Monday, August 6, 2018

चातुर्मास विशेष में

चातुर्मास विशेष में-
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श्रीमद्भागवत का प्रथम श्लोक
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सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्त्यादिहेतवे।
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुम:।।

ये पहला श्लोक है भागवत का। प्रथम श्लोक
का प्रथम शब्द है सच्चिदानंदरूपाय। भागवत
आरंभ हो रहा है और भागवत ने घोषणा की सत,
चित और आनंद। भगवान के तीन रूप हैं
सच्चिदानंद रूपाय सत, चित और आनंद। भगवान के रूप को प्रकट किया।

 भगवान तक पहुंचने के तीन मार्ग है
      सत, चित और आनंद।

इन तीन रास्तों से आप भगवान तक पहुंच सकते हैं।आप देखना चाहें भगवान का स्वरूप क्या है तो भगवान चतुर्भुज रूप में प्रकट नहीं होंगे। भगवान का पहला स्वरूप है सत्य। जिस दिन आपके जीवन में सत्य घटने लगे आप समझ लीजिए आपकी परमात्मा से निकटता हो गई।

 2- फिर कहते हैं चित स्वयं के भीतर के
 प्रकाश को आत्मप्रबोध को प्राप्त करिए।

3-फिर है आनंद। देखिए सत और चित तो सब में होता है पर आपमें जो है उसे प्रकट होना पड़ता है। वैसे तो आनंद हमारा मूल स्वभाव है पर हमको आनंद निकालना पड़ता है मनुष्य का मूल स्वभाव है आनंद फिर भी इसके लिए प्रयास करना पड़ता
है।

सत, चित, आनंद के माध्यम से
     भागवत में प्रवेश करें।

यहां भागवत एक और सुंदर बात कहती है भागवत की एक बड़ी प्यारी शर्त है कि मुझे पाने के लिए, मुझ तक पहुंचने के लिए या मुझे अपने जीवन में उतारने के लिए कुछ भी छोडऩा आवश्यक नहीं है।

    ये भागवत की बड़ी मौलिक घोषणा है।
 इसीलिए ये ग्रंथ बड़ा महान है। भागवत कहती है
  मेरे लिए कुछ छोडऩा मत आप।

संसार छोडऩे की जरूरत नहीं है। कई लोग घर बार छोड़कर दुनियादारी छोड़कर पहाड़ पर चले गए,तीर्थ पर चले गए, एकांत में चले गए तो भागवत कहती है उससे कुछ होना नहीं है।

 मामला प्रवृत्ति का है। प्रवृत्ति अगर भीतर बैठी
 हुई है तो भीतर रहे या जंगल में रहें बराबर
       परिणाम मिलना है।

 "आगे जरूर पढ़ें भागवत महिमा"

       !! शुभ संध्या वदंन  !!
             ✍☘💕

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