वह व्यक्ति किंचित आपका शत्रु नहीं हो सकता जो आपको आपकी गलतियों और कमजोरियों का बार-बार स्मरण कराये अपितु वह आपका शत्रु है जो आपके गलत दिशा में बढ़ते हुए कदमों को देखकर भी मुस्कुराता रहे और आपको रोकने का प्रयास ना करे।
विरोध करने वाला शत्रु नहीं, गलत कार्यों का विरोध ना करने वाला परम शत्रु होता है। आज अपने और पराये की परिभाषा थोड़ी बदल सी गई है। लोग सोचते हैं कि स्वजन-प्रियजन वहीँ है जो हर स्थिति में हमारा संग दें। लेकिन वास्तव में सच्चे प्रियजन वही हैं जो अप्रिय कर्म से बचालें।
दुर्योधन ने चाचा विदुर की बात मान ली होती तो महाभारत ना होता। रावण ने विभीषण की बात मानी होती तो लंका विध्वंश ना होता। मित्र वही है जो हमारी मति सुधार दे, जीवन को गति दे दे और गोविन्द चरणों में रति दे दे।
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