तीर्थत्व प्रकट हो गया हैं तथा अन्य बहुत-से तीर्थक्षेत्र ऐसे हैं, जो लोकों की रक्षा के लिये स्वयं प्रादुर्भूत हुए हैं | तीर्थ और क्षेत्र में जानेपर मनुष्य को सदा स्नान, दान, और जप आदि करना चाहिये; अन्यथा वह रोग, दरिद्रता तथा मूकता आदि दोषों का भागी होता हैं | जो मनुष्य इस भारतवर्ष के भीतर मृत्यु को प्राप्त होता है, वह अपने पुण्य के फल से ब्रह्मलोक में वास करके पुण्यक्षय के पश्चात पुन: मनुष्य-योनि में ही जन्म लेता हैं | (पापी मनुष्य पाप करके दुर्गति में ही पड़ता हैं |) ब्राह्मणों ! पुण्यक्षेत्र में पापकर्म किया जाय तो वह और भी दृढ़ हो जाता हैं | अत: पुण्यक्षेत्र में निवास करते समय सूक्ष्म-से-सूक्ष्म अथवा थोडा सा भी पाप न करें |
सिन्धु और शतद्रु (सतलज) नदी के तटपर बहुत-से पुण्यक्षेत्र हैं | सरस्वती नदी परम पवित्र और सात मुखवाली कही गयी हैं अर्थात उसकी साठ धाराएँ हैं | विद्वान पुरुष सरस्वती के उन-उन धाराओं के तटपर निवास करे तो वह क्रमश: ब्रह्मपद को पा लेता हैं | हिमालय पर्वत में निकली हुई पुण्यसलिला गंगा सौ मुखवाली नदी है, उसके तटपर काशी-प्रयाग आदि अनेक पुण्यक्षेत्र हैं | वहाँ मकरराशि के सूर्य होनेपर गंगा की तटभूमि पहले से भी अधिक प्रशस्त एवं पुण्यदायक हो जाती हैं | शोणभद्र नदी की दस धाराएँ हैं, वह बृहस्पति के मकरराशि में आनेपर अत्यंत पवित्र तथा अभीष्ट फल देनेवाला हो जाता हैं | उस समय वहां स्नान और उपवास करनेसे विनायकपद की प्राप्ति होती है | पुण्यसलिला महानदी नर्मदा के चौबीस मुख (स्त्रोत) हैं | उसमें स्नान तथा उसके तटपर निवास करनेसे मनुष्य को वैष्णवपद की प्राप्ति होती हैं | तमसा के बारह तथा रेवा के दस मुख हैं | परम पुण्यमयी गोदावरी के इक्कीस मुख बताये गये हैं | वह ब्रह्महत्या तथा गोवध के पापका भी नाश करनेवाली एवं रूद्रलोक देनेवाली हैं | कृष्णावेणी नदी का जल बड़ा पवित्र हैं | वह नदी समस्त पापों का नाश करनेवाली हैं | उसके अठाराह मुख बताये गये हैं तथा वह विष्णुलोक प्रदान करनेवाली हैं | तुंगभद्रा के दस मुख हैं | वह ब्रह्मलोक देनेवाली हैं | पुण्यसलिला सुवर्ण-मुखरी के नौ मुख कहे गये हैं | ब्रह्मलोक से लौटे हुए जीव उसी के तटपर जन्म लेते हैं | सरस्वती नदी, पम्पासरोवर, कन्याकुमारी अंतरीम तथा शुभकारक श्वेत नदी – ये सभी पुण्यक्षेत्र हैं | इनके तटपर निवास करनेसे इन्द्रलोक की प्राप्ति होती है | सह्य पर्वत से निकली हुई महानदी कावेरी परम पुण्यमयी हैं | उसके सत्ताईस मुख बताये गये है | वह सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को देनेवाली हैं | उसके तट स्वर्गलोक की प्राप्ति करानेवाले तथा ब्रह्मा और विष्णुका पद देनेवाले हैं | कावेरी के जो तट शैवक्षेत्र के अंतर्गत हैं, वे अभीष्ट फल देने के साथ ही शिवलोक प्रदान करनेवाले भी हैं |
नैमिषारण्य तथा बद्रिकाश्रम में सूर्य और बृहस्पति के मेषराशि में आनेपर यदि स्नान करे तो उससमय वहाँ किये हुए स्नान पूजन आदि को ब्रह्मलोक की प्राप्ति करनेवाला जानना चाहिये | सिंह और कर्कराशि में सूर्य की संक्राति होनेपर सिन्धु नदी में किया हुआ स्नान तथा केदार तीर्थ के जल का पान एवं स्नान ज्ञानदायक माना गया हैं | जब बृहस्पति सिंहराशि में स्थित हों, उस समय सिंह की संक्राति से युक्त भाद्रपदमास में यदि गोदावरी के जल में स्नान किया जाय तो वह शिवलोक की प्राप्ति करानेवाला होता है, ऐसा पूर्वकाल में स्वयं भगवान शिव ने कहा था | जब सूर्य और बृहस्पति कन्याराशि में स्थित हों, तब यमुना और शौंणभद्र में स्नान करे | वह स्नान धर्मराज तथा गणेशजी के लोक में महान भोग प्रदान करानेवाला होता हैं, यह महर्षियों की मान्यता हैं | जब सूर्य और बृहस्पति तुलाराशि में स्थित हों, उससमय कावेरी नदीमें स्नान करे | वह स्नान भगवान् विष्णु के वचन की महिमासे सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को देनेवाला माना गया हैं | जब सूर्य और बृहस्पति वृश्चिक राशिपर आ जायें, तब मार्गशीर्ष (अगहन) के महीने में नर्मदा में स्नान करनेसे श्रीविष्णुलोक की प्राप्ति हो सकती हैं | सूर्य और बृहस्पति के धनराशी में स्थित होनेपर सुवर्ण मुखरी नदी में किया हुआ स्नान शिवलोक प्रदान करनेवाला होता हैं, जैसा कि ब्रह्माजी का वचन हैं | जब सूर्य और बृहस्पति मकरराशि में स्थित हों, उस समय माघमास में गंगाजी के जल में स्नान करना चाहिये | ब्रह्माजी का कथन हैं कि वह स्नान शिवलोक के पश्चात ब्रह्मा और विष्णु के स्थानों में सुख भोग्नेप्र अंत में मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती हैं | माघमास में तथा सूर्य के कुम्भराशि में स्थित होनेपर फाल्गुन मास में गंगाजी के तटपर किया हुआ श्राद्ध, पिंडदान अथवा तिलोदक-दान पिता और नाना दोनों कुलों के पितरों की अनेकों पीढ़ियों का उद्धार करने वाला माना गया हैं | सूर्य और बृहस्पति जब मीनराशि में स्थित हों, तब कृष्णवेणी नदी में किये गये स्नान की ऋषियों ने प्रशंसा की है | उन-उन महीनों में पूर्वोक्त तीर्थों में किया हुआ स्नान इंद्रपद की प्राप्ति करानेवाला होता हैं | विद्वान पुरुष गंगा अथवा कावेरी नदीका आश्रय लेकर तीर्थवास करे | ऐसा करनेसे तत्काल किये हुए पापका निश्चय ही नाश हो जाता हैं |
रुद्रलोक प्रदान करनेवाले बहुत-से क्षेत्र हैं | ताम्रपर्णी और वेगवती – ये दोनों नदियाँ ब्रह्मलोक की प्राप्तिरूप फल देनेवाली हैं | इन दोनों के तटपर कितने ही स्वर्गदायक क्षेत्र हैं | इन दोनों के मध्य में बहुत-से पुण्यप्रद क्षेत्र हैं | वहाँ निवास करनेवाला विद्वान पुरुष वैसे फल का भागी होता है | सदाचार, उत्तम वृत्ति तथा सद्भावना के साथ मनमें दयाभाव रखते हुए विद्वान पुरुष को तीर्थ में निवास करना चाहिये | अन्यथा उसका फल नहीं मिलता | पुण्यक्षेत्र में किया हुआ थोडा-सा पुण्य भी अनेक प्रकार से वृद्धि को प्राप्त होता हैं | तथा वहाँ किया हुआ छोटा-सा पाप भी महान हो जाता हैं | यदि पुण्यक्षेत्र में रहकर ही जीवन बिताने का निश्चय हो तो उस पुण्यसंकल्प से उसका पहले का सारा पाप तत्काल नष्ट हो जायगा; क्योंकि पुण्य को ऐश्चर्यदायक कहा गया हैं | ब्राह्मणों ! तीर्थवासजनित पुण्य कायिक, वाचिक और मानसिक सारे पापोंका नाश कर देता हैं | तीर्थ में किया हुआ मानसिक पाप वज्रलेप हो जाता हैं | वह कई कल्पोतक पीछा नहीं छोड़ता हैं |
पुण्यक्षेत्रे कृतं पुण्यं बहुधा ऋद्धिमृच्छति | पुण्यक्षेत्रे कृतं पापं महद्न्यपि जायते ||
तत्कालं जीवनार्थचेत पुण्येन श्रयमेष्यति | पुण्यगैश्वर्य: प्राहु: कायिकं याचिकं तथा ||
मानसं च तथा पापं तादृशं नाश्येद द्विजा: | मानसं वज्रलेपं तुल्यकल्पकल्पानुगं तथा || (शिवपुराण, विद्येश्वर संहिता १३ / ३६-३८)
वैसा पाप केवल ध्यान से ही नष्ट होता हैं, अन्यथा नहीं | वाचिक पाप जप से तथा कायिक पाप शरीर को सुखाने-जैसे कठोर तपसे नष्ट होता हैं; अत: सुख चाहनेवाले पुरुष को देवताओं की पूजा करते और ब्राह्मणों को दान देते हुए पाप से बचकर ही तीर्थ में निवास करना चाहिये |
- ॐ नम: शिवाय –
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